नई दिल्ली:  दुनिया भर में आज नए साल का जश्न मनाया जा रहा है. जहां एक तरफ लोग जश्न में डूबे होंगे तो वहीं एक और काम है जो आज वह करेंगे, वह काम है कैलेंडर बदलने का. जब आप पुराने साल का कैलेंडर बदल कर नए साल का कैलेंडर लगा रहे होंगे तो आपके जहन में एक सवाल जरूर आएगा कि आखिर इन कैलेंडरों का इतिहास क्या है. आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं. दरअसल हर धर्म में नए साल की तारीख उनके कैलेंडर के हिसाब से  तय होती है.


जानकारी के मुताबिक न्यू ईयर मनाने की परंपरा करीब 4000 साल पुरानी बताई जाती है. कहा जाता है कि सबसे पहले नया साल 21 मार्च को बेबीलोन में मनाया गया. ये वो समय था जब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए वर्ष का जश्न मनाया गया. हालांकि कुछ समय बाद इस कैलेंडर में कुछ खामियों की वजह से पोप ग्रेगारी ग्रेगेरियन कैलेंडर लेकर आए जो कि जूलियन कैलेंडर का ही रूपांतरण है.


सभी धर्मों में नया साल उनके कैलेंडरों के हिसाब से होता है


हिन्दू कैलेंडर


वैसे तो भारत में भी 1 जनवरी को ही नया साल मनाया जाता है. लेकिन एक बड़ा वर्ग है जो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नववर्ष मनाते हैं. यह हिन्दू समाज के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इस तारीख से नया पंचांग प्रारंभ होता है.


भारत में सांस्कृतिक विविधता के कारण अनेक काल गणनायें प्रचलित हैं जैसे- विक्रम संवत, शक संवत, हिजरी सन, ईसवीं सन, वीरनिर्वाण संवत, बंग संवत आदि. भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है. हिन्दू समाज में कोई भी शुभकार्य करने के लिए शुभ मुहूर्त इसी कैलेंडर से निकाला जाता है.


विक्रम संवत् का आरंभ 57 ई.पू. में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के नाम पर हुआ. भारतीय इतिहास में विक्रमादित्य को न्यायप्रिय और लोकप्रिय राजा के रुप में जाना जाता है. विक्रमादित्य के शासन से पहले उज्जैन पर शकों का शासन हुआ करता था. विक्रमादित्य ने उज्जैन को शकों के कठोर शासन से मुक्ति दिलाई और अपनी जनता का भय मुक्त कर दिया. स्पष्ट है कि विक्रमादित्य के विजयी होने की स्मृति में आज से 2075 वर्ष पूर्व विक्रम संवत पंचांग का निर्माण किया गया.


भारतवर्ष में ऋतु परिवर्तन के साथ ही हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है. चैत्र माह में शीतऋतु को विदा करते हुए और वसंत ऋतु के सुहावने परिवेश के साथ नववर्ष आता है. पुराण-ग्रन्थों के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ही त्रिदेवों में से एक ब्रह्मदेव ने सृष्टि की रचना की थी. इसीलिए हिन्दू-समाज भारतीय नववर्ष का पहला दिन अत्यंत हर्षोल्लास से मनाते हैं.


इसके अलावा श्री राम और युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, मां दुर्गा की साधना हेतु चैत्र नवरात्रि का प्रथम दिवस, आर्यसमाज का स्थापना दिवस, संत झूलेलाल की जंयती और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन के संस्थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी का जन्मदिन आदि. इन सभी विशेष कारणों से भी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा का दिन विशेष बन जाता है.


इस्लामीक कैलेंडर


हिन्दुओं की तरह इस्लाम का भी अपना एक धार्मिक कैलेंडर है जिसके अनुसार मुहर्रम का चांद होते ही नया साल शुरू हो जाता है. इस्लामी कैलेंडर चांद पर आधारित होता है. जिसके कारण इसके बारह महीनों का चक्र 33 वर्षों में सौर कैलेंडर को एक बार घूम लेता है. इस्लामी पंचांग को हिजरी कहते हैं, जो न सिर्फ मुस्लिम देशों में प्रयोग होता है बल्कि इसे पूरे विश्व के मुस्लिम भी इस्लामिक धार्मिक पर्वों को मनाने का सही समय जानने के लिए प्रयोग करते हैं.


बता दें कि पहली तारीख यानी यकुम (प्रथम) मोहर्रम से जो इस्लामी नया साल शुरू होता है उसमें मुबारकबाद अर्थात बधाई देने के लिए कभी भी 'मोहर्रम मुबारक' नहीं कहा जाता (क्योंकि मोहर्रम के महीने की दसवीं तारीख, जिसे 'यौमे-आशुरा' कहा जाता है, को ही हजरत इमाम हुसैन की पाकीजा शहादत का वाकेआ पेश आया था) बल्कि कहा जाता है 'नया साल मुबारक!' चूंकि मोहर्रम के महीने में ही हजरत मोहम्मद (स.) के नवासे (दौहित्र) हजरत इमाम हुसैन की शहादत का वाकेआ पेश हुआ था, इसलिए  शुरुआती तीन दिनों यानी मोहर्रम के महीने की पहली तारीख से तीसरी तारीख तक मुबारकबाद दे देनी चाहिए.

इस्लाम में नए साल का जश्न भी थोड़ा अलग तरीके से होता है. यहां गाना-बजाना या डांस करने से ज्यादा बेबसों, बेवाओं और बेसहारा की मदद करना है. उनका मानना है कि यही तरीका अल्लाह की नेमत और फजल (कृपा) की खुशियां मनाना है'

सिंधी नव वर्ष


सिंधी लोग भी नए साल अपने कैलेंडर के हिसाब से मनाते हैं. उनका नया साल चेटीचंड उत्सव से शुरू होता है, जो चैत्र शुक्ल द्वितीया को मनाया जाता है. सिंधी मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान झूलेलाल का जन्म हुआ था जो वरुणदेव के अवतार थे.


सिखों का नया साल


पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है. जो अप्रैल में आती है। सिक्ख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) नया साल होता है.


ज़ैन समुदय का नया साल


ज़ैन समुदय के लोगों का नया साल दीपावली से अगले दिन होता है. भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है. इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं.


पारसी धर्म


पारसी धर्म का नया साल नवरोज के रूप में मनाया जाता है. आमतौर पर 19 अगस्त को नवरोज का उत्सव पारसी लोग मनाते हैं. लगभग 3000 वर्ष पूर्व शाह जमशेदजी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की. नव अर्थात् नया और रोज यानि दिन.


हिब्रू नव वर्ष

हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान ने इस दुनिया की रचना सात दिनों में की थी. इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है. यह दिन ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है.


पश्चिमी कैलेंडर के हिसाब से नया साल
नया साल पहली बार 4000 साल पहले बेबीलोन में मनाया जाता था. उस समय नया साल 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती  थी. इसके बाद रोम के तानाशाह जूलियस सीजर ने ईसा पूर्व 45वें वर्ष में जब जूलियन कैलेंडर की स्थापना की, उस समय विश्व में पहली बार 1 जनवरी को नए साल का उत्सव मनाया गया.