राज्यसभा से हिमाचल प्रदेश की सुक्खू सरकार तक पहुंची सियासी रार, क्या अब भी कांग्रेस पर लटकी है तलवार?
हिमाचल प्रदेश में हाल में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने वाले कांग्रेस के छह विधायकों के कारण विधानसभा का गणित उलझा हुआ नजर आ रहा है. सरकार पर संकट है या नहीं, आइये समझते हैं.
Himachal Pradesh Political Crisis: हिमाचल प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के छह विधायकों की क्रॉस वोटिंग बाद राज्य सरकार के लिए राजनीतिक संकट पैदा हो गया. इन विधायकों ने बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन के पक्ष में मतदान किया था और कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी को हार का सामना करना पड़ा.
बुधवार (28 फरवरी) को पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने मंत्रिपरिषद से इस्तीफा देने की पेशकश करके इसे और बढ़ा दिया. इस संकट को टालने के लिए कांग्रेस ने बुधवार को कवायद शुरू की.
कांग्रेस की ओर से शिमला भेजे गए केंद्रीय पर्यवेक्षकों से मिलने के बाद विक्रमादित्य ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की ओर से इस्तीफा स्वीकार नहीं किए जाने की बात कहते हुए कहा कि पार्टी का एकजुट रहना जरूरी है और अब वह इस्तीफे पर जोर नहीं दे रहे हैं.
उधर, क्रॉस वोटिंग करने वाले विधायकों को विधानसभा से अयोग्य घोषित करने के मामले में विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने सुनवाई के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया. इस बीच राज्य सरकार विधानसभा में बजट प्रस्ताव पास कराने में सफल रही और विधानसभा का सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया.
दूसरी ओर विधानसभा अध्यक्ष ने बीजेपी के 15 विधायकों को निलंबित कर दिया, जिनमें विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर भी शामिल हैं. इन निलंबित विधायकों ने शुरू में सदन से जाने से इनकार कर दिया था, उनके इस कदम का परोक्ष तौर पर विधानसभा में सरकार के बजट को ध्वनि मत से पारित करने से रोकने की कोशिश के तौर पर देखा गया.
इस घटनाक्रम को देखते हुए सवाल उठ रहा है कि क्या राज्य की कांग्रेस सरकार पर अब भी तलवार लटक रही है? आइये जानते हैं.
क्या हिमाचल में कांग्रेस सरकार पर अब भी है संकट?
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से शिमला भेजे गए तीन पर्यवेक्षकों- भूपेश बघेल, भूपिंदर सिंह हुड्डा और डीके शिवकुमार की कोशिशों और विधानसभा में बजट प्रस्ताव के पास होने से राज्य सरकार के लिए खतरा फिलहाल टल गया है. कम से कम तीन महीने तक राज्य सरकार पर कोई संकट नहीं है, लेकिन सुक्खू सरकार पर जोखिम बना हुआ है. इसकी वजह क्रॉस वोटिंग करने वाले छह विधायकों की बीजेपी में शामिल होने की संभावना है.
बुधवार को विधानसभा की कार्यवाही में शामिल हुए इन विधायकों में से कुछ ने बीजेपी के साथ होने की बात भी कही. कांग्रेस के लिए अब इन विधायकों को मनाना जरूरी है क्योंकि उनके बागी रुख अख्तियार करने के बाद विधानसभा में गणित उलझ गया है.
हिमाचल विधानसभा का गणित
पार्टी के छह विधायकों की बगावत के बाद राज्य में कांग्रेस पास 40 में से 34 विधायकों का समर्थन बचा है. हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की 68 सीटें हैं और बहुमत का आंकड़ा 35 है. राज्य में बीजेपी के 25 विधायक हैं. तीन विधायक निर्दलीय हैं. क्रॉस वोटिंग के घटनाक्रम से पहले तीनों निर्दलीय विधायकों का समर्थन कांग्रेस के पक्ष में समझा जा रहा था, लेकिन अब माना जा रहा है कि वे बीजेपी को समर्थन कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस सरकार के सामने खतरा समझा रहा है.
अगर कांग्रेस के बागी विधायकों को विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है तो सदन में गणित बदल जाएगा. विधानसभा में कुल 62 विधायकों के रहने पर बहुमत के लिए 32 विधायकों का समर्थन जरूरी होगा. अगर विक्रमादित्य भी इस्तीफा दे देते हैं तो कांग्रेस के पास 33 विधायकों समर्थन होगा और खाली हुई सीटों पर उपचुनाव के परिणाम आने तक राज्य सरकार पर कोई खतरा नहीं होगा.
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