दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों की जांच के लिए कमिटी के गठन को हाई कोर्ट की मंजूरी, रिपोर्ट के आधार पर मिल सकेगा मुआवजा
27 मई को दिल्ली सरकार ने एक हाई पावर्ड कमिटी का गठन किया था. इस कमिटी को कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मरने वाले लोगों के परिवार की शिकायतों की जांच का जिम्मा सौंपा गया था.
दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों का पता लगाने के लिए गठित कमिटी को हाई कोर्ट ने मंजूरी दे दी है. दिल्ली सरकार की तरफ से बनाई गई इस कमिटी को उपराज्यपाल ने स्थगित रखने के लिए कहा था. लेकिन हाई कोर्ट ने इसे बहाल कर दिया है. हाई कोर्ट ने कहा है कि इस हाई पावर्ड कमिटी का कार्य क्षेत्र सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी ऑक्सीजन ऑडिट कमिटी से अलग है. इसका उद्देश्य मौत के कारण का पता लगाना है, जिससे दिल्ली सरकार परिवार को मुआवजा दे सके.
27 मई को दिल्ली सरकार ने एक हाई पावर्ड कमिटी का गठन किया था. इस कमिटी को कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मरने वाले लोगों के परिवार की शिकायतों की जांच का जिम्मा सौंपा गया था. कमिटी को यह देखना था कि क्या मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी थी. इसके आधार पर दिल्ली सरकार परिवार को मुआवजा देना चाहती थी. लेकिन उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार के आदेश पर रोक लगा दी थी. इसकी वजह यह थी दिल्ली के ऑक्सीजन ऑडिट के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पहले ही एक कमिटी का गठन हो चुका है और कोरोना से मरने वाले लोगों के परिवार को मुआवजा देने को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लंबित है. सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथोरिटी (NDMA) को न्यूनतम मुआवजा तय करने का आदेश भी दे रखा है.
उपराज्यपाल की रोक के बाद 4 जून को दिल्ली सरकार ने अपना आदेश वापस ले लिया था. इसके खिलाफ रीति सिंह वर्मा नाम की याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि 14 मई को उनके पति की मौत हुई थी. उन्हें कोरोना हुआ था. लेकिन दूसरी कोई गंभीर बीमारी नहीं थी. मौत की वजह इलाज में बरती गई कमी हो सकती है. ऐसे में दिल्ली सरकार को यह आदेश दिया जाना चाहिए कि वह उच्च स्तरीय कमिटी का गठन कर उसे इस तरह की शिकायतों की जांच के लिए कहे.
मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा ने भी उपराज्यपाल के निर्णय को गलत बताया और कहा कि ऐसे आदेश के पीछे कोई तर्कसंगत आधार नहीं था. आज हाई कोर्ट के जस्टिस विपिन सांघी और जसमीत सिंह की बेंच ने इन दलीलों को स्वीकार कर लिया. बेंच ने कहा कि कमिटी का कार्यक्षेत्र सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित ऑडिट कमिटी से अलग है. अगर दिल्ली सरकार कोरोना से मरने वाले लोगों के परिवार को मुआवजा देना चाहती है, तो उसके लिए नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट कमिटी (NDMA) के निर्णय की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने यह भी कहा है कि NDMA जो मुआवजा तय करेगा, अगर वह दिल्ली सरकार की तरफ से दिए जा रहे मुआवजे से अधिक होगा तो दिल्ली सरकार को बढ़ा हुआ मुआवजा देना होगा.