In-Depths: हरियाणा विधानसभा चुनाव, जानिए राज्य की राजनीति से जुड़ी A टू Z बातें
साल 2014 में बीजेपी ने राज्य में सबसे ज्यादा 47 सीट जीती थी. वहीं कांग्रेस पार्टी 15 सीटों पर सिमट गई थी.
चंडीगढ़: चुनाव आयोग ने हरियाणा विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा कर दी है. हरियाणा में 21 अक्टूबर को मतदान होगा. राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर को आएंगे. बता दें कि हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल दो नवंबर तक है. हरियाणा में 1 करोड़ 28 लाख वोटर्स हैं.
हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. ऐसे में जहां एक तरफ बीजेपी जीत का परचम फिर एक बार लहराने के इरादे से चुनाव लड़ेगी तो वहीं विपक्ष उसके किले में सेंध लगाने की पुरजोर कोशिश करेगा. लोकसभा चुनाव में दूसरी बार करारी हार झेलने वाली कांग्रेस पार्टी हरियाणा विधानसभा चुनाव में हर हाल में अच्छा प्रदर्शन करना चाहेगी. अब चूकि मतदान और नतीजों की तारीख का एलान हो गया है तो आइए जानते हैं पिछले विधनसभा चुनाव में क्या हुआ था.
हरियाणा विधान सभा चुनाव साल 2014
हरियाणा में आखिरी चुनाव साल 2014 में 15 अक्टूबर को हुए थे. राज्य की 90 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी सर्वाधिक 47 सीट जीती थी. वहीं कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी. आईएनएलडी को 19 सीटों पर जीत मिली थी. हरियाणा जनहित कांग्रेस को राज्य में दो विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी. बहुजन समाज पार्टी और शिरोमणी अकाली दल को एक-एक सीटों पर जीत मिली थी. साल 2014 में राज्य की पांच विधानसभा सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार जीते थे.
मनोहर लाल खट्टर बने मुख्यमंत्री
बीजेपी के चुनाव जीतने के बाद राज्य में पार्टी किसको कमान देगी इस बात को लेकर चर्चा शुरू हुआ. मुख्यमंत्री की रेस में तत्कालीन हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष राम विलास शर्मा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रचारक मनोहर लाल खट्टर, बीजेपी एमएलए अनिल विज जैसे नेता थे. अंत में बीजेपी आलाकमान ने मनोहर लाल खट्टर के नाम पर मुहर लगाई और उन्होंने 26 अक्टूबर 2014 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
मौजूदा विधानसभा की स्थिति
हरियाणा में 90 विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचते हैं. लेकिन इस वक्त मौजूदा विधानसभा में सिर्फ 68 विधायक हैं. इनेलो के टूटने की वजह से और कुछ विधायकों के इस्तीफा देने की वजह से इस वक्त 22 सीटें खाली हैं. चूंकि विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने में अब 6 महीने से कम का वक्त बाकी है, इसलिए ये सीटें खाली ही रहेंगी. मौजूदा विधानसभा में बीजेपी के पास 47 और कांग्रेस के पास 17 विधायक हैं. 2014 में बीजेपी को 47 सीटों पर जीत मिली थी. इनेलो 19 सीटों के साथ दूसरे और कांग्रेस 15 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही थी. एचजेसी को 2 सीट मिली और 1 सीट बीएसपी के खाते में आई थी. वहीं 6 निर्दलीय भी जीत दर्ज करने में कामयाब हुए.
विपक्षी पार्टियों की हालत कमजोर
बीजेपी का मुकाबला करने के लिए इस वक्त राज्य में विपक्षी पार्टियों की हालत काफी कमजोर है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी राज्य में करीब 60 फीसदी वोट हासिल करके सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही, जबकि 29 फीसदी वोट शेयर के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी बनी. रोहतक सीट को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवारों ने 3 लाख वोट से ज्यादा के अंतर से जीत दर्ज की. हिसार लोकसभा सीट पर कांग्रेस तीसरे नंबर की पार्टी बनी, जबकि पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाली जेजेपी दूसरे नंबर पर रही.
गुटबाजी की शिकार कांग्रेस
राज्य में आज कांग्रेस भले ही दूसरे नंबर की पार्टी है, लेकिन वह बीजेपी के सामने काफी कमजोर नज़र आती है. कांग्रेस के कमजोर होने की एक बड़ी वजह उसके बड़े नेताओं की गुटबाजी है. हुड्डा और अशोक तंवर के बीच की लड़ाई तो पहले ही सबके सामने आ ही चुकी है. इसके अलावा जिस तरह से नेता विपक्ष का पद किरण चौधरी से लेकर हुड्डा को दिया गया है उससे भी जाहिर है कि बाकी नेताओं के बीच भी संबंध अच्छे नहीं है. कांग्रेस ने चुनाव से पहले कुमारी शैलजा के हाथों राज्य की कमान सौंपी है. लेकिन चुनाव से पहले पार्टी के खिलाफ बगावत करने वाले हुड्डा को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां मिलना दिखता है कि कांग्रेस कहीं ना कहीं कमजोर स्थिति में है. रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई वो दिग्गज नेता हैं जिनके संबंध हुड्डा से अच्छे नहीं रहे हैं.
खत्म होने के कगार पर क्षेत्रीय पार्टियां
राज्य में इस वक्त जननायक जनता पार्टी, इंडियन नेशनल लोकदल और बीएसपी मुख्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं. लोकसभा चुनाव में जेजेपी को जहां करीब 7 फीसदी वोट ही मिले, वहीं इनेलो और बीएसपी तो दो फीसदी वोट हासिल करने के लिए ही संघर्ष करते हुए दिखे. चूंकि जेजेपी इनेलो से ही निकली हुई पार्टी है इसलिए दोनों के वोटर बेस में कोई फर्क नहीं है और पार्टी टूटने की वजह से उसके दिग्गज नेताओं ने बीजेपी और कांग्रेस का दामन थाम लिया है. जुलाई में जेजेपी और बीएसपी के बीच विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन भी हुआ था, पर दोनों पार्टियों का गठबंधन सीटों पर सहमति ना बनने के चलते महज एक महीने में ही टूट गया.
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