(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'हाई कोर्ट को सुनवाई में तेजी लाने के लिए नहीं कर सकते बाध्य', सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कही ये बात?
Supreme Court On HC: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसके पास हाईकोर्ट में समय से समाधान लागू करने का अधिकार नहीं है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट उन्हें मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता.
Supreme Court On HC: सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने शुक्रवार (2 अगस्त) को एक केस की सुनवाई के दौरान बड़ा फैसला लिया है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट दोहराया कि वह हाई कोर्ट के मामलों को समयबद्ध तरीके से निपटाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है. जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने ये साफ किया कि हाई कोर्ट स्वतंत्र रूप से काम करते हैं, वे सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं हैं.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले ने इस बात पर जोर दिया कि हाई कोर्ट सर्वोच्च न्यायालय के अधीनस्थ नहीं हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट उन्हें मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता.
रोस्टर जज ने रोजाना 15 से ज्यादा मामलों की सुनवाई नहीं की
सुप्रीम कोर्ट की पीठ एक महिला गीता अरोड़ा जिसे सोनू पंजाबन के नाम से जाना जाता है. उसकी याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने इस आधार पर अंतरिम जमानत मांगी थी कि उसका बेटा छह विषयों में फेल हो गया है. अरोड़ा के वकील ने अफसोस जताया कि 36 अदालती बैठकों के बावजूद, दिल्ली हाईकोर्ट ने अभी तक उसकी सजा के निलंबन पर ध्यान नहीं दिया है. उन्होंने कहा कि रोस्टर जज ने प्रतिदिन 15 से अधिक मामलों की सुनवाई नहीं की है.
दिल्ली HC ने अब तक याचिका पर नहीं लिया कोई फैसला- वकील
इस दौरान गीता अरोड़ा की ओर से पेश हुए वकील ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि महिला के बच्चे को उसकी ज़रूरत है. उसे पहले भी पैरोल मिलती रही है. हालांकि, हाई कोर्ट ने अभी तक इस याचिका पर कोई फ़ैसला नहीं किया है. वकील ने कहा कि ये कोर्ट समय पर निपटान के लिए दिल्ली हाई कोर्ट को निर्देश दे सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं काम करती हाई कोर्ट- जस्टिस विक्रम नाथ
इस पर जस्टिस विक्रम नाथ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि हम हाई कोर्ट से अनुरोध कर सकते हैं कि वह आपकी सज़ा को निलंबित करने की याचिका पर विचार करे. लेकिन ऐसे अनुरोध न करें. हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अधीन काम नहीं करती हैं. ऐसे में हम उन्हें किसी विशेष मामले के समय से निपटाने के लिए निर्देश नहीं दे सकते.
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