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मुसलमान, एनआरसी और डिलिमिटेशन..., जानिए क्या है असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के नए बयान के मायने?

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के मुकाबले अब परिसीमन को लेकर बेहद सकारात्मक नजर आ रहे हैं. उन्हें परिसीमन "सूबे का रक्षक" नजर आ रहा है.

असम में भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी का मुद्दा बीते कई सालों से दिल्ली तक बहस का केंद्र रहा है. लेकिन अब सरकारों को भी इसमें कुछ फायदा होता नहीं दिखाई दे रहा है. इसी बीच राज्य में परिसीमन से पहले असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने 4 जिलों का विलय कर दिया है. राज्य सरकार के इस फैसला का भी राजनीतिक दल खासा विरोध कर रहे हैं.

दरअसल एनआरसी को लेकर राज्य की सत्ता में काबिज बीजेपी ही खुश नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक अब बीजेपी और कुछ एनजीओ ने एनआरसी मसौदा सूची में "गैर-नागरिकों" के शामिल होने की बात उठाई है. अब सूबे की हिमंत बिस्वा सरकार वहां परिसीमन की खासी वकालत कर रही हैं.

बीजेपी और असम की सरकार का मानना है कि एनआरसी के मुकाबले सूबे का परिसीमन होने से कम से कम दो दशकों राज्य का भविष्य सुरक्षित रहेगा. इससे राज्य विधानसभा पर जनसांख्यिकीय बदलावों का कम असर पड़ेगा. वहीं दूसरी तरफ विपक्षी राजनीतिक दल परिसीमन के लिए 2001 की जनगणना को आधार बनाने पर सवाल उठा रहे हैं. 

सरकार परिसीमन को असम के बचाव की तरह क्यों ले रही है?

बीजेपी और कुछ एनजीओ का मानना है कि एनआरसी मसौदा सूची में 3.3 करोड़ आवेदकों में से केवल 19.06 लाख को छोड़ कर बहुत सारे "गैर-नागरिक" शामिल हैं. मुख्यमंत्री सरमा ने यह भी कहा कि पार्टी के राजनीतिक नेताओं को कुछ खोने की फिक्र नहीं है अगर परिसीमन के बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए अधिक सीटें आरक्षित होती हैं. ये इशारा उन सीटों की पुनर्व्यवस्था की तरफ है जहां मुस्लिम एक निर्णायक कारक रहे हैं. अच्छी खासी मुस्लिम आबादी वाले तीन जिलों  बजाली, विश्वनाथ और होजई को उनके पैतृक जिलों में मिला दिया गया है.

वहीं असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि परिसीमन सूबे के लिए वो सुरक्षा उपायों देता है जिसकी एनआरसी और 1985 के असम समझौते में परिकल्पना की गई थी लेकिन वो कामयाब नहीं हो पाई. उन्होंने यह बात एक जनसांख्यिकीय हमले को लेकर की थी क्योंकि बीजेपी और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों को लगता है कि आखिरकार असम को बंगाली भाषी या बंगाल मूल के मुसलमानों ले लेंगे. उन्होंने असम समझौते के मुताबिक स्थानीय लोगों के लिए संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक सुरक्षा उपायों की वकालत की है.

सीएम सरमा ने असम  में 12 बच्चे पैदा करने के लिए सरकारी नीतियों को दरकिनार करने वालों लोगों से कानून का पालन करने वाले छोटे परिवारों वाले समुदायों को बचाने के लिए सुरक्षा उपायों की बात कही है. सीएम बिस्वा सरमा के मुताबिक असफल एनआरसी के उलट परिसीमन कम से कम दो दशकों के लिए असम के भविष्य को यह सुनिश्चित करके बचा सकता है कि राज्य विधानसभा जनसांख्यिकीय बदलावों से कम प्रभावित हो.

असम सरकार ने बीते साल 31 दिसंबर को आनन-फानन में 4 जिलों का विलय करने का फैसला लिया. दरअसल हिमंत बिस्वा सरकार का ये फैसला 27 दिसंबर को चुनाव आयोग (ECI) के राज्य में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की अधिसूचना जारी करने के तुरंत बाद आया.

जहां लोग एक तरफ चुनाव आयोग के फैसले का स्वागत कर रहे हैं तो दूसरी तरफ परिसीमन के लिए 2001 की जनगणना को आधार बनाने को लेकर सवाल भी उठा रहे हैं. माना जा रहा है कि इस आधार पर किया गया परिसीमन राजनीतिक तौर पर सूबे में मुसलमान आबादी की अहमियत कम कर देगा. भले ही सूबे के लोग कुछ भी सोचे, लेकिन इसे लेकर सूबे के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा खासे खुश है. उन्होंने तो परिसीमन को असम के रक्षक का दर्जा तक दे डाला है.

 

ईसी की अधिसूचना और जिलों के विलय का फैसला

भारत के चुनाव आयोग-ईसीआई (Election Commission of India ECI) ने 27 दिसंबर को अधिसूचना जारी की थी. ये राज्य में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए जारी हुई थी. निर्वाचन क्षेत्रों के फिर से बनाने के लिए (Readjustment) परिसीमन आयोग ने नियमों के आधार पर साल 2001 की जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाया है.

इसके साथ ही आयोग ने कहा कि परिसीमन का काम पूरे होने तक सूबे में किसी भी नई प्रशासनिक इकाई को बनाने पर 1 जनवरी 2023 से रोक लग जाएगी, लेकिन इस अधिसूचना के जारी होने के 4 दिन बाद ही सूबे की सरकार ने 31 दिसंबर को 4 जिलों के विलय के फैसले का ऐलान कर डाला. 

दरअसल से 4 नए जिले जिन पुराने जिलों से अलग कर बने थे इनका उन्हीं में विलय करने का फैसला लिया गया है. विश्वनाथ जिले को सोनितपुर, होजई को नागांव, बजाली को बारपेटा और तमुलपुर को बक्सा जिले में मिला दिया गया है. जिलों के इस विलय के बाद इस सूबे में जिलों की संख्या 35 से 31 हो जाएगी.

सूबे की सरकार का चुनाव आयोग की रोक लागू होने से एक दिन पहले लिया गया ये फैसला किस रणनीति के तहत लिया इसे लेकर कयासों का दौर भी जारी है. दरअसल 1 जनवरी से चुनाव आयोग की रोक की वजह से जिले जैसी कोई भी प्रशासनिक इकाई नहीं गठित की जा सकती है. 

सूबे के सीएम ने क्यों मांगी माफी

दिल्ली में सूबे के मंत्रिमंडल की बैठक हुई थी. इसके बाद ही असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने प्रेस कांफ्रेस में सूबे के 4 जिलों के विलय का ऐलान किया था. इस दौरान उन्होंने इन चार जिलों में रहने वाले लोगों से माफी भी मांगी थी. उन्होंने कहा था कि वो उम्मीद करते हैं जिलों के लोग उनके इस फैसले की अहमियत को समझेंगे.

सीएम हिमंत बिस्वा ने ये भी कहा था कि सूबे, समाज और प्रशासनिक जरूरतों को देखते हुए ये फैसला लिया गया है, लेकिन सीएम बिस्वा ने ये साफ नहीं किया कि वो जरूरतें कौन सी हैं. गौरतलब है कि असम में ये 4 नए जिले 2015 से गठित किए गए थे.

इन चार में से एक साल पहले ही जनवरी 2022 में बने नए नवेले जिले तमुलपुर को तो फलने-फूलने का मौका मिलने से पहले ही उसे फिर से पुराने जिले में जोड़ दिया गया है. साल 2021 जनवरी में बना बजाली जिला भी दो साल बाद ही खत्म कर दिया गया.

क्या है परिसीमन और ये कैसे होगा?

संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत परिसीमन हाल की जनगणना के आधार पर लोकसभा और राज्य विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने की प्रक्रिया है. यह प्रक्रिया हर एक सीट पर मतदाताओं की संख्या को लगभग एक समान सुनिश्चित करने के लिए की जाती है. यह काम परिसीमन आयोग अधिनियम के प्रावधानों के तहत गठित एक स्वतंत्र परिसीमन आयोग जनगणना के बाद हर कुछ साल में करता है. 

ईसीआई के आदेश के मुताबिक परिसीमन आयोग निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के मकसद से अपनी खुद की गाइडलाइन्स और काम करने के तरीकों पर आखिरी फैसला लेगा. आयोग परिसीमन के दौरान भौतिक सुविधाओं, प्रशासनिक इकाइयों की मौजूदा सीमाओं, संचार की सुविधा और सार्वजनिक सुविधा को ध्यान में रखेगा.

मतलब परिसीमन को जहां तक हो सके ​​व्यावहारिक तरीके से किया जाएगा. इसके तहत निर्वाचन क्षेत्रों को भौगोलिक दृष्टि से कॉम्पैक्ट क्षेत्रों में रखा जाएगा. इसका मतलब है कि भौगोलिक नजरिए से जो इलाके एक-दूसरे के पास है उन्हें उन इलाकों के साथ ही रखा जाएगा. 

पोल पैनल के मुताबिक परिसीमन आयोग निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए मसौदा प्रस्ताव को आखिरी रूप देगा. इसके बाद इस प्रस्ताव को आम जनता से सुझावों और एतराजों को जानने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के राजपत्रों में प्रकाशित किया जाएगा. माना जा रहा है कि असम में परिसीमन की प्रक्रिया 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पूरी कर लिए जाने की संभावना है.

46 साल बाद ही क्यों हो रहा परिसीमन?

असम में विधानसभा और संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन की ये प्रक्रिया 46 साल बाद की जा रही है. इससे पहले परिसीमन अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत असम में निर्वाचन क्षेत्रों का आखिरी परिसीमन  1971 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर 1976 में किया गया था. 

देश में परिसीमन पैनल तीन बार (1952, 1963 और 1972) नियमित रूप से बनाए गए थे. इसके बाद 1981 और 1991 में जनगणना तो हुई, लेकिन परिसीमन का काम नहीं हुआ.

भारत के संविधान में 84वां संशोधन 2002 में हुआ. इसमें आबादी के आधार पर प्रत्येक राज्य के लिए आवंटित लोकसभा सीटों और राज़्यों की विधानसभा सीटों की संख्या में 2026 तक बगैर कोई बदलाव किए राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों को परिवर्तित तथा पुनर्गठित किया जाना तय किया गया.

12 जुलाई 2002 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में 2001 की जनगणना के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों परिसीमन करने के लिए आयोग का गठन किया गया था. 19 फरवरी 2008 को राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने परिसीमन आयोग के आदेश को लागू करने की मंजूरी दी.

2008 में इस परिसीमन आयोग की कवायद पूरी होने से पहले ही 4 उत्तर-पूर्वी राज्यों अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर और नागालैंड का परिसीमन राष्ट्रपति के अलग-अलग आदेशों के जरिए "सुरक्षा जोखिमों" की वजह से टाल दिया गया था. इसी तरह के हालातों की वजह से जम्मू-कश्मीर में भी परिसीमन नहीं करवाया गया था.

यहां यह बात ध्यान देने की है कि कानून-व्यवस्था के अलावा बीजेपी सहित असम में विभिन्न संगठन 2008 में परिसीमन का विरोध कर रहे थे, क्योंकि वे चाहते थे कि यह "अवैध अप्रवासियों" को बाहर निकालने के लिए नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने के बाद ही किया जाए. 

कुछ राजनीतिक दल परिसीमन से परेशान क्यों हैं?

केंद्र सरकार ने 6 मार्च, 2020 को चार उत्तर-पूर्वी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग का पुनर्गठन किया. यह काम सिर पर था तो कानून मंत्रालय ने 15 नवंबर, 2022 को भारत निर्वाचन आयोग से असम में परिसीमन करने का तकाज़ा किया.

चुनाव आयोग जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 8ए और 2001 की जनगणना के आधार पर इस सूबे में परिसीमन करेगा. असली मसला यहीं आकर फंसा है. धारा 8ए केवल पुनर्अभिविन्यास (Reorientation) की मंजूरी देती है और संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की कुल संख्या में किसी भी तरह के बदलाव को खारिज करती है.

इसे लेकर ही कुछ राजनीतिक दलों को परेशानी है. कांग्रेस के साथ अन्य विपक्षी पार्टियां को परिसीमन के लिए 2001 की जनगणना को आधार बनाने को लेकर एतराज है. कांग्रेस ने तो  परिसीमन की प्रक्रिया पर निगरानी के लिए कमेटी बना डाली है तो ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने इसे सूबे की सत्ता पर काबिज बीजेपी के राजनीतिक एजेंडा का नाम दे रही है.

रायजोर दल के विधायक अखिल गोगोई ने तो सवाल किया है कि "अगर विधानसभा सीटें नहीं बढ़ाई गईं तो इसका मतलब क्या बनता है?" इसी तरह से कांग्रेस नेता देवव्रत सैकिया ने कहा कि 2001 की जनगणना पर परिसीमन करना अन्यायपूर्ण होगा, खासकर जब  जम्मू कश्मीर में 2011 की जनगणना के आधार पर परिसीमन हुआ है. इससे यहां निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या में बढ़ोतरी हुई थी.

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक अमीनुल इस्लाम ने 2001 की जनगणना का इस्तेमाल करने के पीछे एक राजनीतिक एजेंडे की बात कही है. उनका कहना है कि 2011 की जनगणना से पता चलता है कि कुछ आरक्षित विधानसभा सीटों में अब मुस्लिम बहुसंख्यक हैं.

दरअसल असम में 16 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए और 8 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. सूबे में विधानसभा की कुल 126 सीटें है. वही लोकसभा की कुल 14 और राज्यसभा की 7 सीटें है. नए परिसीमन से मौजूदा विधानसभा सीटों की संरचना में बड़े स्तर पर बदलाव आने की संभावना जताई जा रही है.

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