नई दिल्ली: जेपी हॉस्पिटल ने सामाजिक भाई-चारे को मजबूत करने की दिशा में कमाल का काम कर दिखाया है. जेपी हॉस्पिटल ने अपनी कोशिश से न केवल हिंदू और मुस्लिम परिवारों के बीच जन्म-जन्मों का बंधन बनाया बल्कि दो महिलाओं के पति की जान भी बचाई. इस दिलचस्प कहानी में हिन्दू और मुस्लिम महिलाओं ने एक-दूसरे के पति के लिए अपनी किडनी को दान कर दिया.
दरअसल ग्रेटर नोएडा के इकराम (29) और बागपत के राहुल (36) जेपी हॉस्पिटल पहुंचे. जहां उन्होंने अपनी किडनी से संबंधित बीमारी की जांच कराई. जांच में य़ह पता चला कि दोनों की किडनिया पूरी तरह खराब हो चुकी हैं और दोनों को एक-एक डोनर की जरुरत है. संयोग से दोनों मरीज के परिवार में कोई भी सदस्य किडनी डोनर के लिए उपयुक्त नहीं था. केवल इकराम की पत्नी रजिया और राहुल की पत्नी पवित्रा ही डोनर के लिए योग्य थे. हालांकि दोनों मरीज और उनकी पत्नी का ब्लड ग्रुप एक नहीं होने के कारण अपने-अपने पति को किडनी दान नहीं कर सकती थीं. दोनों मरीजों के परिवार के लोग नाउम्मीद हो चुके थे.
जेपी हॉस्पिटल के सिनियर किडनी ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. अमित देवड़ा ने बताया, “डॉक्टर्स की टीम ने दोनों परिवारों के साथ अलग-अलग बैठकें कीं. उन्हें यह बताया गया कि ऐसी स्थिति में यदि दोनों महिलाएं एक-दूसरे के पति के लिए किडनी का दान करें तो दोनों मरीज का जीवन बचाना संभव है. डॉक्टर्स की टीम ने दोनों परिवारों को किडनी विनिमय प्रत्यारोपण प्रक्रिया के बारे में समझाया. अच्छी बात यह हुई कि उनके परिवार वालों ने किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं दिखाई. दोनों महिलाओं ने आगे आकर किडनी दान करने का निर्णय लिया. इसके बाद अगली प्रक्रिया के तहत करीब 5 घंटे चले ऑपरेशन में इकराम की पत्नी रजिया की किडनी राहुल को और राहुल की पत्नी पवित्रा की किडनी इकराम को सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित की गईं.”
इस सफलता से उत्साहित होकर जेपी हॉस्पिटल के सीईओ डॉ मनोज लूथरा ने कहा, “इकराम पिछले एक साल से और राहुल पिछले तीन महीने से डायलिसिस कराने को मजबूर था. दोनों परिवारों के पास कोई दाता नहीं होने के कारण दोनों मरीज की जान खतरे में थी. जेपी हॉस्पिटल ने इस सफल किडनी ट्रांसप्लांट के माध्यम से मानवता का धर्म औक चिकित्सकीय धर्म को एक साथ निभाया. दोनों मरीजों की जिंदगी बचाकर एक नई उपलब्धि हासिल की. वास्तव में जेपी हॉस्पिटल का लक्ष्य ही स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में नया कीर्तिमान स्थापित करना है और इस सफलता को पाकर हमने यह कर दिखाया है.”
डॉ. मनोज लूथरा ने यह भी कहा कि सही मायने में जेपी हॉस्पिटल की अनोखी भूमिका के कारण न सिर्फ दो मरीजों की जान बची बल्कि हिंदू और मुस्लिम परिवारों का संबंध भी हमेशा-हमेशा के लिए एक-साथ जुड़ गया. दोनों महिलाओं ने अपने समाज की बहुत ही खूबसूरत तस्वीर पेश की है, जो आज हम सब के लिए प्रेरणा बन चुकी है.