नई दिल्ली: 2013 के बाद से राष्ट्रीय स्तर पर पीएम नरेद्र मोदी अपनी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के निर्विवाद स्टार प्रचारक रहे हैं. उनके अलावा अमित शाह से लेकर राहुल गांधी के ख़िलाफ़ आम चुनाव लड़ने वाली स्मृति ईरानी जैसे बीजेपी के कई नेता है जिन्हें स्टार प्रचारक माना जाता है. लेकिन ये सभी राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं और पार्टी में शायद ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो राष्ट्रीय स्तर के स्टार प्रचारक हों, लेकिन अपनी अलग राजनीतिक के लिए पहचाने जाने वाले उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनथा भी इस मामले में भी अपवाद हैं.


80 लोकसभा सीटों वाले राज्य के सीएम आदित्यनाथ को जब से ये पद दिया गया है, तब से उनसे गुजरात से त्रिपुरा और कनार्टक से हाल में हुए पांच राज्यों के चुनावों में जमकर प्रचार करवाया गया है. हालांकि, उनके स्टार प्रचारक बनने के बाद पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट दर्ज की गई है और गुजरात से लेकर कर्नाटक तक और अब हुए पांच राज्यों के चुनाव के नीतज़ों से साफ है कि उनके स्टार प्रचारक बनने का पार्टी के सेहत पर अच्छा असर नहीं पड़ा है.


इन चुनावों में योगी ने वसुंधरा राजे के राजस्थान में 26 रैलियां की थीं लेकिन पार्टी को इनमें से सिर्फ सात पर जीत मिली. रमण सिंह के छत्तीसगढ़ में योगी ने 23 रैलियां की थीं लेकिन यहां उनकी पार्टी को महज़ छह सीटों पर जीत मिली. हालांकि, मामा के नाम से मशहूर मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहन के यहां योगी ने जिन 17 सीटों पर रैली की थी उनमें से पार्टी को 11 पर जीत मिली. इसका पूरा हिसाब किताब बिठाएं तो ये पता चलता है कि योगी ने जिन 74 सीटों पर प्रचार किया था उनमें से पार्टी को सिर्फ और सिर्फ 25 सीटों पर जीत मिली. यानी ये 34% के करीब है.


अगर त्रिपुरा के चुनाव को अपवाद मान लें तो गुजरात और कर्नाटक में भी योगी पावर से बीजेपी को कोई ख़ास फायदा नहीं हुआ. क्योंकि मोदी के गढ़ गुजरात में जहां पार्टी 100 से नीचे 99 पर आ गई, वहीं कर्नाटक में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा. देखने वाली बात होगी कि इन आंकड़ों के बाद योगी के स्टार प्रचारक का ब्रांड किस हद तक बरकरार रहता है.


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