Holi Mughal Era: होली का खुमार आज पूरे देश पर चढ़ा है. राजधानी दिल्ली से लेकर यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु तक रंगों के त्यौहार में लोग सराबोर हैं. ऐसे खास मौके पर चलिए हम आपको बताते हैं कि मुगलों के जमाने में होली का कैसा खुमार था और लोग कैसे होली खेलते थे. मुगलों के जमाने में होली को ईद-ए-गुलाबी कहा जाता था. तब महलों में फूलों से रंग बनाकर हौदों में भरे जाते थे. उमें गुलाबजल और केवड़े का इत्र भी मिलाया जाता था. इन्हीं रंगों से महलों में नवाब, उनकी बेगमें और प्रजा एक साथ मिलकर होली खेलती थी.


अकबर- जहांगीर ऐसे खेलते थे होली


कुछ ऐतिहासिक लेखों की मानें तो मुगलों के जमाने में भी होली को त्योहारी दर्जा मिला हुआ था. 19वीं सदी के मध्य के इतिहासकार मुंशी जकाउल्लाह ने अपनी किताब तहरिक-ए-हिंदुस्तानी में लिखा है कि कौन कहता है, होली हिंदुओं का त्योहार है! बाबर के जमाने में लोग एक-दूसरे को उठाकर रंगों से भरे हौद में पटक रहे थे. बाबर को ये इतना पसंद आया कि उसने अपने नहाने के कुंड को पूरा का पूरा रंग से भरवा दिया.


इसी तरह आइने अबकितहत में अबुल फजल लिखते हैं कि बादशाह अकबर को होली खेलने का इतना शौक था कि वे सालभर तरह-तरह की ऐसी चीजें जमा करते थे, जिनसे रंगों का छिड़काव दूर तक जा सके. होली के रोज अकबर अपने किले से बाहर आते थे और आम-ओ-खास सबके साथ होली खेला करते थे. जहांगीर ने होली को ईद-ए-गुलाबी और आब-ए-पाशी (पानी की बौछार का पर्व) नाम दिया था. इसके बाद तो बहादुर शाह जफर ने होली को लाल किले का शाही उत्सव ही बना दिया था.


हिंदू धर्म में भक्त पहलाद और भगवान कृष्ण से जुड़ी है होली


बता दे कि हिंदू धर्म में होली और होलिका दहन का इतिहास बुराइयों के नाश से जुड़ा हुआ है. इसकी जड़ें भक्त प्रह्लाद और उनकी बुआ होलिका से जुड़ी हैं तो भगवान कृष्ण ने ब्रज में गोपियों के साथ होली खेली थी जो सदियों से चली आ रही है. उस परंपरा को भारत में शासन स्थापित करने के बाद मुगलों ने भी बरकरार रखी थी.


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