हिंदी रंगमंच दिवस: इन नाटकों की वजह से हमेशा जगमगाता रहेगा हिंदी रंगमंच का सूरज
इन नाटकों में शहरी परिवेश और उनकी समस्याओं को खास जगह दी गई है. ये नाटक अपने दौर में खासे लोकप्रिय तो थे ही मगर आज के दौर में भी इन नाटकों को बड़े ही शिद्दत से देखा जाता है.
नई दिल्ली: आज हिंदी रंगमंच दिवस है. हिंदी के नाटकों में आजादी के बाद हिंदी रंगमंच में नवलेखन का दौर आया था जहां जयशंकर प्रसाद, धर्मवीर भारती, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, शंकर शेष, भीष्म साहनी, मन्नू भंडारी, कमलेश्वर, असगर वजाहत जैसे नाम अपने नाटकों के चलते मशहूर हुए. इन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं में शहरी परिवेश और उनकी समस्याओं को खास जगह दी. इनके नाटक अपने दौर में खासे लोकप्रिय तो थे ही मगर आज के दौर में भी इन नाटकों को बड़े ही शिद्दत से देखा जाता है. जिसका सबसे बड़ा उदाहरण यह है कि इन नाटकों के मंचन के दौरान पूरा हॉल खचा-खच भरा रहता है.
आषाढ़ का एक दिन: इन्हीं नवलेखन के साहित्यकारों में जो नाम सबसे ज्यादा लोकप्रिय होता है वह नाम मोहन राकेश का है. अपने नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ में मोहन राकेश ने कालिदास के जीवन की कठोर वास्तविक्ताओं और उनकी कविताओं की कोमलता के आपसी द्वन्द्व को उभारा है. हालांकि, इन नाटक में बहुत से कठिन शब्द हैं फिर भी लोग इसे पसंद करते हैं.
अंधायुग: अन्य नाट्यकारों का जिक्र करें तो दूसरे विश्व युद्ध की त्रासदी को धर्मवीर भारती ने अपने नाटक 'अंधायुग' में महाभारत की कथा के स्वरूप में प्रस्तुत किया है. हालांकि, यह नाटक कविता के रूप में है, फिर भी इसके मंचन को लोगों ने काफी पसंद किया.
महाभोज: मन्नू भंडारी की रचना 'महाभोज' एक उपन्यास माने जाने के बजाए रंगकार्मियों की तरफ से मंचन की दृष्टि से ज्यादा सुलभ मानी गई. महाभोज में मन्नू भंडारी ने उस 'भोज' की तरफ लोगों का ध्यान केन्द्रित किया जिसे किसी की मृत्यु के बाद दिया जाता है. मन्नू भंडारी की नजर में यह रचना सियासतदानों के आकांक्षाओं की बीच पीसे जाने वाले मासूम लोगों की हत्या पर किया जाने वाला 'महाभोज' था.
जिस लाहौर नई वेख्या: असगर वजाहत का नाटक 'जिस लाहौर नई वेख्या' विश्व के सबसे बड़े पलायन की त्रासदी पर लिखा गया किसी भी तरह का पहला नाटक था. इस नाटक का मंचन और संवाद बटवारे की याद ताजा कर जाता है.
कबीरा खड़ा बाजार में: भीष्म साहनी का नाटक 'कबीरा खड़ा बाजार में' समाज से सबसे बड़े आलोचक कबीर की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है. जहां समाज में इतना असंतोष फैला हो, जगह-जगह हिंसा और दंगे हो रहे हों वहां ऐसे नाटक की वास्तविकता समाज को आईना दिखाने का काम करती है.
हिंदी रंगमंच में इन स्तंभों के चलते हिंदी साहित्य में नाटक की विधा हमेशा खुद को धनी महसूस करती रहेगी.