(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Hindi Diwas: इन विदेशियों को खूब पसंद आई हिंदी की 'बिंदी', सबकुछ छोड़ दुनिया को सिखा रहे हिंदी भाषा
Hindi Diwas 2022: भारत में हिंदी को लेकर युवाओं का रुझान कम हो रहा है, तो दूसरी ओर विदेशियों की दिलचस्पी बढ़ रही है. ऐसे कई विदेशी हैं जिन्होंने न सिर्फ इसे अपनाया, बल्कि इसके विद्वान भी बन गए.
Hindi Diwas Special: आज 14 सितंबर है, हिंदुस्तान के लिए खास दिन. जी हां, 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इसके पीछे वजह ये है कि 14 सितंबर 1949 को ही संविधान सभा ने हिंदी को एक आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया था. तब से लेकर अब तक हिंदी ने कई दौर देखे, वक्त के साथ चीजें भी बदलती गईं और हिंदी का रूप भी. लेकिन पिछले एक दशक में देखने को मिला है कि हिंदी के प्रति यूथ का रुझान कम हो रहा है और युवा अंग्रेजी की तरफ ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. अपने ही देश में हिंदी की हालत खराब हो रही है. कई ऐसे युवा हैं जो हिंदी से बचना चाहते हैं. इन सबसे अलग एक और तस्वीर है जहां, दूसरे देश के लोग यानी विदेशी हमारी हिंदी को अपना रहे हैं. आज हम आपको मिलवाएंगे कुछ ऐसे ही विदेशियों से जिन्होंने न सिर्फ हिंदी को अपनाया, बल्कि एक तरह से इसके विद्वान भी बन गए.
1. इयान वुलफर्ड
ब्रिटेन में पैदा हुए इयान वुलफर्ड का भारत से या हिंदी से दूर तक कोई कनेक्शन नहीं था. इयान का हिन्दी से पहला सामना त्रिनिदाद में हुआ था. तब वह वहां अपनी मां के साथ गए थे. वहां उन्हें यह भाषा इतनी पसंद आई कि वह इस में डूबते चले गए. फिर उन्होंने हिंदी में बीए, एमए और पीएचडी भी की. इयान सिर्फ हिन्दी ही नहीं बल्कि मैथिली, भोजपुरी, नेपाली और संस्कृत भी बोलते हैं. फिलहाल वह ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं और ऑस्ट्रेलिया की ला ट्रोब यूनिवर्सिटी में हिन्दी के प्रोफेसर हैं. इससे पहले वह कार्नेल और सिराक्यूस यूनिवर्सिटी में भी हिंदी पढ़ा चुके हैं. इयान सोशल मीडिया पर भी खूब एक्टिव रहते हैं और हिंदी में ही पोस्ट करते हैं. अभी वह फणीश्वरनाथ रेणु पर रिसर्च कर रहे हैं और उन पर किताब लिख रहे हैं.
2. इमरै बंघा
इमरै बंघा मूलरूप से हंगरी के रहने वाले हैं. आज से करीब 17 साल पहले इनकी किताब हिंदी में आई थी, जिसका नाम था सनेह को मारग. यह रीतिकाल के सबसे अनूठे कवि घनानंद की जीवनी थी. इमरै बंघा ने घनानंद की पहली जीवनी लिख कर उनके जीवन के बारे में विस्तार से बताया था. इमरै बंघा लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में हिंदी पढ़ाते थे. इन्होंने खड़ी बोली के उद्भव और विकास को लेकर भी बहुत काम किया है.
3. रुपर्ट स्नेल
ब्रिटिश विद्वान रुपर्ट स्नेल ने भी हिंदी के लिए काफी काम किया है. इनकी किताब को अंग्रेजी भाषी समाज में हिंदी सीखने वालों के बीच सबसे अच्छी किताब मानी जाती है. इन्होंने ब्रजभाषा साहित्य पर काफी शोध किया है और किताबों पर काम किया है. ब्रजभाषा में कृष्णभक्ति काव्य परंपरा को लेकर हिंदी में इनके इतने काम बहुत कम ने किए होंगे. पहले लंदन के स्कूल ऑफ ओरिएंटल स्टडीज में प्रोफेसर रहे रुपर्ट स्नेल आजकल अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास, ऑस्टिन में प्रोफेसर हैं. वे निरंतर इसको लेकर प्रयोग करते रहते हैं कि किस तरह से अंग्रेजी भाषी लोगों को हिंदी सिखाने के लिए नए-नए तरह के कोर्स चलाए जाएं. स्नेल ने हिंदी कवि हरिवंशराय बच्चन की आत्मकथा का ‘इन द आफ्टरनून ऑफ टाइम’ के नाम से अंग्रेजी में अनुवाद किया था, जिसकी बहुत सराहना हुई.
4. मारिओला औफ्रेदी
इटली के मरिओला औफ्रेदी ने हिंदी और संस्कृत में काफी काम किया है. उन्होंने हिंदी में जितने अनुवाद किए हैं, उतने शायद ही किसी विदेशी ने किए हों. इटली के प्रसिद्ध वेनिस विश्वविद्यालय में मरिओला औफ्रेदी ने करीब 40 साल तक हिंदी पढ़ाया. इटली में कई पीढ़ियों को उन्होंने हिंदी साहित्य से जोड़ा है. वह मूर्धन्य कवि कुंवर नारायण और निर्मल वर्मा जैसे वरिष्ठ लेखकों के अनुवाद कर चुके हैं..
5. जिलियन राइट
हिंदी साहित्य के अंग्रेजी अनुवाद की बात में जिलियन राइट का नाम टॉप पर आता है. भारत में रहने वाली जिलियन ने हिंदी को लेकर जो काम किए हैं, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. यही वजह है कि हिंदी में उनके योगदान को खूब याद किया जाता है. इन्होंनने राही मासूम रजा के उपन्यास ‘आधा गांव’ और श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी’ के इंग्लिश में अनुवाद किया और ये दोनों काफी पॉपुलर भी हुए.
6. फादर कामिल बुल्के
हिंदी दिवस हो और फादर कामिल बुल्के याद न किए जाएं, ऐसा हो ही नहीं सकता. बेल्जियम में पैदा हुए फादर बुल्के ने राम कथा की उत्पत्ति और विकास पर ऐसा रिसर्च कर रखा है जिसे राम कथा के मायने में सबसे मानक शोध माना जाता है. इन्होंने अंग्रेजी और हिंदी का एक शब्दकोश भी बनाया जो काफी मशहूर है. इसे अंग्रेजी-हिंदी की सबसे मानक डिक्शनरी मानी जाती है. इसके अलावा भी इन्होंने हिंदी में काफी कुछ किया.
7. सेलिना थिलेमान
सेलिना थिलेमान ने संगीत की शिक्षा जर्मनी में और हिंदी की शिक्षा स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज लंदन से ली. इसके बाद उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से संगीत पर पीएचडी की. सेलिना ने ब्रजभाषा की गायन परंपरा पर शोध के लिए लंबे समय तक वृंदावन में अपना ठिकाना बनाया. ब्रजभाषा के भक्ति संगीत को लेकर उन्होंने अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं में नियमित रूप से लिखा और अपनी संगीत प्रस्तुतियों के माध्यम से गायन की उस लुप्त होती परंपरा को जीवित रखा. इस काम के लिए सेलिना ने कई बरसों तक ध्रुपद गायन की भी शिक्षा ग्रहण की.
8. पीटर बारान्निकोव
रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में हिंदी पढ़ाने वाले पीटर बारान्निकोव के पिता भी हिंदी के विद्वान थे और उन्होंने रामचरित मानस का रूसी भाषा में अनुवाद किया था. रूस में बारान्निकोव की पहचान हिंदी के प्रतिनिधि के रूप में थी. रूस में हिंदी सिनेमा को लेकर वे लेखन करते थे और एक पत्रिका भी निकालते थे, जो हिंदी सिनेमा पर ही केंद्रित होती थी.
9. रॉबर्ट ह्युक्सडेट
बात अगर हिंदी में विदेशियों के योगदान की हो तो रॉबर्ट ह्युक्सडेट का नाम भी सम्मान से लिया जाता है. इन्होंने 1980 के दशक के बाद हिंदी साहित्य, विशेषकर उत्तर-आधुनिक हिंदी साहित्य का परिचय इंग्लिश के जरिये विश्व साहित्य से करवाने में काफी अहम रोल अदा किया है. रॉबर्ट अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जिनिया में प्रोफेसर हैं.
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