इस साल जी-20 समिट की अध्यक्षता भारत कर रहा है और अब तक दर्जनों बैठकें भी हो चुकी हैं. 22 मई से 24 मई तक चलने वाले इस समिट में एक के बाद एक विभिन्न देशों की बैठकों का क्रम जारी है. बीते सोमवार को पर्यटन समूह की बैठक भारत प्रशासित कश्मीर के श्रीनगर में हुई.


इस घाटी में हो रहे समिट पर दुनियाभर की नजरें टिकी हुई है. दरअसल साल 2019 में अनुच्छेद 370 खत्म किए जाने, तत्कालीन राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने और लगभग 37 साल बाद जम्मू कश्मीर में यह पहली अंतरराष्ट्रीय बैठक हो रही है. यही कारण है कि यहां सुरक्षा की जिम्मेदारी एनएसजी और मार्कोस कमांडो को दी गई है. मार्कोस कमांडो यूनिट दुनिया के सबसे ताकतवर कमांडो में से एक माने जाते हैं. 


क्या है मार्कोस कमांडो यूनिट


मार्कोस या यूं कहें कि मरीन कमांडो फोर्स, भारतीय सेना का एक ऐसी यूनिट है जिसकी ताकत का लोहा दुनिया भी मानती है. इस यूनिट ने कई बड़े ऑपरेशन को सफलता के साथ अंजाम दिया है. यही कारण है कि इस यूनिट को श्रीनगर में हुए G20 टूरिज्म समिट के सिक्योरिटी का जिम्मा सौंपा गया था. 


कौन है ये कमांडोज?


मार्कोस या मरीन कमांडो फोर्स इंडियन नेवी की स्पेशल ऑपरेशंस फोर्स यूनिट हैं जिन्हें किसी भी स्पेशल ऑपरेशन के लिए बुलाया जाता है. भारतीय नौसेना की इस स्पेशल यूनिट की स्थापना फरवरी साल 1987 में की गई थी.


उस वक्त इस फोर्स की स्थापना आतंकवादियों और समुद्री लुटेरों को सबक सिखाने के लिए किया गया था. मार्कोस की ट्रेनिंग अमेरिकी नेवी सील्स की तरह ही होती है. इस फोर्स में फिलहाल 1200 कमांडो हैं


इस कमांडो के बनने के पीछे भी एक कहानी ये भी है कि साल 1955 में भारतीय सेनाबल ने ब्रिटिश स्पेशल बोट सर्विस की मदद से कोचीन में एक डाईविंग स्कूल की स्थापना की. जिसका लक्ष्य था आर्मी के लोगों को फ्रॉगमैन या कॉम्बैटेंट ड्राइवर (Combatant Diver) बनाना.  


कॉम्बटैंट ड्राइवर का मतलब आसान भाषा में समझे तो लड़ाकू गोताखोर होता है और ये स्कूल आर्मी के लोगों को इसकी ट्रैंनिंग देता था. उन्हें वो स्किल्स सिखाता था. 


हालांकि जब साल 1971 में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ था तो उसमें ये लड़ाकू गोताखोर इतने सफल नहीं रहे थे क्योंकि उन्हें सही तरीके से ट्रेनिंग नहीं मिल पाई थी. इसके बाद साल 1986 में भारतीय नौसेना ने एक स्पेशल फोर्स यूनिट को बनाने का फैसला लिया. 


इस स्पेशल यूनिट का काम छापा मरना, एंटी टेर्रोरिस्म ऑपरेशन करना, समुद्र में हो रहे लूटपाट को कम करना था. इसके लिए साल 1955 में बनाए गए डाइविंग स्कूल से 3 वॉलेंटीयर ऑफिसर्स का चयन किया गया. जिन्होंने संयुक्त राज्य नौसेना, कोरोनाडो में ट्रेनिंग ली थी.


जब 1987 में भारतीय मरीन स्पेशल फोर्स, जिसका नाम 1991 में बदल कर मरीन कमांडो फोर्स रखा गया था.  उसका गठन हुआ तो यही 3 ऑफिसर्स उसके पहले 3 मेंबर थे. 


वैसे तो ये स्पेशल मरीन यानी कि समुद्री कमांडोज होते हैं लेकिन ये सभी तरह के माहौल चाहे वो हवा हो या समुद्र या फिर ज़मीन सभी जगह पर ऑपरेशन्स को अंजाम देने के लिए तैयार किए जाते हैं. मार्कोस कमांडो को दादीवाला फौज के नाम से भी जाना जाता है. 


मार्कोस की ट्रेनिंग


इस यूनिट के जवानों की ट्रेनिंग इतनी सख्त है कि आम इंसान इस ट्रेनिंग में एक दिन भी नहीं टिक पाएगा. मार्कोस के लिए चुने गए सैनिकों को तीन साल तक की सख्त ट्रेनिंग दी जाती है. ट्रेनिंग के दौरान 24 घंटे में से सिर्फ 4 घंटे ही सोने को मिलते हैं. जवानों को सुबह 4 बजे से देर शाम तक स्किल सिखाई जाती है. 


ट्रेनिंग के दौरान जवानों की पीठ पर 25-30 किलो वजन टंगा होता है. वहीं जवानों को कमर तक कीचड़ में धंसाकर 800 मीटर की दौड़ पूरी करवाई जाती है. इतना ही नहीं समुद्र और हड्डी जमा देने वाली बर्फ में भी कड़ी ट्रेनिंग करवाई जाती है. 


जवानों को 8-10 हजार मीटर की ऊंचाई से पैराशूट के साथ कूदना सिखाया जाता है. आखिर में इन्हें अमेरिका में नेवी सील के साथ ट्रेनिंग दी जाती है. इतनी प्रक्रिया के बाद कोई जवान मार्कोस कमांडो बनता है. 


मार्कोस जवान बनना है तो क्या करें 


जो जवान मार्कोस का हिस्सा बनना चाहते हैं, उन्हें पहले तीन दिन की फिजिकल और एप्टीट्यूड टेस्ट से गुजरना होता है. 80 फीसदी जवान इस टेस्ट को पार नहीं कर पाते और यहीं से बाहर निकल जाते हैं. इसके बाद उनकी खतरनाक ट्रेनिंग होती है. ट्रेनिंग की शुरुआत में कई दिनों तक जवानों को सोने नहीं दिया जाता. या कम सोने का समय मिलता है. 


पहली बार नहीं की जा रहा तैनाती 


ऐसा पहली बार नहीं हो रहा जब मार्कोस कमांडो को घाटी में तैनात किया जा रहा है रिपोर्ट्स की मानें तो पहली बार मार्कोस को 1990 के दशक के बीच  वुलर झील में तैनात किया गया था.


इस झील का इस्तेमाल पड़ोसी देश पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया करता था. लेकिन राष्ट्रीय राइफल्स और मार्कोस ने मिलकर इस क्षेत्र में हो रहे घुसपैठ को कम किया. 


35 सालों में कई सफल ऑपरेशन 


मार्कोस कमांडो ने साल 1987 से लेकर अब तक कई सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया है. साल 1987 में हुए पवन ऑपरेशन को इसी कमांडो ने सफलता दिलाई थी.


इसके अलावा साल 1988 में हुआ कैक्टस ऑपरेशन , 1991 में हुआ ताशा ऑपरेशन, साल 1992 में हुआ जबरदस्त ऑपरेशन ,1999 में हुआ कारगिल वार , 2008 में हुआ ब्लैक टॉरनाडो ऑपरेशन, 2015 में हुआ राहत ऑपरेशन आदि समेत कई ऑपरेशन को मार्कोस कमांडो ने ही अंजाम दिया है. 


मार्कोस कमांडो ने अपना लोहा बार बार मनवाया है और ये साबित किया है क्यों उन्हें सबसे निर्भीक सैनिक कहा जाता है. तभी तो श्रीनगर में G20 सम्मेलन की सुरक्षा की जिम्मेदारी मार्कोस कमांडो को दी गई है.


अब जानते हैं एनएसजी कमांडो फोर्स के बारे में 


देश में 26/11 का हमला हो या अक्षरधाम मंदिर का हमला, जब भी बड़े आतंकी हमले हुए हैं. एनएसजी ने ही इन आतंकियों को ढेर किया है. ट


एनएसजी का मतलब राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड है. इस यूनिट को साल 1984 में बनाया गया था. वर्तमान में इसमें 10 हजार सक्रिय कमांडो हैं. एनएसजी में देश के किसी भी सैन्य, अर्धसैनिक बल या पुलिस से जवान शामिल हो सकते हैं. इस यूनिट में शामिल होने के लिए 14 महीने की  ट्रेनिंग होती है.


यह गृह मंत्रालय के तहत काम करते है. यह वीआईपी सिक्योरिटी, हाईजैकिंग रोकने, बम का पता लगाने जैसे अन्य कामों में भी तैनात किए जाते हैं.


भारत के लिए क्यों है जी20 का ये सम्मेलन जरूरी 


जी20 दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करता है. इस सम्मेलन के दौरान सभी देश के शीर्ष नेता वैश्विक अर्थव्यवस्था के एजेंडे तय करते हैं. इसमें दुनिया की 19 टॉप अर्थव्यवस्था वाले देश और यूरोपीय संघ शामिल है. 


जी20 सदस्य देशों में ही दुनिया का 85 प्रतिशत कारोबार होता है. इस संगठन को साल 1999 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद बनाया गया था. इसका असर साल 2008 के बाद से दिखा जब आर्थिक मंदी के बाद सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सालाना सम्मेलन शुरू हुआ. 


शुरुआत में तो जी20 सम्मेलन से अंतरराष्ट्रीय कारोबार और आर्थिक लक्ष्यों को लेकर देशों के बीच समन्वय स्थापित हुआ. लेकिन धीरे-धीरे जैसे विश्व के मुद्दे बदलते गए जी20 का एजेंडा भी बदलता चला गया. अब इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन और ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद’ जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होने लगी. 


भारत ने  G20 को हमेशा से ही एक मजबूत संगठन बनाने और सदस्य देशों के बीच आर्थिक के साथ ही मानवीय सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया है. भारत का मानना रहा है कि दुनिया के शीर्ष ताकतों को सिर्फ अपने बारे में नहीं सोचना चाहिए. ऐसे देश जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं उन्हें छोटे-छोटे देशों के हितों का भी उतना ही ख्याल रखना होगा. प्रधानमंत्री के एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य का मंत्र इस बात की ओर ही संकेत है.


भारत में वैश्विक विकास को फिर से पटरी पर लाने, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और डिजिटल परिवर्तन जैसे वैश्विक चिंता के प्रमुख मुद्दों पर दुनिया की अगुवाई करने की क्षमता है. इस पहलू को अब दुनिया की तमाम बड़ी शक्तियां भी स्वीकार करने लगी हैं.


श्रीनगर में क्यों किया गया आयोजन 


बीबीसी की एक रिपोर्ट में कश्मीर मामलों के जानकार प्रोफेसर अमिताभ मट्टू ने बताया कि श्रीनगर में टूरिज्म वर्किंग ग्रुप की बैठक कर भारत दुनिया को दिखाना चाहता है कि साल 2019 के बाद से कश्मीर में बहुत विकास हुआ है और वहां शांति का माहौल बना है.


दरअसल साल 1955 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कश्मीर का मुद्दा छाया हुआ था. भारत ने सोवियत संघ के प्रधानमंत्री निकोलाई बुल्गानिन और कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महासचिव निकिता ख्रुश्चेव को श्रीनगर बुलाया और उन्हें एक ओपरा दिखाया. सोवियत संघ के दोनों नेताओं ने वहां बयान दिया कि कश्मीर भारत का अटूट अंग है."


पाकिस्तान चीन के अलावा ये देश भी नहीं हुए शामिल


पाकिस्तान ने श्रीनगर में होने वाली बैठक का विरोध करते हुए इस समिट में शामिल होने से मना कर दिया था. इसके बाद चीन, तुर्की और सऊदी अरब भी इस सम्मेलन में शामिल नहीं हुए. मिस्र को भी विशेष अतिथि के तौर पर बुलाया गया था लेकिन मिस्र भी बैठक में शामिल होने नहीं आया है.


अच्छ संबंध होने के बाद भी शामिल नहीं हुआ ये देश


 भारत और सऊदी अरब के संबंध पिछले कुछ सालों में बेहतर हुए हैं. खासकर नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद. मिस्र के शामिल नहीं होने का फ़ैसला भी चौंकाने वाला है. क्योंकि सम्मेलन की शुरुआत से सिर्फ चार महीने पहले मिस्र के राष्ट्रपति अब्दुल फतल अल-सीसी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर भारत पहुंचे थे.