''संघर्ष ही है जो बेहतरीन नाटक की रचना करवाता है... अभिनेता ने जिंदगी में जितने अधिक संघर्ष किए होंगे उसका स्क्रीन पर अभिनय उतना ही बेहतरीन होगा..''


'ऑडिशन' नाम की एक किताब के राइटर माइकल शर्टलेफ का यह कथन एक्टिंग को लेकर बिल्कुल सही साबित होता है. आज पंकज त्रिपाठी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, मनोज बाजपेयी जैसे अभिनेताओं के बेहतरीन एक्टर होने की वजह उनके निजी जिंदगी के संघर्ष ही हैं. एक तरफ बिना बॉडी, गुडलुक्स के भी इन एक्टर्स की सीरिज लगातार नेटफिक्स पर रिलीज हो रही है और लोगों द्वारा पसंद भी की जा रही है. वहीं दूसरी तरफ बॉलीवुड की फिल्में एक के बाद एक पिटती जा रही है. 


हाल ही में दो बड़े सुपरस्टार आमिर खान की 'लाल सिंह चड्डा' और अक्षय कुमार की 'रक्षा बंधन' रिलीज हुई थी. थियेटर में ये फिल्में कब आई और कब गई पता ही नहीं चला. या यूं कहें कि ज्यादात्तर दर्शक अब बॉलीवुड की फिल्मों से कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं. वह बॉलीवुड से ज्यादा रश्मिका मंदाना, राम चरण और यश जैसे एक्टर से सम्मोहित हो रहे हैं. 


दरअसल बीते लगभग 2 साल बॉलीवुड इंडस्ट्री के लिए बिल्कुल भी अच्छे नहीं साबित हुए.  पिछले साल की तुलना में इस साल के फिल्मों की कमाई का ग्राफ देखें तो ये लगातार गिरता ही जा रहा है. इसे फ्लॉप होने लिए जहां कुछ लोग 'बॉयकॉट ट्रेंड' को जिम्मेदार मानते हैं, तो कुछ का मनना है कि बॉलीवुड के हीरो अब अपनी ऑडिएंस से कनेक्ट नहीं कर पा रहा. वहीं कुछ लोग एक्टर्स के पुराने विवादित बयानों को भी इसका कारण बता रहे हैं.  




इसी विषय पर abp न्यूज से बात करते हुए फिल्म क्रिटिक सुनिल कदेल ने कहा कि इन दिनों बॉलीवुड से ज्यादा लोगों के बीच साउथ फिल्मों का क्रेज बढ़ गया है. ये भी एक कारण है कि बॉलीवुड की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर पा रही है.


 


उन्होंने कहा कि एक तरफ जहां बॉलीवुड ज्यादातर रिमेक फिल्में ला रहा है तो वहीं दूसरी तरफ साउथ के पास अपनी कहानी होती है. उनके फिल्म की स्टोरी हर सेक्शन के ऑडिएंस को आकर्षित करती है. साउथ की फिल्मों में वो सबकुछ ओरिजनल होता है जिसे लोग देखना पसंद करते हैं.


वहीं बॉलीवुड अब अच्छी फिल्में नहीं बना पा रहे हैं और 90% फिल्में बड़े शहरों की ऑडिएंस के लिए बन रही है. बॉलीवुड की पुरानी फिल्मों की कहानी देखें तो पता चलेगा कि पहले की फिल्मों का 'हीरो' चाय वाला भी होता था और डॉक्टर भी, हीरो सब्जी लाकर बेटे का फर्ज भी अदा करता था, और नौकरी कर पैसे कमाते भी दिखाया जाता था. लेकिन अब कि फिल्मों में ऐसा कुछ नहीं होता. अब की फिल्मों में  हीरो के पास हर वो सुविधा होती है जो आम आदमी के पास नहीं होती और दर्शक उनसे कनेक्ट नहीं कर पाते हैं. 





वहीं NSD से पास आउट एक्टर समरदीप सूद कहते हैं, 'बदलाव बेहद जरूरी है और अभी कुछ टाइम से बॉलीवुड ने हीरोइस्म को बदला था. जैसे हीरो एक आम व्यक्ति होने लगा है. नो बॉडी, नो एक्स्ट्रा हीरोइस्म. लेकिन पूरे बॉलीवुड ने इस बदलाव को पचास प्रतिशत भी नहीं अपनाया.


ऑडियंस को हमेशा कुछ नया देना आर्टिस्ट के ज़िम्मेदारी है. जो बॉलीवुड नहीं कर पा रहा है और न वो अपनी फिल्म के हीरो को ग्रैंड बना पा रहा है, जैसे साउथ सिनेमा कर रही है. 


उन्होंने कहा कि साउथ सिनेमा काफी समय से अच्छा काम कर रहा है, लेकिन कोविड में टीवी पर और हिंदी में डब होकर आने पर साउथ की फिल्मों को बहुत ज्यादा देखा गया. दर्शक उसमे हो रहे एक्सपेरिमेंट को पसंद भी कर रहे हैं.


मास ऑडियंस को एंटरटेनमेंट चाहिए जो साउथ सिनेमा में कूट-कूट कर मिलता है. कैची डायलॉग्स, ओरिजनल कॉन्टेंट साउथ सिनेमा को हिट बना रहा है.


इसके अलावा NSD बनारस के पुनीत कौशल कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि बॉलीवुड से हीरो गायब हो गए हैं, मुझे लगता है बॉलीवुड फिल्मों में बदलाव की जरूरत है.


फिल्मों के फ्लॉप होने की सबसे बड़ी वजह OTT प्लेटफॉर्म है क्योंकि लोगों को घर बैठे ही आसानी से नए नए फिल्में देखने को मिल रहा है. जब OTT नहीं होगा तो एक बार फिर लोग घर से बाहर निकलकर सिनेमाघर की तरफ रुख करेंगे. 


तनु वेड्स मनु में कंगना के साथ स्क्रिन शेयर कर चुकीं एक्ट्रेस काजल भडाना ने ABP न्यूज से बात करते हुए कहा कि हिंदी फिल्मों को जरूरत है एक मजबूत कहानी की.  आपने देखा होगा कि जब भी कोई अलग तरह की फिल्में रिलीज होती है तो लोग उसे पसंद भी करते हैं और वो अच्छी कमाई भी करती है. बॉलीवुड को प्यार मोहब्बत के इतर कुछ क्रिएटिव सोचना होगा. 





साउथ की फ़िल्मों के बॉलीवुड रीमेक का फ़ॉर्मूला क्यों फ़ेल हो रहा है?


एक समय था जब बॉलीवुड की फिल्में लोगों के दिलो- दिमाग पर छाई रहती थी. अमिताभ बच्चन की दीवार, डॉन, शोले जैसी तमाम फिल्में हैं जिसे आज भी लोग देखते हैं और पसंद करते हैं. धीरे धीरे दौर बदलता गया और बॉलीवुड ने साउथ और हॉलीवुड फिल्मों का रीमेक बनाना शुरू कर दिया.


उस वक्त लोगों ने भी बॉलीवुड के इस एक्सपेरिमेंट को काफी पसंद किया. सलमान खान की वॉन्टेड, अक्षय कुमार की राउडी राठौर और शाहिद की कबीर सिंह को ऑडिएंस ने जमकर प्यार दिया. लेकिन वो कहते हैं ना एक आर्टिस्ट को हमेशा अपनी चीजों के साथ एक्सपेरिमेंट करते रहना चाहिए.


धीरे धीरे साउथ के स्टार देश में किसी के लिये अनजान नहीं रहें. ओटीटी प्लैटफॉर्म आने के साथ ही साउथ की फ़ैन फ़ॉलोइंग हिंदी बेल्ट से ज्यादा बढ़ती गई. लोग साउथ फिल्मों के गाने गाने लगें और स्टाइल कॉपी होने लगी है. गानों और डायलॉग्स पर मीम्स और रील्स बनने लगे हैं. तो ऐसे में सिर्फ़ बॉलीवुड सितारों के साथ इन कॉपी-पेस्ट कहानियों को देखने का क्या मज़ा है.


साउथ की फ़िल्मों के बॉलीवुड रीमेक का फ़ॉर्मूला फेल होने का कारण बताते हुए एक्टर समरदीप सूद कहते हैं कि बॉलीवुड में साउथ का रिमेक बनाने का फार्मूला अब पुराना हो गया है


. अब वो दौर नहीं रहा जब फिल्म में ओरिजनल कहानी ना होकर रीमेक या कॉपी होने की मॉस ऑडियंस को भनक तक नहीं लगती थी. अब ऑडियंस ओरिजनल कहानियों को पहले ही चख चुकी होती है. तो कॉपी को हज़म करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. 




वहीं पुनीत कौशल ने इस सवाल के जवाब में कहा कि बहुत सी चीजें होती है. जैसे डायरेक्टर और एक्टर फिल्म को किस नजरिए से देखती हैं. किसी फिल्म का रीमेक करना जैसे दूसरे के चश्में से दुनिया देखना है. विजन हमारा नहीं तो हम उसे हूबहू कैसे बना सकते हैं. ये भी एक कारण है कि लोग ओरिजनल फिल्में ही देखना चाहते हैं. 'बॉलीवुड में तो प्रपोज़ल ही बन रहे हैं. उन्होंने कहा ऐसा लगता है कि बॉलीवुड ने अपनी ऑडियंस को टेकेन-फ़ॉर ग्रांटेड ले लिया था, लेकिन अब दर्शकों को ये कुबूल नहीं है.


फिल्म क्रिटिक सुनिल कदेल कहते हैं कि बॉलीवुड के लिए अब रिमेक का टाइम चला गया है. यहां फ़िल्में महंगी होती जा रही हैं, लेकिन कोई प्रोडक्शन वैल्यू ही नहीं है. साउथ की फिल्में 300 करोड़ तक की वैल्यू दिखती है. लॉकडाउन के दौरान घर में बैठे रहने और दिन भर सिनेमा देखने से ऑडिएंस का टेस्ट बदल गया है. अब उन्हें BMW से उतर हिरोइन को प्रपोज करता हीरो नहीं, बल्कि आम जनता की तरह ही दिखने वाला हीरो चाहिए.