हेग: इटेलियन मरीन मामले पर सोमवार को नीदरलैंड्स के हेग स्थित स्थाई मध्यस्थता न्यायालय में सोमवार को अहम सुनवाई शुरू हुई. दो भारतीय मछुआरों की मौत से जुड़े 2012 के इस एनरिक लेक्सी मामले में इटली अपने दो मरीन सैनिकों के खिलाफ भारत में चल रहे सभी केस खत्म करने की मांग कर रहा है. वहीं भारत ने इतालवी दलीलों का खारिज करने का आग्रह किया है.


करीब दो हफ्ते तल चलने वाली इस सुनवाई में आज भारत और इटली ने अपनी-अपनी आरंभिक दलीलें पेश की. इटली ने 15 फरवरी 2012 को हुई इस घटना में अपने सैनिकों के खिलाफ भारत में चल रहे हत्या के मामले को खत्म करने की गुहार के साथ परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन का दरवाजा खटखटाया था. अदालत में इतालवी एजेंट फ्रेंसेस्को अजारेलो ने कहा कि इस मामले में रोम का जुरिसडिक्शन होना चाहिए. महत्वपूर्ण है कि इतालवी पोत एनरिक लेक्सी पर तैनात नौसैनिक मरीन मैसिमिलानो लतोरे और साल्वातोर गिरोने को दो भारतीय मछुआरों अजीश पिंक और वेलेंटीन जेलेस्टीन की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.


घटना भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में हुई थी!


मामले पर पक्ष रखते हुए अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारतीय एजेंट और विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव बाला सुब्रमण्यम ने कहा कि भारत ने इस मामले में कहीं भी अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए कार्रवाई नहीं की है. न ही किसी तरह का कोई द्वेषपूर्ण कदम उठाया. बल्कि वही किया जो एक विदेशी जहाज से हुई गोलीबारी में अपने दो नागरिकों की मौत के बाद किया जाना अपेक्षित है.


सुब्रमण्यम ने कहा कि, 15 फरवरी 2012 को घटना भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन में हुई थी. इसके मामले की रिपोर्ट मिलने के बाद भारत सरकार ने घटना की पड़ताल के कदम उठाए. वहीं इटली के यह आरोप गलत हैं कि दोनों मरीन को जबरदस्ती गिरफ्तार किया गया. बल्कि उनसे जांच में सहयोग का आग्रह किया गया, जिसमें उनकी सहमति हासिल होने और बाकायदा लिखित मंजूरी के बाद भारत लाने पर गिरफ्तार किया गया. इतना ही नहीं इटली सरकार ने भी भारतीय अदालत का क्षेत्राधिकार मानते हुए इस मामले पर हुई न्यायालयीन प्रक्रिया और सुनवाई में हिस्सा लिया. ऐसे में इटली के यह कहना कि इस मामले पर भारत का क्षेत्राधिकार नहीं बनता, बेमानी है.


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करीब चार साल पहले परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन वाले इटली के अधिकारियों का कहना था कि एरिक लेक्सिया जहाज़ से इतालवी मरीन के गोली चलाने की घटना अंतरराष्ट्रीय जल सीमा में हुई थी जहां सामुद्रिक परिवहन सम्बन्धी यूएन नियमों (UNCLAWS) के अनुसार भारत का कोई क्षेत्राधिकार नहीं बनता. इसके अलावा समुद्री लुटेरों से रक्षा के लिए इतालवी व्यापारिक पोत पर तैनात मरीन अपनी राष्ट्रीय सैनिक ड्यूटी पर थे. UNCLAWS के तहत ड्यूटी पर तैनात सैनिकों पर इस तरह कार्रवाई नहीं की जा सकती.


क्या है मामला


15 फरवरी 2012 को भारत के केरल तट के करीब श्रीलंका से मिस्र जा रहे इतालवी पोत इनरिक लेक्सिया से भारतीय मछुआरा नौका सेंट एंटनी पर गोली चलाई गई. इटली का कहना है कि मछुआरा नौका की आक्रामक चाल देखने और समुद्रीय लुटेरों की आशंका के कारण पोत पर तैनात मरीन ने गोली चलाई. इस घटना में दो मछुआरे वेलेंटीन जेलेस्टीन और अजीश पिंक की मौत हो गई थी.


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भारत सरकार के मुताबिक यह घटना भारत के एक्सक्लूजिव इकोनॉमिक जोन में हुई जब मछुआरा नौका भारतीय तट से करीब 20 नॉटिकल मील पर थी और इतालवी पोत उससे कुछ मीटर की दूरी पर था. गोलीबारी की घटना की सूचना मिलने पर भारत ने आवश्यक कार्रवाई करते हुए पड़ताल शुरू की. इलाके में पोत आवाजाही के आंकड़ों से पता चला कि एनरिक लेक्सी पोत इसमें शामिल हो सकता है. लिहाजा इस तेल टैंकर से कहा गया कि वो जांच में सहयोग करे. बिनी किसी जबरदस्ती के उस पोत को वापस लौटने के लिए कहा गया.


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मामला पहले कोल्लम की अदालत में शुरू हुआ. बाद में इसे सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित किया गया. सुप्रीम कोर्ट की इजाजत से ही इतालवी मरीन सार्जेंट लाटोरे को स्वास्थ्य कारणों से सशर्त इटली जाने की इजाजत दी गई थी. बाद में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता ट्रिब्यूनल निर्देश के बाद सार्जेंट लाटोरे के जहां इटली में ही रहने की इजाजत मिल गई. वहीं सार्जेंट जेरोने को भी इटली जाने की मंजूरी हासिल हो गई. दोनों मैरीन बेल पर बाहर हैं और अगर अंतरराष्ट्रीय स्थाई मध्यस्थता न्यायालय अगर इटली के दावे को खारिज करता है और भारत के तर्कों को स्वीकारता है तो दोनों मरीन को वापस भारतीय अदालत के सामने पेश होना होगा.


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