Haryana Election Results: हरियाणा में बीजेपी लगातार तीसरी बार सत्ता में आते दिख रही है और एग्जिट पोल को गलत साबित कर रही है. वहीं, नतीजों से पता चलता है कि भाजपा उस राज्य में सत्ता में बनी हुई है, जहां उसे भारी सत्ता विरोधी लहर, किसानों के गुस्से और पहलवानों के विरोध का सामना करना पड़ा था.
यहां हम आपको बताते हैं हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हार और भाजपा की जीत के बड़े कारण क्या हैं.
जाट मतदाताओं पर ज्यादा निर्भरता
कांग्रेस ने जाट वोटरों पर बहुत अधिक भरोसा किया, जो राज्य के मतदाताओं का लगभग 27% हिस्सा हैं. जाट बहुल सीटों में से, कांग्रेस दोपहर 2 बजे कैथल, बरोदा, जुलाना, उचाना कलां, टोहाना, डबवाली, ऐलनाबाद, नारनौंद, महम, गढ़ी सांपला-किलोई और बादली में आगे चल रही थी, लेकिन पानीपत ग्रामीण, सोनीपत, गोहाना, बाढड़ा, झज्जर जैसी कई अन्य सीटों ने भाजपा के पक्ष में मतदान किया.
हालांकि मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़ा रहा. फिरोजपुर झिरका से कांग्रेस के उम्मीदवार मम्मन खान ने 98,441 वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की, जबकि नूह और पुनाहाना की दो अन्य मुस्लिम बहुल सीटें भी कांग्रेस के खाते में जाने की संभावना है.
अंदरूनी कलह से पार्टी को नुकसान
इस पूरे चुनाव के दौरान कांग्रेस के अंदर दलित नेता और सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा बीच दरार साफ नजर आई. पार्टी के हार का ये भी एक बड़ा कारण है. बता दें कि हुड्डा के उम्मीदवारों को तरजीह देने से नाराज शैलजा कुछ दिनों तक प्रचार के अंतिम चरण से दूर रहीं और उन्हें फिर से प्रचार में शामिल होने के लिए मनाना पड़ा.
इसके अलावा, उन्होंने बार-बार सीएम की कुर्सी पर दावा ठोका,जिससे पार्टी की अंदरूनी कलह सामने आ गई.जिससे भाजपा को यह दावा करने का मौका मिल गया कि कांग्रेस के पास सीएम चेहरे को लेकर कोई स्पष्टता नहीं थी. वहीं, सैनी के ओबीसी समुदाय से होने के कारण भाजपा ने गैर-जाट वोटरों को अपने पक्ष में कर लिया.
अग्निवीर, किसान और पहलवान के नहीं चले मुद्दे
हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन के बाद, जहां कांग्रेस ने राज्य की 10 में से 5 सीटें जीतीं, उसके नेता और और एग्रेसिव हो गए. किसानों के विरोध, पहलवानों के मुद्दे, अग्निपथ योजना पर बहुत अधिक निर्भर और लोकसभा चुनावों में वोट शेयर में 15% की वृद्धि से उत्साहित,कांग्रेस का अभियान केवल इन मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता रहा, लेकिन पार्टी के लिए वोटों में तब्दील नहीं हो पाया.
कांग्रेस की गारंटी पर नहीं किया लोगों ने भरोसा
बता दें कि हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा के संकल्प पत्र और कांग्रेस की गारंटी के बीच मुकाबला था. पीएम मोदी हर चुनावी रैलियों में वोटरों को भाजपा के संकल्प पत्र को ‘मोदी की गारंटी' के रूप में पेश कर रहे थे. जिसमें तेलंगाना, हिमाचल, कर्नाटक में कांग्रेस की गारंटी काम कर गई थी वहीं,हरियाणा के पड़ोसी राज्य हिमाचल में कांग्रेस ने अपना वादा पूरा नहीं कर पाया. जिसके कारण हरियाणा के मतदाताओं ने कांग्रेस की गारंटी पर भरोसा नहीं दिखाया.
बीजेपी की जीत का कारण
विरोधी लहर को सीएम बदल कर दूर किया बीजेपी
जब हरियाणा विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ तो राजनीतिक पंडित समेत तमाम विश्लेषकों ने हरियाणा से बीजेपी की विदाई का ऐलान कर दिया था. एंटी इम्कबेंसी,पहलवान,किसान और जवान के मुद्दे पर कांग्रेस ने अग्रेसिव कैंपेन से सरकार को बैकफुट पर कर दिया. वहीं, भाजपा ने 10 साल की सत्ता विरोधी लहर को 6 माह में सीएम बदल कर दूर किया. वोटिंग के बाद एग्जिट पोल में भी बीजेपी को 25-28 सीटें ही दी गईं. इसके बाद भी सैनी अपने भरोसे पर कायम रहे. चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत मिल गया.
ओबीसी,दलित और गैर जाट पर बीजेपी ने किया काम
सत्ता विरोधी लहर का सामना करने के बावजूद, भाजपा दो बार सत्ता में रहने के बाद भी अपने वोट शेयर और सीट शेयर में सुधार करने के लिए ओबीसी,दलित और गैर जाट वोट बैंक पर बीजेपी ने काम किया और लगभग कामयाब भी रही.
बागियों को नहीं दी तवज्जो
भाजपा ने इस विधानसभा चुनाव के दौरान बिना दबाव में आए उम्मीदवारों का चयन किया.जिसके कारण कई नेता नाराज भी हुए,तो कई नेता पार्टी से बागी होकर मैदान में भी आ गए. इनमें सबसे बड़ा नाम था नवीन जिंदल की मां सावित्री जिंदल का वे हिसार से निर्दलीय चुनाव मैदान उतरी लेकिन पार्टी ने उनके सामने अपना कैंडिडेट खड़ा किया.
हरियाणा चुनाव से पहले राम रहीम को पैरोल
हरियाणा चुनाव से पहले राम रहीम को पैरोल दिया गया था. जिसका कांग्रेस ने जमकर विरोध किया था, लेकिन भाजपा-राज में एक बार फिर 20 दिन का पेरोल मिलना राम रहीम के अनुयायियों को यह मैसेज दिया कि भाजपा राम रहीम बाबा का कितना ख्याल रखती है और जाहीर है इसका लाभ मिला भी.
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