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मां की मदद, सफाई, कपड़े धोना... बहुत मुश्किल उठा स्‍कूल जाती हैं लड़कियां, जानें कौन हैं यह बात कहने वाले जस्टिस सुधांशु धूलिया

Hijab Ban Verdict: जस्टिस धूलिया ने लड़कियों की शिक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि, ये बात आम है कि ग्रामीण इलाकों और कस्बों में लड़कियों को पढ़ाई के लिए काफी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

Hijab Ban Verdict Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट में लंबी सुनवाई के बाद भी हिजाब विवाद नहीं सुलझ पाया है. दो जजों की बेंच ने इस मामले पर अलग-अलग फैसले सुनाए, एक जज ने जहां कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, वहीं दूसरे ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज किया. जिसके बाद अब इस मामले पर बड़ी बेंच सुनवाई करेगी. इस मामले पर याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया था कि हिजाब पहनना मौलिक अधिकार है, जिसे छीना नहीं जा सकता, वहीं हाईकोर्ट ने ये फैसला सुनाया था कि हिजाब कोई धार्मिक लिबास नहीं है. इसीलिए इसे शैक्षणिक संस्थानों में नहीं पहना जा सकता. इस पूरे मामले पर जस्टिस धूलिया के फैसले की काफी चर्चा है, जिन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को पलटने की राय रखी.

हिजाब विवाद पर क्या बोले जस्टिस धूलिया?
सबसे पहले आपको ये बताते हैं कि आखिर जस्टिस सुधांशु धूलिया ने अपने फैसले में क्या कहा. जस्टिस धूलिया ने कहा कि "लड़कियों की शिक्षा काफी अहम है. लड़कियां काफी दिक्कतों का सामना कर स्कूल-कॉलेजों में पढ़ने आती हैं. हाई कोर्ट को धार्मिक अनिवार्यता के सवाल पर नहीं जाना चाहिए था. इसे व्यक्तिगत पसंद के तौर पर देखना चाहिए था. ना ही इससे ज्यादा और न ही इससे कम... मामले में मेरी राय अलग है. हाईकोर्ट का फैसला Article 19(1)(a) पर सवाल उठाता है. मैं कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला रद्द करता हूं." 

जस्टिस धूलिया ने लड़कियों की शिक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि, "ये बात आम है कि ग्रामीण इलाकों और कस्बों में लड़कियों को पढ़ाई के लिए काफी ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. उन्हें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में स्कूल जाने से पहले अपनी मां का हाथ बंटाना होता है, कपड़े धोने होते हैं और इसी तरह के बाकी काम भी करने होते हैं. इसी तरह की बाकी समस्याएं भी उनके सामने होती हैं. मेरा कहना ये है कि क्या हम उनकी जिंदगी बेहतर कर रहे हैं?"

कौन हैं जस्टिस धूलिया
सुप्रीम कोर्ट में हिजाब मामले पर ये अहम टिप्पणी करने वाले जस्टिस सुधांशु धूलिया का जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में हुआ था. देहरादून में उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई की, जिसके बाद उनकी आगे की पढ़ाई इलाहाबाद और लखनऊ में हुई. जस्टिस धूलिया ने 1986 में इलाहाबाद हाईकोर्ट से अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी. इसके बाद उन्होंने अपना करियर शुरू किया. उन्हें साल 2000 में स्टेट एडिशनल एडवोकेट जनरल के तौर पर भी नियुक्ति मिली थी. जस्टिस धूलिया ने 1 नवंबर 2008 से जनवरी 2021 तक उत्तराखंड हाईकोर्ट में बतौर परमानेंट जज काम किया. इसके बाद उन्होंने 10 जनवरी 2021 से लेकर 8 मई 2022 तक गुवाहाटी हाईकोर्ट में बतौर चीफ जस्टिस के तौर पर काम किया. मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति हुई थी. जस्टिस धूलिया एक स्वतंत्रता सेनानी के पोते हैं, उनके दादा जी ने भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था. 

ये भी पढ़ें - Karnataka Hijab Row: हिजाब विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में बंटा दोनों जजों का फैसला, अब बड़ी बेंच को सौंपा जाएगा मामला

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