क्या नाबालिग मुस्लिम लड़की अपनी मर्ज़ी से कर सकती है शादी? सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तैयार
Supreme Court: पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल से कम आयु की लड़की से शारिरिक संबंध अपराध है, भले ही वह लड़की की सहमति से बनाया गया हो.
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट नाबालिग मुस्लिम लड़कियों की शादी से जुड़े एक अहम कानूनी सवाल पर सुनवाई को तैयार हो गया है. मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के एक फैसले से जुड़ा है. इस फैसले में हाई कोर्ट ने 16 साल की एक मुस्लिम लड़की की अपनी मर्ज़ी से की गई शादी को मान्यता दी थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में प्यूबर्टी (माहवारी) के बाद लड़कियों की शादी को सही माना गया है. इसके खिलाफ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
दरअसल, यह मसला कई तरह की कानूनी पेचीदगी में उलझा है. पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल से कम आयु की लड़की से शारिरिक संबंध अपराध है, भले ही वह लड़की की सहमति से बनाया गया हो. शादी से जुड़े ज़्यादातर कानूनों में भी लड़की के विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष रखी गई है. लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ में प्यूबर्टी हासिल कर चुकी लड़की के विवाह को सही माना गया है. जिस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट को करनी है, वह इसलिए अलग है क्योंकि इसमें लड़की ने परिवार की मर्ज़ी के बिना शादी की थी. यहां परिवार इस शादी को गलत बताते हुए विरोध कर रहा है.
16 साल की लड़की 21 साल का लड़का
इस मामले में मुस्लिम लड़की ने मुस्लिम लड़के से ही शादी की है. लड़की 16 साल की है और लड़का 21 का. लड़की के परिवार ने उसे नाबालिग बताते हुए शादी का विरोध किया था. लेकिन 13 जून को दिए फैसले में हाई कोर्ट ने इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत सही ठहराया और शादी को मान्यता दी. हाई कोर्ट ने कहा कि चूंकि प्यूबर्टी के बाद शादी मुस्लिम कानूनों में मान्य है और 16 साल की आयु तक लड़की इस शारीरिक अवस्था में पहुंच चुकी होती है. इसलिए, उसे कॉन्ट्रैक्ट ऑफ मैरिज यानी निकाह का अधिकार है.
प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ का हवाला
हाई कोर्ट ने इस फैसले में मुस्लिम कानूनों की व्याख्या के लिए प्रचलित सर दिनशाह फरदूनजी मुल्ला की किताब 'प्रिंसिपल्स ऑफ मोहम्मडन लॉ' के आर्टिकल 195 का हवाला दिया. इसी तरह का आदेश इससे कुछ समय पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने भी दिया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने 15 साल से अधिक उम्र की मुस्लिम लड़की और 25 साल के मुस्लिम लड़की के निकाह को सही ठहराया था. इस मामले में लड़की के परिवार ने उसके अपहरण का आरोप लगाया था और लड़की के नाबालिग होने के आधार पर लड़के के खिलाफ बलात्कार का केस भी दर्ज करवाया था.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में NCPCR ने पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के उस अंश पर तुरंत रोक की मांग की, जिसमें नाबालिग मुस्लिम लड़कियों के विवाह को सही कहा गया है. आयोग की तरफ से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उस पर सभी बच्चों के हितों की रक्षा की ज़िम्मेदारी है. एक नाबालिग लड़की विवाह या शारीरिक संबंध की अनुमति देने के योग्य नहीं होती. वह उसके परिणाम के बारे में विचार नहीं कर सकती. लेकिन हाई कोर्ट ने सिर्फ पर्सनल लॉ के हवाले से इसे सही घोषित कर दिया है.
जस्टिस संजय किशन कौल और अभय एस. ओका की बेंच ने इस बात पर सहमति जताई कि मामले में अहम कानूनी पहलुओं पर चर्चा की ज़रूरत है. कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश देने से मना करते हुए 7 नवंबर को सुनवाई की तारीख तय कर दी. जजों ने इस मामले में सहायता के लिए वरिष्ठ वकील राजशेखर राव को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया है.