प्रदीप चौबे का निधन: अपनी कविता से हंसाते-हंसाते व्यवस्था पर मार्मिक चोट करने वाले कवि थे प्रदीप
प्रसिद्ध हास्य कवि प्रदीप चौबे का निधन हो गया है. उनकी लिखी कुछ बेहतरीन कविताओं की पंक्ति यहां पढ़ें.
नई दिल्ली: दुनिया में सबसे मुश्किल काम है हंसी बांटना लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो अपना गम छुपाकर ज़माने को हंसाते हैं. ऐसे ही शख्स का नाम है प्रदीप चौबे. वहीं प्रदीप चौबे जिनके शेर या कविता सुनाने पर कभी तालियों की गूंज उठती थी तो कभी हंसी के ठहाके फूट पड़ते थे. वह हमेशा देश, काल, वातावरण और समाज को ध्यान में रखकर अपना हास्य अंदाज सबके सामने रखते थे. साथ ही उनकी कविताओं ने रूढ़िवाद पर करारा प्रहार भी किया. उनकी अधिकतर हास्य कविताओं में रूढ़िवादी मानसिकता पर गहरी चोट होती थी.
कहते हैं हास्य कवि किसी को ज़िंदगी में सिर्फ एक बार रुलाता है वह भी तब, जब वह दुनिया छोड़कर चला जाता है. प्रदीप चौबे भी सबको हंसाते-हंसाते अचानक रुलाकर चले गए. मध्यप्रदेश के ग्वालियर में उनका निधन हो गया. महाराष्ट्र के चंद्रपुर में जन्में प्रदीप चौबे का निधन हार्ट अकैट से हुआ. प्रदीप अब हमारे बीच नहीं रहें लेकिन उनकी लिखी पंक्तियों को पढ़कर अब भी चेहरे पर मुस्कान आ जाती है.
उनकी कविताओं की विशेषता
ज़िंदगी के हर पहलू पर आसान से आसान शब्दों में व्यंग करने का हुनर प्रदीप चौबे के पास था. उदाहरण के लिए आप कई बार रेलवे प्लेटफॉर्म पर गए होंगे जहां पूछताछ काउंटर पर जब आप जानकारी के लिए पहुंचे होंगे तो आपको कोई सीट पर बैठा नहीं दिखा होगा. व्यवस्था की इस कमी को हास्य-व्यंग के अंदाज में प्रदीप चौबे ने लिखा है
इनक्वायरी काउंटर पर किसी को भी न पाकर हमने प्रबंधक से कहा जाकर ' पूछताछ बाबू सीट पर नहीं है उसे कहाँ ढूंढें? ' जवाब मिला – 'पूछताछ काउंटर पर पूछें!'
कई बार खबर आती है फलाना पुल गिर गया. कई लोग मारे गए. पता चलता है कि पुल बनाने और उसकी निरीक्षण करने में कोताही बरती गई थी इसलिए पुल गिर गया. व्यवस्था के इस कमी को भी प्रदीप ने रेखांकित किया. उन्होंने लिखा
पुल पहली बरसात में बह गए केवल बनाने वाले रह गए!
प्रदीप चौबे सिर्फ हास्य नहीं बल्कि मुल्क के हालात को बयां करने वाले यथार्थवादी भी पंक्ति लिखते थे. देश की व्यवस्था में जो भ्रष्टाचार है और गरीबी है उसको प्रदीप चौबे ने लिखा.
मुल्क मरता नहीं तो क्या करता आपकी देख भाल है साहब
रिश्वतें खाके जी रहे हैं लोग रोटियों का अकाल है साहब
जिस्म बिकते हैं, रूह बिकती हैं, ज़िंदगी का सवाल है साहब
आदमी अपनी रोटियों के लिए आदमी का दलाल है साहब प्रदीप चौबे अपने फैन्स के बीच वजनदार कवि के नाम से फेमस थे. कई कविताओं के साथ उन्होंने गजलें भी लिखी थीं. प्रदीप चौबे को काका हाथरसी पुरस्कार समेत कई अन्य सम्मानों से नवाजा गया था. बता दें, प्रदीप दिवंगत हास्त कवि शैल चतुर्वेदी के भाई थे. कुछ दिन पहले ही छोटे भाई की आकस्मित मौत हो जाने की वजह से प्रदीप चौबे को गहरा सदमा लगा था.
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