अहमदाबाद: गुजरात में पहले चरण के नामांकन के अंतिम दिनों में आखिकार चली लंबी तकरार, खींचतान और कई दौर की बातचीत के बाद कांग्रेस और पाटीदारों के बीच सहमति बन गई है. इस सहमति में पटेलों के आरक्षण का मुद्दा सबसे ऊपर होने का दावा किया गया है, लेकिन सबसे अहम बात ये है कि इस सहमति ने (PAAS) के नेताओं को चुनावी मैदान में कांग्रेस के टिकट पर अपनी किस्मत आजमाने का मौका दे दिया है.


कांग्रेस और पाटीदारों के बीच क्या सहमति बनी है, इसका पूरा ब्यौरा अभी नहीं आया है, लेकिन फिलहाल जो बातें पाटीदारों की तरफ से मीडिया में कहीं गई हैं उसके मुताबिक पाटीदार आंदोलन समिति (PAAS) के कई नेता कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे.


PAAS की तरफ से कहा गया है कि राजकोट में पाटीदार के नेता हार्दिक पटेल कल कांग्रेस से बनी सहमति की पूरी जानकारी देंगे. यानि किस फॉर्मूले पर कांग्रेस से सहमति बनी है उसे जानने के लिए अभी एक दिन का इंतजार करना पड़ेगा.


आपको बता दें कि पाटीदार समाज की मांग है कि पटेलों को पिछड़ा वर्ग में रखा जाए और उसे शिक्षा और नौकरी में आरक्षण दिया जाए.


खास बात ये है कि हार्दिक पटेल से बातचीत के बाद ललित वसोया ने पाटीदार आंदोलन समिति के संयोजक पद से इस्तीफा दे दिया है. ललित कांग्रेस के टिकट पर धोराजी विधानसभा से चुनाव लड़ेंगे.


आपको बता दें कि गुजरात में दो चरणों में 9 दिसंबर और 14 दिसंबर को मतदान होंगे. मतगणना 18 दिसंबर को होगी.


क्या है इसके सियासी मायने?


सूबे में बीते 23 साल से बीजेपी की सरकार है और हार्दिक पटेल पाटीदार के पिछड़ेपन की वजह बीजेपी को मानते हैं. बीते दो साल से हार्दिक पटेल ने गुजरात में पटेलों के आरक्षण के मुद्दे को छेड़ रखा है और बीते कई महीनों से बीजेपी के खिलाफ अपना सीधा मोर्चा खोल रखा है. हार्दिक की रैलियों में भी लाखों लोग पहुंचे. हार्दिक पटेल की इस रणनीति का सीधा असर पटेलों के वोट करने के पैटर्न पर पड़ेगा, जो अब तक बीजेपी का वोट बैंक माना जाता रहा है.


राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस ने हार्दिक पटेल को अपने खेमे में लाकर बीजेपी पर एक मनोवैज्ञानिक जीत दर्ज कर ली है.