Hindu Rashtra: हिंदुस्तान मतलब हिंदू राष्ट्र? आजकल चर्चा में क्यों ये मुद्दा, कहां से आया विचार, क्या कहता है संविधान?
Hindu Rashtra Explained: इन दिनों देश में 'हिंदू राष्ट्र' की मांग जोर से उठ रही है. बाबा बागेश्वर इसके लिए यज्ञ कर रहे हैं. आइए समझते हैं पूरा मामला.
Hindu Rashtra Controversy: भारत को हिंदुस्तान भी कहा जाता है. हिंदुस्तान दो शब्दों- हिंदू+स्थान से मिलकर बना है. यानी वह स्थान जहां हिंदू रहते हैं. हिंदुस्तान या हिंदू शब्दों की उत्पत्ति को लेकर कई इतिहासकारों के अपने-अपने मत हैं लेकिन भारत के बहुसंख्यकों के निश्चित धड़ों में आम धारणा है कि हिंदुस्तान में रहने वाले हिंदू हैं और जहां हिंदू रहें वो हिंदू राष्ट्र है. चूंकि इस ठप्पे का दस्तावेजीकरण नहीं है इसलिए 'हिंदू राष्ट्र' बनाने की मांग समय-समय पर जोर पकड़ जाती है.
आजकल चर्चा में क्यों हिंदू राष्ट्र का मुद्दा?
वर्तमान में हिंदू राष्ट्र का मुद्दा बेहद चर्चा में है और गरमाया हुआ है. इसके पीछे कई वजहें हैं. हाल में सुर्खियों में छा गए बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री हिंदू राष्ट्र की प्रतिज्ञा को लेकर सात दिवसीय यज्ञ कर रहे हैं, जिसमें बीजेपी और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को शिरकत करते हुए देखा गया है. धीरेंद्र शास्त्री ने कहा है कि "भारत हिंदू राष्ट्र बनेगा. हिंदुस्तान मतलब हिंदू राष्ट्र."
धीरेंद्र शास्त्री के अनुयायी मानते हैं कि बाबा ने अपने कथित चमत्कारों या क्रिया-कलापों से हिंदू जनमानस के एकजुट करने का काम किया है. वहीं हाल में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहा कि भारत हिंदू राष्ट्र था, है और रहेगा. राजस्थान में उन्होंने सनातन धर्म को राष्ट्रीय धर्म बताया. वहीं, भोपाल सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर वक्फ बोर्ड पर निशाना साधकर सनातन बोर्ड बनाने का समर्थन कर चुकी हैं. उनके मुताबिक, सनातन धर्म ही राष्ट्रधर्म है.
हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को खारिज करने वालों में भी कई धड़े शामिल हैं. प्रमुख तौर पर एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी को अक्सर मसले पर सवाल करते हुए देखा जाता है. बकौल ओवैसी अगर हिंदू राष्ट्र बनेगा तो क्या अंबेडकर के संविधान का क्या होगा, क्या इसे जला दिया जाएगा और नया संविधान बनेगा? वह मामले पर सरकार की चुप्पी पर सवाल उठा चुके हैं.
'देश' और 'राष्ट्र' में अंतर
'हिंदू राष्ट्र' का विचार समझने से पहले 'देश' और 'राष्ट्र' में अंतर पता होना जरूरी है. आमतौर पर राष्ट्र को लोग देश के रूप में समझते हैं लेकिन वास्तव में इनमें अंतर है. जानकार बताते हैं कि एक जैसी सांस्कृतिक पहचान रखने वाले लोगों के समूह को राष्ट्र कहते हैं जबकि देश का मतलब जमीन के टुकड़े से है, जिसकी अपनी स्वायत्त और राजनीतिक पहचान होती है. एक राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान को लेकर एक उदाहरण अंग्रेजों के शासन से जुड़ा हुआ दिया जाता है. कहा जाता है कि ब्रिटिश लोगों ने पूरे भारत पर राज किया, इस प्रकार पूरा देश एक सूत्र में बंध गया, फिर अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश के लोग एकजुट हुए, इससे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ 'राष्ट्रीय आंदोलन' खड़ा हो गया.
हिंदू राष्ट्र का विचार कहां से आया?
हिंदू राष्ट्र को लेकर विचार कहां से आया, इसे लेकर भी जानकारों के बीच अलग-अलग मत हैं. कोई इसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के उद्देश्य की उपज बताता है तो कई 'हिंदुत्व' का विचार देने वाले स्वतंत्रता सेना विनायक दामोदर सावरकर इसके लिए जिम्मेदार मानता है. सावरकर ने हिंदुत्व को लेकर दो किताबें लिखी थीं- एक 'हिंदुत्व: कौन हैं हिंदू' और दूसरी 'एसेंशियल्स ऑफ हिंदुत्व'. उन्होंने हिंदुत्व को एक दर्शन के रूप में परिभाषित किया था. सावरकर के मुताबिक केवल हिंदू की हिदुत्व के दायरे में नहीं आते हैं, भारत में जन्म लेने वाले मुस्लिम और ईसाई हिंदुत्व का हिस्सा हैं. उनका तर्क था कि भारत में पैदा हुए मुस्लिमों और ईसाइयों के पास अलग से राष्ट्र, नस्ल या संस्कृति नहीं है, इसलिए वे हिंदुत्व में ही आते हैं.
आरएसएस पर आरोप लगता है कि संगठन अपनी स्थापना (1925) के समय से हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को अमली जामा पहनाने के लिए काम कर रही है. इसी के साथ कई दक्षिणपंथी विचारधारा वाले या हिंदूवादी संगठनों और संस्थाओं की ओर से गाहे-बगाहे भारत को हिंदू राष्ट्र बनाए जाने की मांग अक्सर जोर पकड़ती रहती है.
क्या कहता है संविधान?
भारत के संविधान नें हिंदू राष्ट्र का जिक्र नहीं है. संविधान के अनुच्छेद 25 (2ख) में हिंदू शब्द देखने को मिलता है. इसमें कहा गया है कि इस अनुच्छेद की कोई बात ''सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की 'हिंदुओं' की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों (बड़े समूह के भीतर अलग-अलग समूह) के लिए खोलने का उपबंध (प्रावधान) करती है.
बता दें कि 1976 में संविधान में 42वां संशोधन किया गया था, तब इसकी प्रस्तावना में 'पंथनिरपेक्ष' शब्द जोड़ दिया गया था. पंथ का आशय पथ (रास्ता) से होता है. देश में कई पंथों के लोग रहते हैं. आमतौर पर पंथनिरपेक्ष को धर्मनिरपेक्ष माना जाता है. ऐसे में समझा जा सकता है कि संविधान किसी पंथ या धर्म के आधार पर नहीं चलता है.
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