नई दिल्ली: 16 दिसंबर 2012 को निर्भया के साथ गैंग रेप और हत्या करने वाले चारों दोषियों को आज सुबह फांसी दे दी गई है. सात साल से ज्यादा इंतजार करने के बाद निर्भया के माता पिता को आखिर इंसाफ मिला है. निर्भया के साथ हुई इस वारदात के बारे में जब भी सोचते हैं तो ऐसा ही एक और दर्दनाक मामला याद आ जाता है.
पश्चिम बंगाल के भवानीपुर में 5 मार्च 1990 को हेतल पारेख नाम की किशोरी के साथ भी निर्भया की तरह की घिनौनी हरकत की गई थी. उसके साथ रेप हुआ था और हत्या कर दी गई थी. उसके दोषी धनंजय चटर्जी को 14 अगस्त 2004 में अलीपुर के सेंट्रल जेल में फांसी के तख्ती पर लटकाया गया था.
दरअसल हेतल पारेख एक दसवीं कक्षा में पढ़ने वाली लड़की थी. कोलकाता में अपने मां-बाप के साथ भवानीपुर के एक अपार्टमेंट में तीसरे फ्लोर पर रहती थी. सामने वाले अपार्टमेंट में एक गुजराती सर से अक्सर पढ़ाई में मदद लेने जाया करती थी. उसके बोर्ड के एग्जाम चल रहे थे, तो टेस्ट वगैरह की जांच करवाने अक्सर उनके पास चली जाया करती थी.
पांच मार्च 1990 को भी वो एग्जाम देकर वापिस आई थी. उसके बाद उनसे कॉपी चेक करवाने गई थी. घर पर नहीं मिले, तो वापिस आ गई. इसके बाद शाम में उसकी मां मंदिर गई. जब वह लौटीं तो घर का दरवाजा बंद था. कई बार खटखटाने के बाद भी जब वह नहीं खुला तो मां ने चिल्लाकर लोगों को बुलाया और दरवाजा तोड़ा गया. दरवाज़ा तोड़ने पर मां और अन्य लोगों ने देखा कि हेतल की डेड ब़ॉडी पड़ी है. उसके शरीर पर 21 घाव थे.
जांच में शक वहीं काम करने वाले गार्ड धनंजय की तरफ गया. उस दिन उसकी ड्यूटी 2 बजे खत्म हो रही थी लेकिन उसे शाम पांच बजे तक वह वहीं देखा गया. कई लोगों ने उसे हेतल की बालकनी में होने के बारे में भी बताया था. लिफ्टमैंन ने भी अपनी गवाही में उसके हेतल वाले फ्लोर पर होने की बात कही थी. इसके बाद धनंजय फरार हो गया. दो महीने बाद उसे पकड़ा गया.
निर्भया की तरह लंबा चला केस
निर्भया की तरह ही यह केस भी काफी लंबा चला था. मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में इस केस ने हलचल पैदा कर दी थी. खबरों में कहा गया कि धनंजय ने हेतल को मारने के बाद उसकी लाश के साथ रेप किया. 1994 में हाई कोर्ट में अपील करने के बाद धनंजय के केस पर स्टे लग गया था. एक दिन गलती से दूसरी फाइलों में कुछ खोजबीन करते हुए धनंजय की फाइल मिली. नवम्बर 2003 में सवाल फिर उठा, कि अब तक इस पर से स्टे क्यों नहीं हटा. फिर जल्दबाजी में इस केस को निपटा दिया गया. 2004 तक आते आते धनंजय हर जगह से हिम्मत हार चुका था. आखिर जब राष्ट्रपति ने भी उस पर दया नहीं दिखाई तो जाकर फांसी चढ़ गया.
फांसी पर उठे सवाल
इस मामले में भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई) के दो प्रोफेसर और एक रिटायर्ड इंजीनियर ने अपने अध्ययन और शोध के आधार पर एक किताब लिखी है. खबरों के मुताबिक संयुक्त तौर पर लिखी इस किताब में दावा किया गया है कि धनंजय चटर्जी को हेतल पारेख मामले में गलत तरीके से फंसाया गया.