(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
15 जून 1947....वो तारीख जब पड़ी थी देश के बंटवारे की नींव
15 जून 1947 को माउंटबेटन की योजना पारित की गई और विभाजन के निर्णय को अखिल भारतीय कांग्रेस के सदस्यों ने स्वीकार कर लिया.
हर तारीख अपने अंदर कई कहानियों को समेट कर रखती है. वो घटनाएं जो अब तो गुजरे ज़माने की बात हो गई है लेकिन फिर भी जिस तारीख को वो घटी होती है उस तारीख को उस घटना की याद और उसके प्रभाव के बारे में हम जरूर सोचते हैं. इतिहास में ऐसी ही एक तारीख है 15 जून. यह वही तारीख है जिस दिन कुछ लोगों के 'निजी स्वार्थ' के लिए एक सियासी लकीर खींचने पर सहमति बनी थी. वही लकीर जिसने सबकुछ तक़सीम कर दिया था. तकसीम मुल्क़ को, क़ौम को, रिश्तों को, मुहाफ़िज़ों को, नदिओं-तलाबों को और सबसे ज़रूरी इंसानों को. एक खूनी खेल खेला गया. हिन्दुस्तान नाम का जिस्म बंट गया और एक हिस्सा पाकिस्तान बन गया. इक़बाल की पेशीन गोई और जिन्ना का ख़्वाब ताबीर की जुस्तजू में भटकता हुआ पंजाब के उस पार पहुंच गया. कई कारवां अपने अनजाने मंजिल की तरफ रवाना हो गए.
इस हादसे में कई औरतों/ बच्चियों का बलात्कार हुआ. इन हादसों के बारे में मंटो अपने अफसानों में कहते हैं, '' मैं उन बरामद की हुई लड़कियों और औरतों के मुताल्लिक सोचता तो मेरे ज़ेहन में सिर्फ़ फूले पेट उभरते हैं. इन पेटों का क्या होगा. इनमें जो कुछ भरा है, उसका मालिक कौन है, पाकिस्तान या हिन्दुस्तान''
15 जून 1947 - अखिल भारतीय कांग्रेस ने भारत के विभाजन के लिए ब्रिटिश सरकार की योजना को स्वीकार किया
15 जून 1947 ही वो तारीख है जब अखिल भारतीय कांग्रेस ने नई दिल्ली में भारत के विभाजन वाली ब्रितानिया सरकार की योजना को स्वीकार किया था. इस विभाजन की योजना को माउंटबेटन योजना के रूप में भी जाना जाता है. इस योजना की घोषणा भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा की गई थी.
अगस्त 1947 में भारत का विभाजन निस्संदेह सबसे दुखद और हिंसक घटनाओं में से एक है. दरअसल पाकिस्तान के निर्माण की वकालत ऑल इंडिया मुस्लिम लीग जिसे 1906 में ढाका में स्थापित किया गया था, उसने की थी. इसके मुसलमान सदस्यों की राय थी कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुस्लिम सदस्यों को हिंदू सदस्यों के जैसे समान अधिकार प्राप्त नहीं हैं. कांग्रेस उनके साथ भेदभाव करती है.
1930 में मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य की मांग करने वाले पहले व्यक्ति अल्लामा इकबाल थे, जिनका उस वक्त मानना था कि 'हिंदू बहुल भारत' से अलग मुस्लिम देश बनना महत्वपूर्ण है.
अल्लामा इकबाल ने मुहम्मद अली जिन्ना और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर एक नए मुस्लिम राज्य के गठन के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया. 1930 तक, मुहम्मद अली जिन्ना, जो लंबे समय से हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयासरत थे, अचानक भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में चिंतित होने लगे. इसके लिए वो कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने लगे, जिसके एक वक्त पर वो खुद भी सदस्य थे. उन्होंने कांग्रेस पर देश के मुसलमानों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया.
1940 में लाहौर सम्मेलन में, जिन्ना ने एक अलग मुस्लिम देश की मांग करते हुए एक बयान दिया. उस समय के सभी मुस्लिम राजनीतिक दल, जैसे खाकसार तहरीक और अल्लामा मशरिकी धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन के पक्ष में नहीं थे. अधिकांश कांग्रेसी नेता धर्मनिरपेक्ष थे और देश के विभाजन का भी विरोध करते थे. महात्मा गांधी धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन के खिलाफ थे और उनका मानना था कि हिंदुओं और मुसलमानों को एक देश में शांति से एक साथ रहना चाहिए. गांधी ने मुसलमानों को कांग्रेस में बनाए रखने के लिए भी संघर्ष किया, जिनमें से कई ने 1930 के दशक में पार्टी छोड़ना शुरू कर दिया था.
धार्मिक आधार पर अलग देश की मांग के बाद उत्तर भारत और बंगाल के बड़े हिस्से में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भीषण सांप्रदायिक हिंसा हुई थी, जिसके कारण मुसलमान और असुरक्षित महसूस करने लगे थे. एक ऐसा वक्त आ गया जब विभाजन एकमात्र विकल्प की तरह दिखने लगा जो भारत में बड़े पैमाने पर गृहयुद्ध को छिड़ने से रोक सकता था.
1940 तक पाकिस्तान की परिभाषा अस्पष्ट थी और इसकी दो तरह से व्याख्या की जा रही थी. एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में या संघबद्ध भारत के सदस्य के रूप में. 1946 में, एक कैबिनेट मिशन ने एक विकेन्द्रीकृत राज्य का सुझाव देकर कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच समझौता करने की कोशिश की. इस सुझाव में कहा गया कि स्थानीय सरकारों को पर्याप्त शक्ति दी जाएगी. जवाहर लाल नेहरू ने एक विकेंद्रीकृत राज्य के लिए सहमत होने से इनकार कर दिया और जिन्ना ने पाकिस्तान के एक अलग राष्ट्र की अपनी इच्छा को बनाए रखा.
ब्रितानियां हुकूमत ने भारत को दो अलग-अलग भागों में विभाजित करने की माउंटबेटन की योजना को पूरा कर लिया. 3 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा स्वतंत्रता की तारीख, 15 अगस्त 1947 तय की गई थी.
विभाजन की योजना के मुख्य बिंदु भी तय कर दिए गए.कहा गया कि पंजाब और बंगाल विधानसभाओं में सिख, हिंदू और मुस्लिम विभाजन के लिए मतदान करेंगे. यदि किसी भी समूह के बहुमत ने विभाजन के पक्ष में मतदान किया, तो प्रांतों को विभाजित कर दिया जाएगा. इसके अलावा, योजना में सिंध श्रेत्र को अपने लिए निर्णय खुद लेना था. वहीं उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत और बंगाल के सिलहट जिले की नियति एक जनमत संग्रह द्वारा तय करने की बात की गई थी.
15 जून 1947 को माउंटबेटन योजना पारित की गई और विभाजन के निर्णय को अखिल भारतीय कांग्रेस के सदस्यों ने स्वीकार कर लिया. पंजाब और बंगाल राज्यों को विभाजित किया गया. पश्चिम पंजाब का अधिकांश मुस्लिम हिस्सा पाकिस्तान का हिस्सा बन गया जबकि पश्चिम बंगाल अपने हिंदू बहुमत के साथ भारत में बना रहा. मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल पूर्वी बंगाल पाकिस्तान का हिस्सा बन गया. यही हिस्सा बाद में पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बन गया.
भारत की स्वतंत्रता और रेडक्लिफ रेखा द्वारा देश के दो हिस्सों में विभाजन से बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. लाखों लोग बेघर हुए. अधिकतर भारतीय मुसलमान पाकिस्तान में अपने 'नव निर्मित देश' जा रहे थे तो वहीं हिंदू और सिख जो अब पाकिस्तान में थे, भारत में आ रहे थे. विभाजन ने लाखों की जिंदगियां तबाह कर दी. लाखों को बेघर कर दिया. साम्प्रदायिक हिंसा का डर हर किसी को सता रहा था. भारत के विभाजन के कारण हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बड़े पैमाने दंगे हुए, जिसके परिणामस्वरूप अंतहीन हत्याएं, बलात्कार और अपहरण हुए.
इतना ही नहीं 1947 में दोनों मुल्क़ों के बीच जो नफरत की बीज बो दी गई वो आज एक बड़ा खतरनाक पेड़ बन गया है.