नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण के मसले पर सुनवाई करेगा. कोर्ट ने दिल्ली में पिछले दिनों खतरनाक स्तर पर पहुंचे वायु प्रदूषण पर खुद संज्ञान लेते हुए यह सुनवाई शुरू की थी. पिछले हफ्ते कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि लोग घुट-घुट कर मर रहे हैं. इससे अच्छा है कि शहर को विस्फोटक से उड़ा दिया जाए. कोर्ट ने दिल्ली में एयर प्यूरीफायर टावर लगाने पर योजना बनाने के लिए भी कहा है.
बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिगड़ती वायु गुणवत्ता, बढ़ते कचरे और नहीं पीने योग्य पेयजल जैसे कारणों से दिल्ली नरक से भी बदतर हो गई है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि लोगों को मुआवजा देने के लिए राज्य प्रशासन को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए. न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने मुख्य सचिव विजय देव से कहा, “क्या आप दिल्ली में जल और वायु प्रदूषण के बारे में गंभीर हैं. आपके पास कूड़े को संभालने की सिर्फ 55 फीसदी क्षमता है. शेष 45 फीसदी के बारे में क्या?”
मुख्य सचिव ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि दिल्ली में दो सत्ता केंद्र होने के कारण शासन एक मुद्दा है. इस पर न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “दूसरों को दोष मत दीजिए और मत सोचिए कि आप बच सकते हैं. आप लोगों को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी हैं. यमुना नदी को साफ करने के लिए कितना पैसा आ रहा है और यह कहां जा रहा है…दिल्ली में पानी की स्थिति क्या है. हम शुद्ध पेयजल प्राप्त करने के लिए लोगों के अधिकार का खुद से संज्ञान ले रहे हैं.”
शीर्ष अदालत ने कहा कि भारत में अब जीवन सस्ता भी नहीं रहा है और भोपाल गैस त्रासदी में जो दिया गया, वह दुनिया भर में इसी तरह के मामलों में पीड़ितों को दिए गए की तुलना में कुछ भी नहीं है.
अदालत ने कहा, “आपके हिसाब से जीवन का मूल्य क्या है? लोग ब्रोन्कियल अस्थमा से पीड़ित हैं. क्या आप जानते हैं कि दिल्ली में कितने कैंसर रोगी हैं.” अदालत ने यहां तक कहा कि दिल्ली सरकार के शीर्ष प्रशासनिक अधिकारी को अपनी कुर्सी पर रहने का कोई अधिकार नहीं है.
न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “आप प्रदूषण के मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं. सरकारें एक-दूसरे पर दोष मढ़ने के बजाए एक साथ क्यों नहीं बैठतीं. सब कुछ इस अदालत के तहत नहीं किया जा सकता है.”
वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों के संबंध में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के मुख्य सचिवों की प्रतिक्रिया पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने प्रदूषण के मामलों के जवाब में गंभीरता नहीं दिखाने के लिए राज्य प्रशासन के शीर्ष अधिकारियों को दोषी ठहराया.
हरियाणा और पंजाब की सरकारों को आड़े हाथों लेते हुए अदालत ने कहा, “लोगों को गैस चैंबरों में रहने के लिए क्यों मजबूर किया जा रहा है? सभी लोगों को एक बार में मारना बेहतर है. एक ही बार में, विस्फोटक से भरे 15 बैग के साथ.”
शीर्ष अदालत ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को दिल्ली और उसके आसपास कारखानों के प्रतिकूल प्रभाव पर एक रिपोर्ट पेश करने का भी निर्देश दिया.
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