दिल्ली में 26 जनवरी के उपद्रव के बाद गिरफ्तार लोगों की रिहाई की मांग दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तार लोगों के उपर लगे आरोप के बारे में जाने बिना कोई आदेश नहीं दिया जा सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि न तो याचिकाकर्ता हरमन प्रीत सिंह का मामले से कोई संबंध है, न ही उसने गिरफ्तार लोगों के परिवार से संपर्क कर पूरी जानकारी जुटाई है.


हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डी एन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच के सामने पेश हुई वकील आशिमा मांडला ने कहा कि दिल्ली पुलिस आधिकारिक रूप से 44 FIR में 122 गिरफ्तारी की बात कह रही है. लेकिन यह संख्या इससे ज़्यादा हो सकती है. कई लोग लापता हैं. उनका पता नहीं चल पा रहा है.


जज ने वकील से पूछे सवाल


इस पर कोर्ट ने वकील से कहा कि बिना यह जाने की गिरफ्तार लोगों पर FIR में क्या आरोप लगाए गए हैं, सबकी रिहाई के आदेश कैसे दिया जा सकता है. वकील ने दावा किया कि गिरफ्तारी के दौरान अरेस्ट मेमो जारी नहीं हुआ. परिवारों को सूचना भी नहीं दी गई. इस दावे पर सवाल उठाते हुए जजों ने कहा, “क्या आपने इन लोगों के परिवार से बात कर जानकारी जुटाई है? क्या आप दावे से कह सकते हैं कि किसी परिवार को पुलिस ने कोई जानकारी नहीं दी? या फिर जिन लोगों को आप लापता बता रहे हैं, उनमें कोई निजी काम से नहीं गया हुआ है?”


प्रचार के लिए दाखिल याचिका है- कोर्ट


वकील के पास इन बातों का कोई स्पष्ट जवाब नहीं था. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने कुछ परिवारों से व्यक्तिगत रूप से बात की है. इस जवाब पर असंतोष जताते हुए कोर्ट ने कहा, “याचिका में कहीं भी यह बात नहीं लिखी गई है. जिन लोगों के गायब होने की बात कही है, उनके परिवार का कोई हलफनामा भी नहीं लगाया गया है. यह जनहित याचिका नहीं बल्कि प्रचार के लिए दाखिल याचिका है.“


वकील ने दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट तलब किये जाने की मांग की. लेकिन याचिका को पहले ही पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन करार चुके कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया.


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