नई दिल्ली: आज आशुरा यानि 10वीं मुहर्रम है. इस दिन पूरी दुनिया के मुसलमान मातम मनाते हैं. ये ग़म, ये मातम, ये अफसोस, ये अज़ादारी पैगंबर-ए-इस्लाम मोहम्मद के नवासे (नाती) इमाम हुसैन के कत्ल की दर्दनाक घटना की याद में मनाया जाता है.
आज से करीब 1400 साल पहले इराक के शहर कर्बला में उस वक़्त के हाकिम यज़ीद ने पैगंबर मोहम्मद के छोटे नवासे इमाम हुसैन, उनके परिवार और अजीज दोस्तों समेत 72 लोगों शहीद कर दिया गया था. शहीद किए जाने वालों में कई दूध पीते मासूम बच्चे भी थे. जिस दिन ये घटना घटी वो मुहर्रम की 10वीं तारीख थी. इसलिए हर मुहर्रम की 10वीं तारीख को कर्बला की घटना की याद में उन्हीं शहीदों का मातम मनाया जाता है और ताजिया निकाली जाती है. याद रहे है कि मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है.
क्या थी लड़ाई?
दरअसल, पैगंबर मोहम्मद के निधन के बाद इस्लाम में उनके उत्ताधिकारी को लेकर झगड़े शुरू हो गए. मामूली खटपट के बीच 30 साल तक पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे उत्ताधिकारी का राज चला, लेकिन पांचवें उत्ताधिकारी के बाद झगड़ा बढ़ता गया. पांचवें उत्ताधिकारी अमीर मुआविया बने और तब से ही लड़ाई शुरू हो गई. उस वक़्त पैगंबर मोहम्मद के बड़े नवासे इमाम हसन और अमीर मुआविया के बीच खटपट हुई, लेकिन सुलह हो गई और मुआविया अमीर बन गए. 19 साल तक (661 से 680) शासक रहने के बाद अमीर मुआविया ने अपने निधन से ठीक पहले अपने बेटे यज़ीद को अपना उत्तराधिकारी बना दिया. तब पैगंबर मोहम्मद के बड़े नवासे इमाम हसन का निधन हो चुका था, लेकिन छोटे नवासे इमाम हुसैन जिंदा थे और उन्होंने यजीद के गद्दी नशीन होने का विरोध किया.
तब इमाम हुसैन सऊदी अरब के शहर मदीने में थे, लेकिन शासन की राजधानी मदीना से 1132 किमी दूर ‘शाम’ (सीरिया का शहर) हुआ करता था. यजीद चाहता था कि इमाम हुसैन उन्हें अमीर (शासक) मान ले, लेकिन इमाम हुसैन ने इनकार कर दिया.
इमाम हुसैन पहले मदीन से मक्का आए, लेकिन समर्थन के लिए इराक के शहर कर्बला का सफर तय किया. उनके साथ उनका पूरा खानदान था. उनके अनुयायियों को मिलाकर कुल 72 की तादाद थी. इसमें महिलाएं, बच्चे और बूढ़े सभी थे. जब इमाम हुसैन कर्बला पहुंचे तो यजीद की फौज ने उनके काफिले को घेर लिया. यजीद ने अपनी मनमानी कुछ शर्तें रखीं, जिन्हें इमाम हुसैन ने मानने से फिर से इनकार कर दिया. इसके बदले यजीद की फौज से नवासे इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार और तमाम अजीज दोस्तों के साथ शहीद कर दिया.
लेकिन जिस दर्दनाक तरीके से इमाम हुसैन और उनके खानदान को शहीद किया गया वो बहुत ही बर्बर था. पहले पानी बंद किया गया, फिर बच्चों को कत्ल किया गया और फिर महिलाओं की हत्या की गई और इस तरह पूरे काफिले का कत्ल कर दिया गया. इसी ग़म में मुहर्रम का मातम किया जाता है.