History Of The Day: 23 नवंबर 2019 की तारीख महाराष्ट्र के इतिहास में दर्ज हो गयी है. उस सुबह जिन लोगों ने अखबार पढ़ा और फिर टीवी देखा, वे लोग कश्मकश में थे कि आखिर किस पर यकीन करें. अखबार में हेडलाईन थी कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे होंगे लेकिन टीवी पर तो बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस शपथ लेते नजर आ रहे थे. उनके पीछे NCP के अजीत पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. सबके मन में सवाल था कि जो वे टीवी पर देख रहे हैं अगर वो सच है तो फिर रातोंरात सियासी घटनाक्रम कैसे बदल गया?


24 अक्टूबर 2019 को विधानसभा चुनाव के नतीजे आये जिसमें बीजेपी-शिवसेना को गठबंधन को बहुमत मिला. बीजेपी को 105 सीटें मिलीं और शिव सेना को 56. एनसीपी 54 सीटें पाकर तीसरे नंबर की पार्टी थी और 44 सीटें हासिल कर कांग्रेस चौथे नंबर पर थी. 288 सीटों की महाराष्ट्र सरकार में बहुमत का आंकडा 145 का है. भगवा गठबधन की सरकार बिना किसी रोडे के बन सकती थी. लेकिन पेंच फंस गया मुख्यमंत्री पद की कुर्सी को लेकर. शिव सेना के अध्य़क्ष उद्धव ठाकरे ने कहा कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने वादा किया था कि ढाई साल के लिये वो मुख्यमंत्री पद शिव सेना को देगी. लेकिन बीजेपी ने इंकार किया कि ऐसा कोई वादा किया गया था.
 
बीजेपी और शिव सेना के झगड़े पर NCP प्रमुख शरद पवार नजरें गड़ाये बैठे थे. उन्होने संजय राऊत के जरिये उद्धव ठाकरे को संदेश दिया कि अगर उद्धव तैयार हों तो एनसीपी उनके साथ मिलकर सरकार बना सकती है और मुख्यमंत्री पद शिव सेना के पास रह सकता है. उन्होंने कहा था कि बहुमत का आंकडा पूरा करने के लिये वो कांग्रेस को भी सरकार में शामिल होने के लिये मना लेंगे. हालांकि अब ऐसा लग रहा है कि उद्धव ठाकरे को पवार की बात जंच गयी है.


उद्धव की सहमति के बाद शरद पवार ने सोनिया गांधी से मुलाकात की और उन्हें सरकार में शामिल होने के लिये मना लिया. सोनिया की सहमति से तीन पार्टियों के गठबंधन का नाम तय हुआ महाविकास आघाडी. इसके बाद किस पार्टी को कितने मंत्रीपद मिलेंगे वगैरह का निर्णय करने के लिये 22 नवंबर की शाम को मुंबई के नेहरू सेंटर में एक बैठक बुलायी गयी जिसमें तीनों पार्टियों के आला नेता शामिल हुए.


कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं के बीच हुई थी बहस


बैठक में बाकी सब तो ठीक रहा लेकिन स्पीकर पद किसको मिले इस मुद्दे पर कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं के बीच बहस हो गयी. इस बहस के बीचो बीच शरद पवार बैठक से उठकर चले गये लेकिन नेहरू सेंटर के बाहर मौजूद पत्रकारों को उन्होने बताया कि मुख्यमंत्री पद के लिये उद्धव ठाकरे के नाम पर मुहर लग गयी है. वहीं कुछ देर में उनके पीछे अजीत पवार भी वहां से निकल गये.


सभी को लगा कि बीते महीनेभर से चल रहा सियासी ड्रामा अब खत्म हो जायेगा और अगले दिन उद्धव ठाकरे राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे. लेकिन उस बैठक के खत्म होने के 12 घंटे के भीतर ही जो कुछ हुआ उसने देश को हिला कर रख दिया. अगली सुबह देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार शपथ लेते नजर आये.


दरअसल इन 12 घंटों में ही पूरी कहानी बदल गयी. चुनाव प्रचार के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने एक तरह से धमकी दी थी कि अगर वे वापस सत्ता में आते हैं तो अजीत पवार को सिंचाई घोटाले में जेल की चक्की पिसवायेंगे. अब जेल जाने से बचने के लिये अजीत पवार के सामने चारा यही था कि वे बीजेपी की शरण में चले जायें. नेहरू सेंटर की बैठक खत्म होने के बाद अजीत पवार ने देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की और कहा कि अगर फडणवीस सरकार बनाते हैं तो वे समर्थन देने को तैयार है. 


NCP विधायकों ने दिखाई थी लिस्ट


पवार ने एनसीपी विधायकों के दस्तखत वाली वो लिस्ट भी दिखाई जो उनके पास थी. दरअसल ये लिस्ट कुछ दिनों पहले ही बनाई गई थी. उस वक्त हाजिरी दर्ज कराने के लिये सबके दस्तखत लिये गये थे. अजीत पवार ने फडणवीस (Fadnavis) को ये भी जताया कि वे जो कुछ कर रहे हैं वो शरद पवार की जानकारी में है और उनकी मंजूरी से हो रहा है. अजीत पवार से विधायकों की लिस्ट पाकर फडणवीस की बांछे खिल गयीं. उनके फिर से मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ हो चुका था. फडणवीस ने तुरंत तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को फोन करके इस बात की जानकारी दी. रात पौने बारह बजे तक पूरा प्लान तैयार हो गया. साढे बारह बजे फडणवीस ने राज्यपाल कोश्यारी को फोन करके प्लान की जानकारी दी. कोश्यारी अगले दिन दिल्ली जा रहे थे लेकिन फडणवीस के फोन के बाद उन्होने दौरा रद्द कर दिया. तय हुआ कि इससे पहले किसी को भनक लगे शपथविधी हो जानी चाहिये.


उस वक्त राष्ट्रपति शासन लगा था


उस वक्त महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगा हुआ था. प्लान के मुताबिक सुबह पौने 6 बजे गुपचुप राष्ट्रपति  शासन हटा लिया गया. पौने 8 बजे के करीब देवेंद्र फडणवीस और अजीत पवार अपने अपने परिवार के साथ राज भवन पहुंचे. उस वक्त एनसीपी के 12 विधायक भी मौजूद थे. इसके बाद सवा 8 बजे तक कोश्यारी ने फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. उस वक्त सिर्फ न्यूज एजेंसी एएनआई का कैमरा ही राज भवन में मौजूद था. उसने जैसे ही शपथविधि की तस्वीरें प्रसारित कीं, पूरे देश में हंगामा मच गया. फडणवीस फिर एक बार मुख्यमंत्री तो बन गये लेकिन उनकी सरकार तीन दिनों से ज्यादा नहीं चल पायी. 26 नवंवर 2019 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. अचानक हुयी शपथविधि को असंवैधानिक बताते हुए तीनों पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने आदेश दिया कि देवेंद्र फडणवीस 27 नंवबर को विधान सभा में बहुमत साबित करके दिखायें. लेकिन, फडणवीस बहुमत कहां से लाते? अजीत पवार ने बाकी विधायकों को अपने साथ ला पाने में लाचारी व्यक्त की. इसके अलावा जो 12 विधायक शपथविधि में उनके साथ मौजूद थे, वे भी उनका साथ छोड वापस पार्टी में लौट गये.


28 नवंबर को उद्धव ठाकरे ने ली शपथ


28 नवंबर  2019 को उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पदी की शपथ ली. ठाकरे सरकार इस महीने 2 साल पूरे कर रही है. दिलचस्प बात ये है कि अपनी पार्टी से बगावत करके जिन अजीत पवार ने फडणवीस के साथ मिलकर शपथ ली, वे अजीत पवार ठाकरे सरकार में भी उपमुख्यमंत्री हैं. उनके खिलाफ एनसीपी ने कोई कार्रवाई नहीं की.


ये भी पढ़ें: 


Mamata Banerjee Delhi Visit: 24 नवंबर को पीएम मोदी से मिलेंगी ममता बनर्जी, त्रिपुरा हिंसा समेत कई मामलों पर करेंगी बातचीत


 


Punjab Election 2022: सीएम केजरीवाल का एलान, पंजाब में हर महिला को देंगे एक हजार रुपये प्रति माह