तमिलनाडु में हिंदी पर फिर शुरू हुआ महासंग्राम, कमल हासन ने कहा- कोई शाह, सुल्तान या सम्राट...
कमल हासन ने कहा कि वह सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं लेकिन उनकी मातृभाषा हमेशा तमिल रहेगी. उन्होंने कहा कि एक बार फिर भाषा के लिए आंदोलन होगा.
नई दिल्लीः हिंदी दिवस के दौरान गृहमंत्री अमित शाह के एक देश एक भाषा वाले बयान पर तमिलनाडु में राजनीति शुरू हो गई है. अमित शाह के इस ट्वीट के बाद तमिलनाडु में हिंदी पर महासंग्राम फिर एक बार तेज हो गया है. जहां राजनीतिक पार्टियों ने हिंदी के खिलाफ आंदोलन करने की धमकी दी है. वहीं मक्कल नीधी मैयम के नेता और अभिनेता कमल हासन ने केंद्र सरकार को 'एक देश, एक भाषा' को बढ़ावा देने के खिलाफ चेतावनी दी है.
अपने ट्वीटर हैंडल पर विडियो जारी कर कमल हासन ने नाम न लेकर, अप्रत्यक्ष रूप से केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान पर हमला करते हुए कहा है कि भारत 1950 में अनेकता में एकता के वादे के साथ गणतंत्र बना था और अब कोई शाह, सुल्तान या सम्राट इससे इनकार नहीं कर सकता है.
'भाषा के लिए होगा आंदोलन'
कमल हासन ने यह भी कहा है कि वह सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं लेकिन उनकी मातृभाषा हमेशा तमिल रहेगी. साथ ही कमल ने आक्रामक अंदाज में कहा कि एक बार फिर भाषा के लिए आंदोलन होगा और यह जल्लीकट्टू आंदोलन से भी बड़ा होगा.
हिंदी को लेकर अमित शाह का बयान
बता दें कि हिंदी दिवस के दौरान अमित शाह ने ट्वीट कर कहा था कि "भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है परन्तु पूरे देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है जो विश्व में भारत की पहचान बने. आज देश को एकता की डोर में बाँधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वो सर्वाधिक बोले जाने वाली हिंदी भाषा ही है."
स्टालिन ने दी आंदोलन की धमकी
अमित शाह के बयान के बाद डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने भी हिंदी के खिलाफ अपना बयान देते हुए केंद्र सरकार को साठ के दशक में हुए आंदोलन को याद दिलाया और साथ ही यह धमकी भी दी कि इसी तरह का आंदोलन फिर एक बार होगा.
आपको बता दे कि तमिलनाडु में इससे पहले 1930 और 1960 के दशक में हिंदी विरोधी उग्र आंदोलन हो चुके हैं. 1937 में मद्रास प्रेसीडेंसी में सी राजगोपालाचारी के नेतृत्व में बनी इंडियन नेशनल कांग्रेस की पहली सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य कर दिया था, जिसका काफी विरोध हुआ था.
इसका ईवी रामासामी, जिन्हें पेरियार के नाम से जाना जाता है, और जस्टिस पार्टी (जिसका बाद में नाम द्रविड़ कझगम हो गया था) ने तीखा विरोध किया था. डीएमके इसी द्रविड़ कझगम से अलग होकर बनी है, जिसने 1965 में हिंदी विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया था.
आंदोलन में तमिलनाडु की अहम भूमिका
वर्ष 1965 में हिन्दी को आधिकारिक भाषा बनाने की पहल के खिलाफ तमिलनाडु में छात्रों की अगुवाई में काफी हिंसक प्रदर्शन हुए थे. जिसमें डीएमके ने बड़ी भूमिका निभाई थी.
ये विरोध प्रदर्शन और हिंसक झड़पें तकरीबन दो हफ्ते तक चलीं और आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 70 लोगों की जानें गईं. इससे पहले कई मामलों पर एआईएडीएमके का भी यही स्टैंड रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता भी हिंदी के विरोध में मोदी सरकार को लिखा था.
हिंदी का विरोध कर डीएमके, एआईएडीएमके समेत अन्य छोटी पार्टियां द्रविड़ राजनीति के गढ़ तमिलनाडु में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते रहे हैं. हालांकि इसमें भी कोई दो राय नहीं कि यही पार्टियां चुनाव के दौरान हिंदी बेल्ट के लोगों को खुश करने के लिए हिंदी में पोस्टर छपवाती दिखी है.
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