नई दिल्ली: भारत में अभी हर्ड इम्यूनिटी नहीं है, अभी इसमें में वक़्त लगेगा. 'संडे संवाद' नाम के कार्यक्रम के दौरान लोगों से बातचीत में स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा कि आईसीएमआर के दूसरे सीरो सर्वे जो जल्द आने वाला है, उससे जो संकेत मिल रहे हैं, उसके मुताबिक देश में अभी हर्ड इम्युनिटी विकसित नहीं हुई है.


हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता. संक्रमण के बाद जब मरीज ठीक हो जाता है, तब उसके शरीर में उस वायरस का मुकाबला करने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता बन जाती है, जिसे इम्यूनिटी कहते हैं. इसे एंटीबॉडी भी कहते हैं. जब ये संक्रमण से बड़ी आबादी में होता और लोग ठीक हो जाते हैं, तो उनमें ये रोग प्रतिरोधक क्षमता बन जाएगी और संक्रमण फैलने का खतरा कम हो जाता है, इसे हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं. ऐसा होने पर संक्रमण का खतरा बहुत कम हो जाएगा.


इसी साल मई में आईसीएमआर ने पहले सीरो सर्वे की रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कोरोना का राष्ट्रव्यापी प्रसार सिर्फ 0.73% होने का पता चला था. इस दूसरे सीरो सर्वे की रिपोर्ट आने से पहले खुद देश के स्वास्थ्य मंत्री ने बड़ा बयान दिया है. इसलिए डॉ हर्षवर्धन उन्होंने कहा, 'महामारी से तभी लड़ा जा सकता है, जब सरकार और समाज तालमेल के साथ मिलकर काम करे'.


इसके अलावा उन्होंने जानकारी दी आईसीएमआर दोबारा इंफेक्शन के बारे में शोध और जानकारी जुटा रही है. हालांकि उन्होंने बताया की ऐसे मामले ज्यादा नहीं हैं. डॉ हर्षवर्धन ने कहा 'आईसीएमआर फिर से संक्रमण होने की खबरों को लेकर उनका सक्रिय रूप से अन्वेषण और अनुसंधान कर रहा है. हालांकि फिर संक्रमण वाले मामलों की फिलहाल संख्या नगण्य है, सरकार इस विषय के महत्व के बारे में अवगत है.'


वहीं कोरोना पोस्ट कोविड तकलीफ पर भी जांच कर रही है. डॉ हर्षवर्धन ने बताया की 'सामने आते प्रमाण के बारे में कि कोरोना न केवल फेफड़ों को प्रभावित करता है, बल्कि अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है विशेष रूप से कॉर्डियोवस्कूलर और गुर्दे. केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय के कोविड-19 के इन प्रभावों की जांच के लिए विशेषज्ञों की समितियां गठित की हैं. आईसीएमआर भी इस विषय का अध्ययन कर रहा है.


रेमडिसिविर और प्लाज्मा थेरेपी जैसी इनवेस्टिगेटिव थेरेपी के व्यापक उपयोग के बारे में डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि सरकार ने इनके तर्क संगत उपयोग के बारे में नियमित रूप से कई परामर्श जारी किए हैं. निजी अस्पतालों को इनवेस्टिगेटिव थेरेपी के नियमित उपयोग के खिलाफ सलाह दी गई है.