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राइट टू प्राइवेसी पर सुनवाई पूरी, 27 अगस्त से पहले फैसला

यूनिक आइडेंटफिकेशन नंबर या आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इन याचिकाओं में सबसे अहम दलील है आधार से राइट टू प्राइवेसी के हनन की. याचिकाकर्ताओं ने आधार के लिए बायोमेट्रिक जानकारी लेने को प्राइवेसी का हनन बताया है.

नई दिल्ली: राइट टू प्राइवेसी की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की बेंच ने आज सुनवाई पूरी कर ली. कोर्ट को ये तय करना है कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं. ये सुनवाई 8 दिनों तक चली.

क्यों हुई सुनवाई

यूनिक आइडेंटफिकेशन नंबर या आधार कार्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इन याचिकाओं में सबसे अहम दलील है आधार से निजता के अधिकार के हनन की. याचिकाकर्ताओं ने आधार के लिए बायोमेट्रिक जानकारी लेने को निजता का हनन बताया है.

जबकि सरकार की दलील थी कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है. अगर इसे मौलिक अधिकार मान लिया जाए तो व्यवस्था चलाना मुश्किल हो जाएगा. कोई भी प्राइवेसी का हवाला देकर ज़रूरी सरकारी काम के लिए फिंगर प्रिंट, फोटो या कोई जानकारी देने से मना कर देगा. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने ये तय किया कि सबसे पहले इस बात का फैसला हो कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार है या नहीं. इसके बाद ही आधार योजना की वैधता पर सुनवाई होगी.

9 जजों की बेंच क्यों

इसकी वजह 50 और 60 के दशक में आए सुप्रीम कोर्ट के 2 पुराने फैसले हैं. एम पी शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट के 8 जजों और खड़क सिंह मामले में 6 जजों की बेंच ये कह चुकी है कि राइट टू प्राइवेसी मौलिक अधिकार नहीं है. हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट की ही छोटी बेंचों ने कई मामलों में प्राइवेसी को मौलिक अधिकार बताया. इसलिए 9 जजों की बेंच ने पूरे मसले पर नए सिरे से विचार किया.

याचिकाकर्ताओं की दलील

याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रमण्यम, श्याम दीवान, अरविंद दातार, सोली सोराबजी समेत कई दिग्गज वकीलों ने जिरह की. उन्होंने गोविन्द बनाम मध्य प्रदेश, राजगोपाल बनाम तमिलनाडू जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट की ही छोटी बेंचों के फैसलों का हवाला दिया. इनमें प्राइवेसी को मौलिक अधिकार माना गया है.

उन्होंने 1978 में आए मेनका गांधी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया फैसले का भी हवाला दिया. इसमें 7 जजों की बेंच ने अनुच्छेद 21 यानी जीवन के अधिकार की नई व्याख्या की थी. कोर्ट ने इसे सम्मान से जीने का अधिकार बताया था. वरिष्ठ वकीलों की दलील थी कि इस लिहाज से निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत माना जाएगा.

ये भी कहा गया कि किसी की आँख और फिंगर प्रिंट उसकी निजी संपत्ति हैं. इनकी जानकारी देने के लिए उसे बाध्य नहीं किया जा सकता. सरकार को भी ये जानकारी लेने का हक नहीं है. पंजाब, कर्नाटक, प. बंगाल, केरल समेत कई गैर बीजेपी शासित राज्यों ने भी निजता के अधिकार के पक्ष में दलीलें रखीं.

केंद्र सरकार की दलील

सरकार की तरफ से कमान संभाली एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने. उन्होंने कहा, "किसी की प्राइवेसी का सम्मान किया जाना चाहिए. लेकिन इसे मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता. अगर ऐसा करना सही होता तो संविधान निर्माताओं ने इसे संविधान में जगह दी होती."

वेणुगोपाल ने आधार कार्ड से लोगों को मिल रहे लाभ का भी ज़िक्र किया. उन्होंने कहा, "कुछ लोग प्राइवेसी का हवाला देकर बायोमेट्रिक जानकारी नहीं देना चाहते. इसके चलते करोड़ों लोगों को भोजन और दूसरी ज़रूरी सुविधाओं से वंचित नहीं किया जा सकता."

आधार कार्ड बनाने वाली संस्था UIDAI की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार लोगों के निजी डाटा के संरक्षण को लेकर गंभीर है. इस बारे में उपाय सुझाने के लिए 10 सदस्यीय कमिटी गठित की गई है. जिसके अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी एन श्रीकृष्णा हैं.

कोर्ट का रुख

9 जजों की बेंच ने 8 दिन तक पूरे धैर्य के साथ सभी पक्षों को सुना. इस दौरान कोर्ट ने माना कि 50 और 60 के दशक में आए फैसले उस समय के हिसाब से थे. उनमें पुलिस को आपराधिक मामलों में हासिल तलाशी और छापे के अधिकार पर ज़्यादा चर्चा हुई थी. मौजूदा समय में जिस तरह लोगों के जीवन में तकनीक का दखल बढ़ा है, उसमें प्राइवेसी पर नए सिरे से विचार ज़रूरी है.

हालांकि, कोर्ट ने ये भी माना कि निजता के अधिकार के दायरे तय किए जाने चाहिए. हर सरकारी कार्रवाई को निजता के नाम पर रोका नहीं जा सकता.

27 अगस्त से पहले आएगा फैसला

इस मसले पर सुनवाई करने वाली 9 जजों की बेंच के अध्यक्ष चीफ जस्टिस जे एस खेहर 27 अगस्त को रिटायर हो रहे हैं. तय सिस्टम के मुताबिक किसी मामले को सुनने वाली बेंच के सदस्य जज के रिटायर होने से पहले फैसला आ जाता है. इसलिए, ये फैसला 27 अगस्त से पहले आ जाएगा.

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