वैसे तो एक साल में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ के महीनों में कुल मिलाकर चार बार नवरात्र आते हैं, लेकिनइनमें से चैत्र और आश्विन नवरात्र सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। वसंत ऋतु में होने के कारण चैत्र नवरात्र को वसंत, वासंती या वासंतिक नवरात्र भी कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों के साथ ही हिन्दू नवसंवत्सर (नया साल) शुरू हो जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां शैलपुत्री को मां पार्वती भी कहा जाता है. सफेद कपड़े पहनकर मां शैलपुत्री की पूजा करें. मां की पूजा करते सम ह्रीं मंत्र के साथ ध्यान करें और जप करें.
ये है घटस्थापना का समय-
सुबह 6.48 बजे से 8.11 बजे के बीच घटस्थापना करें. 1 घंटा 23 मिनट का मुहूर्त है. घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर निर्धारित है. घटस्थापना मुहूर्त द्वि-स्वभाव मीन लग्न के दौरान शाम 6.31 बजे तक प्रतिपदा तिथि रहेगी इससे पहले घटस्थापना कर लें.
नवरात्रि में करें इन देवियों की पूजा-
18 मार्च को देवी शैलपुत्री
19 मार्च को मां ब्रह्मचारिणी
20 मार्च को मां चंद्रघंटा
21 मार्च को मां कुष्मांडा
22 मार्च को कात्यायनी
23 मार्च को स्कंदमाता
24 मार्च को मां कालरात्रि
25 मार्च को मां गौरी और रामनवमी की पूजा करनी है
26 मार्च को नवरात्रि पारण है
दसवीं के दिन उपवास कि विधि पूरी होती है. यज्ञ किए बिना उपवास खोलने पर नवरात्रि पूजा का महत्व नहीं है. नौ रातों की पूजा के बाद दसवीं के दिन यज्ञ के बाद आप उपवास खोलेंगे.
गुड़ी पड़वा
महाराष्ट्र और गोवा के साथ मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में आज के दिन को गुड़ी पड़वा के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है. चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या उगादि (युगादि) कहा जाता है. इस दिन हिन्दू नववर्ष का आरम्भ होता है.
आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में ‘उगादि’ और महाराष्ट्र में यह पर्व 'गुड़ी पड़वा' के रूप में मनाया जाता है. गुड़ी पड़वा पर्व से जुड़ी कर्इ कथाएं हिन्दू सनातन धर्म में हैं. हिंदुओं में ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था. एक कथा यह भी है कि इस दिन भगवान श्रीराम ने श्री लंका के शासक बाली पर विजय प्राप्त कर लोगों को उसके अत्याचारों और कुशासन से मुक्ति दिलार्इ. इसी खुशी में हर घर में गुड़ी यानि विजय पताका फहरार्इ जाती है.