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जानिए- क्या है प्लास्टिक का इतिहास, बैकेलैंड ने जब इसे बनाया तो विज्ञान की दुनिया ने इसे चमत्कार माना

आज से देशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लग गया है. ऐसे में आइए जानते हैं क्या है इस प्लास्टिक का इतिहास और कौन हैं इसके जनक?

नई दिल्ली:  आज से देशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लग गया है. आज से सिंगल-यूज प्लास्टिक से बनने वाले प्रोडक्ट्स जैसे प्लास्टिक बैग स्ट्रॉ, कप्स, प्लेट, बोतल और शीट्स सब प्रतिबंधित है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2022 तक भारत को सिंगल-यूज प्लास्टिक से फ्री करने का लक्ष्य रखा है. उन्होंने इस साल लाल किले से अपने भाषण में देशवासियों से सिंगल-यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल को बंद करने की अपील की थी. इस को पूर्ण रूप से प्रतिबंध करने के लिए पीएम मोदी ने गांधी जयंती का दिन चुना था. अब जब देशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लग गया है तो ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर इस प्लास्टिक का इतिहास क्या है. साथ ही इसके जनक के बारे में भी आज हम आपको जानकारी देने जा रहे हैं.

क्या है प्लास्टिक का इतिहास और कौन है इसके जनक

आज समूचे विश्व में पर्यावरण की क्या हालत है यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है. प्लास्टिक और पॉलीथीन ने वातावरण में जहर घोल दिया है. आज जो प्लास्टिक लोगों के जीवन के लिए नासूर बन गया है उसके अविष्कार को सदी गुजर गए. इसका मकसद लोगों की ज़िंदगी को आसान बनाना था. प्लास्टिक के जनक लियो बैकलैंड हैं, जिन्होंने 43 साल की उम्र में फिनॉल और फार्मल डीहाइड नामक रसायनों पर प्रयोग के दौरान एक नए पदार्थ की खोज की. उन्होंने अपने प्रयोग के दौरान पहला कम लागत वाला कृत्रिम रेसिन बनाया जो दुनिभार में अपनी जगह बनाने वाला प्लास्टिक बना. इसका नाम बैकलाइट रखा गया.

बैकलाइट प्लास्टिक बनते ही पूरी दुनिया के बाजारों में आ गया. बीसवीं सदी के पहले तीस सालों के अंदर ही यह पूरी दुनिया में मशहूर हो गया. इसकी जमकर बिक्री शुरू हो गई. इससे लियो को काफी धन मिला. उनकी स्थिति अब पहले जैसी नहीं थी. इसके बाद हर जगह उनकी चर्चा इस अविष्कार के लिए होनी लगी. साल 1924 में मशहूर टाइम मैगजीन ने लियो की तस्वीर छापी. उनकी तस्वीर पहले पेज पर छपी थी.लियो की तस्वीर के नीचे लिखा था-न जलेगा और न पिघलेगा. इसके बाद देखते-देखते प्लास्टिक दुनिया भर में विकास का एक हिस्सा हो गया.

भारत में प्लास्टिक 60 के दशक में आया. प्लास्टिक आने के बाद से ही इसके अच्छे या बुरे परिणाम को लेकर बहस शुरू हो गई. कुछ लोगों का हमेशा से यह तर्क रहा है कि प्लास्टिक कागज और लकड़ी का सबसे उत्तम विकल्प है इसलिए वे इसे इको फ्रैंडली मानते हैं.

कितना खकरनाक है प्लास्टिक

प्लास्टिक सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए काफी नुकसानदायक है. इसके बनने से लेकर इस्तेमाल होने तक यह काफी बुरा प्रभाव छोड़ता है. दरअसल प्लास्टिक का निर्माण पेट्रोलियम से प्राप्त रसायनों के होता है और ऐसा माना जाता है कि इससे निकली जहरिली गैस सेहत के लिए काफी नुकसानदायक होती है. साथ ही प्लास्टिक पानी को भी प्रदुषित करता है. इससे उत्पादन के दौरान व्यर्थ पदार्थ निकलकर जल स्रोतों में मिलकर जल प्रदूषण का कारण बनते हैं. इसके अलावा गौरतलब तथ्य यह भी है कि इसका उत्पादन ज्यादातर लघु उद्योग क्षेत्र में होता है जहां गुणवत्ता नियमों का पालन नहीं हो पाता.

कौन हैं प्लास्टिक के जनक लियो बैकलैंड और कैसे किया अविष्कार ?

प्लास्टिक के जनक लियो बैकलैंड काफी गरीब परिवार से थे. उनके पिताजी जूतों की मरम्मत करते थे, वहीं मां घर-घर काम करती थी. लियो बैकलैंड काफी होनहार छात्र थे. पहले उनके परिवार ने उन्हें घर पर ही पढ़ने के लिए प्रेरित किया. फिर बाद में उन्हें महज 20 साल की उम्र में घेंट यूनिवर्सिटी में पीएच.डी. करने के लिए छात्रवृति मिली.

बैकलैंड की असली कहानी तब शुरू हुई, जब वह अमेरिका आये और न्यूयॉर्क में हडसन नदी के किनारे पर एक घर खरीदा. इस घर में समय बिताने के लिये उन्होंने एक प्रयोगशाला (लैब) बनाई थी, जहां पर 1907 में उन्होंने रसायनों के साथ समय बिताते हुए प्लास्टिक का अविष्कार किया था. प्लास्टिक का अविष्कार करने के बाद 11 जुलाई, 1907 को एक जर्नल में लिखे अपने लेख में बैकलैंड ने लिखा, ‘अगर मैं गलत नहीं हूं तो मेरा ये अविष्कार (बैकेलाइट) एक नए भविष्य की रचना करेगा.’

बैकलैंड असल में इलेक्ट्रिक मोटरों और जेनरेटरों में तारों की कोटिंग के लिये एक ऐसे पदार्थ की खोज कर रहे थे तो प्राकृतिक रूप से कीटों से प्राप्त पदार्थ लाख (गोंद जैसा एक चिपचिपा द्रव जो सूखने पर किसी भी सतह पर चिपककर पपड़ी तैयार कर देता है) का स्थान ले सके. बैकलैंड ने अपनी खोज 1907 में शुरू की और फिनॉल व फॉर्मेल्डिहाइड के मिश्रण से लाख जैसा चिपचिपा द्रव तैयार कर लिया. गर्म करने पर यह द्रव पिघल जाता था और ठंडा होने पर सख्त हो जाता था. शुरुआती प्रयोगों के तीन साल बाद 1912 में बैकलैंड ने अपने आविष्कार की घोषणा की और इसका नामकरण बैकेलाइट किया गया.

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