नई दिल्ली: राज कपूर ने भारतीय सिनेमा को उस समय बुलंदियों में पहुंचा दिया जब देश तमाम तरह की दिक्कतों से गुजर रहा था. देश को आजाद हुए ज्यादा समय नहीं हुआ था. विभाजन का दर्द, भुखमरी, गरीबी देश की तरक्की के आगे रास्ता रोके खड़े थी, चारो तरफ निराशा का आलम था. ऐसे में रुपहले पर्दे पर एक राजू उभरता है जो लोगों को नाउम्मीदी से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करता है. यही राजू, राज कपूर था. जो बाद में भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े शोमैन कहलाए.


राजकपूर का जन्म पाकिस्तान पेशावर में 14 दिसंबर को 1924 को हुआ था. राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर भी फिल्म और थियेटर के बड़े नाम थे, लेकिन राज कपूर ने अपनी अलग पहचान बनाई. अपनी संदेश परक फिल्मों से राजकपूर ने समाज की दिशा और दशा बदलने का काम किया. उनकी फिल्मों का तत्कालीन समाज पर व्यापक असर पड़ा. भारत और सोवियत रूस के संबंधों को मजबूत बनाने में उनके योगदान को नाकारा नहीं जा सकता है.


राजकपूर भारत को करीब से जानते थे. इसीलिए उनकी फिल्मों का नायक लाचार,गरीब, बेरोजगार नजर आता है,लेकिन वो हारता नहीं,वह जीतता है. यही बात उनके सिनेमा को खास बनाती है, जो लोगों पर गहरा असर डालती है. फिर चाहे उनकी फिल्म जागते रहो, संगम,श्री 420, आवारा, तीसरी कसम, प्रेमरोग,राम तेरी गंगा मैली, जिस देश मेँ गंगा बहती है, हो. यह फिल्म देश में डाकू उन्मुलन और उन्हें समर्पण करने के लिए प्रेरित करने वाली देश की पहली फिल्म मानी जाती है.


राज कपूर ने अपनी फिल्मों से सिर्फ समाज को नई दिशा नहीं दी,बल्कि फिल्म इंडस्ट्री को भी अपने हुनर से निखारा. फिल्मों में उन्होंने तकनीकी पक्ष को मजबूत बनाया. नये नये प्रयोग किए. राज कपूर को फिल्म क्षेत्र के हर पहलू की जानकारी थी. पृथ्वीराज कपूर से जब उन्होंने फिल्मों में काम करने की इच्छा जाहिर की तो पृथ्वी राज ने उन्हें सीधे डायरेक्टर नहीं बनाया बल्कि उन्हें सबसे छोटा यानि एक फिल्म में दसवें अस्टिेंड के तौर पर काम दिया. जबकी पृथ्वी राज कपूर उस जामने में फिल्मों में एक बड़ा नाम था. लेकिन उन्होंने राजकूपर से शून्य से शुरू करने को कहा. बेटे ने भी पिता की बात को सिर आंखों पर रखा. राज कपूर शूटिंग के समय रोज समय से पहले पहुंचते,झाडू उठाते और स्टूडियो को साफ करते. फिल्मों का बड़ा नाम बनने से पहले राजकपूर ने हर वो काम किया जो सबसे छोटा था. लेकिन उन्होंने इसका कभी परवाह नहीं क्योंकि वे जानते थे,अगर कुछ बनना है तो इसी तरह से सीखना होगा.


फिल्म इंडस्ट्रीज में टीम वर्क की क्या अहमियत होती है यह सबसे पहले राजकपूर ने ही लोगों को बतायी. राज कपूर को कहानी से लकर संगीत की गहरी समझ थी. इसी वजह से उनकी फिल्मों का संगीत भी उतना ही हिट हुआ जितना की फिल्में. राज कपूर ने कला के पारखी भी थे. वे प्रतिभा को देखकर ही भांप लेते थे. गीतकार शैलेंद्र उनके बहुत अच्छे मित्र थे, शैलेंद्र ने उनकी फिल्मों के अनकों गीत लिखे जो आज भी सुपर हिट कहलाते हैं.


राजकपूर ने शैलेंद्र की प्रतिभा को भांप लिया था,लेकिन शैलेंद्र फिल्मों में काम करने के लिए राजी नहीं थे, लेकिन राज कपूर ने उन्हें मना लिया. इसी तरह से शंकर जय किशन की जोड़ी को मशहूर बनाने में उनका बड़ा योगदान है. भारतीय सिनेमा के संगीत को मैलोडी से भर दिया. भारतीय सिनेमा का जब जब जिक्र किया जाएगा तब तब राजकपूर को याद किया जाएगा.