Haryana Assembly Election 2019: सितंबर का महीना चल रहा है और देशभर में लोगों को गर्मी से राहत मिल चुकी है, लेकिन 2.5 करोड़ की आबादी वाले हरियाणा में राजनीतिक पारा बढ़ने वाला है. हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल नवंबर में खत्म होना है और जल्द ही चुनाव की तारीखों का एलान होने के कयास लगाए जा रहे हैं. 1 नवंबर 1966 को अलग राज्य बने हरियाणा की राजनीति पहले 40 साल तो देवीलाल, भजनलाल और बंसीलाल के इर्द-गिर्द घूमती रही, लेकिन 15 साल से इन तीनों नेताओं के परिवार राज्य की सत्ता से बाहर हैं और अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं. 90 विधानसभा सीटों वाले राज्य में पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ना सिर्फ पहली बार अपने दम जीत हासिल की, बल्कि बाकी पार्टियों की हालत एकदम खराब कर दी.
2014 में बीजेपी की सरकार बनी
2014 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी हरियाणा में चौथे या पांचवें नंबर की लड़ाई लड़ा करती थी. इतना ही नहीं 2014 से पहले एक बार ही राज्य में बीजेपी के विधायकों की संख्या दहाई के आंकड़े को छू पाई थी. लेकिन 2014 में इतिहास बदला और बीजेपी अपने दम पर 47 सीटें जीतकर सरकार बनाने में कामयाब रही. इस चुनाव में 10 साल से सत्ता में रही कांग्रेस की हालत इतनी खराब रही कि वह मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा भी हासिल करने से चूक गई. 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से सिर्फ 15 सीटें आई थीं, जबकि 19 सीटों वाली इंडियन नेशनल लोकदल राज्य की दूसरी बड़ी पार्टी बनने में कामयाब रही.
2014 में ऐसे बदली थी बीजेपी की किस्मत
हरियाणा विधानसभा चुनाव में 2014 बीजेपी को जीत मिलने की बड़ी वजह मोदी का केंद्र सरकार में आना रहा. बाकी देश की तरह हरियाणा में भी मोदी का जादू चला और 2009 में महज 2 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी 47 सीटों के साथ अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब रही. बीजेपी ने संघ की पृष्टभूमि से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को राज्य का सीएम बनाया. बीजेपी को बड़ी जीत मिलने की एक वजह कांग्रेस और इनेलो के ग्राफ का गिरना रहा. इन दोनों पार्टियों को विधानसभा चुनाव में 38 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा. इससे पहले 1996 में बीजेपी के 11 विधायक बने थे और वह बंसीलाल की हरियाणा विकास पार्टी की सरकार में हिस्सेदार बनी थी.
मौजूदा विधानसभा की स्थिति
हरियाणा में 90 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचते हैं. लेकिन इस वक्त मौजूदा विधानसभा में सिर्फ 68 विधायक हैं. इनेलो के टूटने की वजह से और कुछ विधायकों के इस्तीफा देने की वजह से इस वक्त 22 सीटें खाली हैं. चूंकि विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने में अब 6 महीने से कम का वक्त बाकी है, इसलिए ये सीटें खाली ही रहेंगी. मौजूदा विधानसभा में बीजेपी के पास 47 और कांग्रेस के पास 17 विधायक हैं. 2014 में बीजेपी को 47 सीटों पर जीत मिली थी. इनेलो 19 सीटों के साथ दूसरे और कांग्रेस 15 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही थी. एचजेसी को 2 सीट मिली और 1 सीट बीएसपी के खाते में आई थी. वहीं 6 निर्दलीय भी जीत दर्ज करने में कामयाब हुए.
विपक्षी पार्टियों की हालत कमजोर
बीजेपी का मुकाबला करने के लिए इस वक्त राज्य में विपक्षी पार्टियों की हालत काफी कमजोर है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी राज्य में करीब 60 फीसदी वोट हासिल करके सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही, जबकि 29 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी बनी. रोहतक सीट को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों ने 3 लाख वोट से ज्यादा के अंतर से जीत दर्ज की. हिसार लोकसभा सीट पर कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी बनी, जबकि पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाली जेजेपी दूसरे नंबर पर रही.
गुटबाजी की शिकार कांग्रेस
राज्य में आज कांग्रेस भले ही दूसरे नंबर की पार्टी है, लेकिन वह बीजेपी के सामने काफी कमजोर नज़र आती है. कांग्रेस के कमजोर होने की एक बड़ी वजह उसके बड़े नेताओं की गुटबाजी है. हुड्डा और अशोक तंवर के बीच की लड़ाई तो पहले ही सबके सामने आ ही चुकी है. इसके अलावा जिस तरह से नेता विपक्ष का पद किरण चौधरी से लेकर हुड्डा को दिया गया है उससे भी जाहिर है कि बाकी नेताओं के बीच भी संबंध अच्छे नहीं है. कांग्रेस ने चुनाव से पहले कुमारी शैलजा के हाथों राज्य की कमान सौंपी है. लेकिन चुनाव से पहले पार्टी के खिलाफ बगावत करने वाले हुड्डा को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलना दिखता है कि कांग्रेस कहीं ना कहीं कमजोर स्थिति में है. रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई वो दिग्गज नेता हैं जिनके संबंध हुड्डा से अच्छे नहीं रहे हैं.
खत्म होने के कगार पर क्षेत्रीय पार्टियां
राज्य में इस वक्त जननायक जनता पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल और बीएसपी मुख्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं. लोकसभा चुनाव में जेजेपी को जहां करीब 7 फीसदी वोट ही मिले, वहीं इनेलो और बीएसपी तो दो फीसदी वोट हासिल करने के लिए ही संघर्ष करते हुए दिखे. चूंकि जेजेपी इनेलो से ही निकली हुई पार्टी है इसलिए दोनों के वोटर बेस में कोई फर्क नहीं है और पार्टी टूटने की वजह से उसके दिग्गज नेताओं ने बीजेपी और कांग्रेस का दामन थाम लिया है. जुलाई में जेजेपी और बीएसपी के बीच विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन भी हुआ था, पर दोनों पार्टियों का गठबंधन सीटों पर सहमति ना बनने के चलते महज एक महीने में ही टूट गया.
जाटों की संख्या है सबसे ज्यादा
हरियाणा की राजनीति में लंबे समय तक जाट समुदाय से ही आने वाला सीएम रहा है. इसी वजह से कहीं ना कहीं राज्य में लड़ाई जाट-गैर जाट के बीच देखने को मिलती है. राज्यों में जाटों की आबादी करीब 28 फीसदी है. बाकी जातियों की जनसंख्या के बारे में स्थिति साफ नहीं है. इसके अलावा राज्य मेवात इलाके में करीब 20 लाख मुस्लिम पॉपुलेशन भी है.