पिछले कुछ महीनों पर नजर डालें तो देश में जरूरी खाने की चीजों, जिसमें दाल और खाने का तेल भी शामिल है की कीमतों में काफी उछाल आया है जिसका सीधा असर देश के आम घरों के बजट पर पड़ा है. लोगों का कहना है कि महामारी में रोजगार जितना कम हुआ महंगाई उतनी ही तेजी से बढ़ी. इस महंगाई के जहां कई अलग कारण है वहीं अंतर्राष्ट्रीय ग्लोबल कमोडिटी मूल्यों में उछाल भी इसका बड़ा कारण है.
50 से 30 प्रतिशत तक बढ़ गए तेल के दाम
खाने के तेल के एक ब्रांड की बात करें तो इसकी कीमत देश में 50 प्रतिशत तक बढ़ गई है और इसी तेल की कीमत बंगाल में 77 फीसदी बढ़ी है. वहीं सरसों का तेल, पाम-ऑयल और दूसरे खाने के तेल की कीमतों में जबर्दस्त 30 प्रतिशत का उछाल आया है. यहा हाल दालों का भी है तुअर जैसी दालों के दाम देश भर में कमोबेश 25 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं.
आंकड़े भी बताते हैं कि महंगाई बढ़ी है
सोमवार को जो आंकड़े आए थे उनसे साफ है कि महंगाई पिछले 6 महीने के सबसे उच्चे ऊंचे स्तर पर जाकर 6.3 फीसदी रही. मई के महीने में पेट्रोल के दाम बढ़ना भी इसकी एक वजह में शामिल हैं लेकिन इन बढ़ती कामतों ने आरबीआई को भी चिंता में डाल दिया है जिस पर अर्थव्यस्था को आर्थिक रूप से वापस पटरी पर लाने का दबाव है.
महामारी में परिवारों पर दोहरी मार
महामीर के दौरान जहां नौकरियां चली गईं, लोगों के काम रूक गए और उनकी कमाई बहुत कम हो गई ऐसे में महंगाई का बढ़ना, वो भी जरूरी खाने पीने की चीजों का, आम परिवारों के लिए समस्या लेकर आया है. रिटेल महंगाई डाटा के आंकड़े ये भी दर्शाते हैं कि ग्रामीण महंगाई दर 6.5 और शहरी क्षेत्रों में 6 प्रतिशत रहेगी. अर्थशास्त्रियों का कहना कि ग्रामीण क्षेत्रों में महंगाई दर का बढ़ना चिंता का विषय है. वहीं अर्थशास्त्रियों का ये भी मानना है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद दामों में कुछ स्थिरता के साथ कमी भी आ सकती है. साथ ही मानसून के असर से भी कीमतों पर असर दिखाई दे सकता है क्योकि अगर मानसून सही रहा तो खरीफ की फसल पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा. वहीं उम्मीद ये भी है कि वैश्विक दामों में कमी आने की वजह से भी खाने के तेल के दाम नीचे आ सकते हैं. वैश्विक दामों में सुधार के बाद जुलाई महीने में इसका असर भारत में भी देखने को मिलेगा.
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