जम्मूः जम्मू-कश्मीर में प्रशासन ने सुरक्षा बलों के लिए ज़मीन अधिग्रहण को आसान करते हुए 1971 के जारी अध्यादेश को वापस लिया है जिस के तहत ज़मीन अधिग्रहण के लिए प्रदेश के गृह विभाग की मंज़ूरी ज़रूरी थी. नये जारी आदेश के अनुसार अब सुरक्षा बलों के लिए गृह विभाग की NOC की कोई बाधिता नहीं होगी लेकिन आदेश के विवादों में पड़ने के पूरे आसार हैं और इस का विरोध भी होने लगा है.


सोमवार को जारी आदेश के अनुसार सभी जिला कलेक्टर के लिए सुरक्षा बलों के लिए ज़मीन अधिग्रहण के लिए नए लागू कानून के तहत ज़मीन देने को कहा गया है. जिन में केंद्रीय ज़मीन अधिग्रहण कानून, CALA और नेशनल हाईवे एक्ट 1956 का हवाला देते हुए कहा गया है कि अब अधिग्रहण के लिए बिना NOC के मंज़ूरी होगी.


यह आदेश जम्मू कश्मीर के प्रधान सचिव पवन कोतवाल की तरफ से जारी हुआ है और इस का मकसद जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों के लिए ज़मीन अधिग्रहण को आसान करना है. आदेश no. Rev (LB) 71/13, dated 27-8-1971, में साफ़ लिखा गया है कि सुरक्षा बलों जिन में सेना, सीमा सुरक्षा बल, CRPF और अन्य सुरक्षा एजेंसियों के लिए ज़मीन अधिग्रहण के लिए गृह विभाग का NOC अब अनिवार्य नहीं होगा.


सरकार के अनुसार इस बदलाव का मकसद सेना और अर्धसैनिक बलों को ज़मीन अधिग्रहण में आने वाली मुश्किलों को कम करके सामरिक और सुरक्षा दृष्टि से ज़रूरी जगहों पर कैंप बनाने में तेज़ी लाना है और इसी बात का विरोध जम्मू कश्मीर के सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं.


राजनीतिक दलों के अनुसार इस बदलाव से पहले केंद्रीय सरकार ने जम्मू कश्मीर में कई ऐसे कानून लाये हैं. जिन से सरकार की मंशा पर सवाल उठते हैं. 17 जून को जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल ने J&K Control of Building Operations Act, 1988 और J&K Development Act, 1970 में संशोधन करते हुए सुरक्षा बलों को किसी भी इलाके या जगह को सामरिक श्रेत्र घोषित करने और इसके इस्तेमाल करने का हक दिया है.


इस के तहत सुरक्षा बल किसी भी जगह को सामरिक इलाक़ा घोषित कर सकते हैं और विशेष प्रावधान के तहत सुरक्षा बलों को इस इलाके या ज़मीन का अधिग्रहण करने और यहां पर निर्माण कार्य करने कि भी अनुमति है.


नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के साथ-साथ सभी राजनीतिक दल इस बदलाव का विरोध कर रहे हैं और इनका कहना है कि पहले कानून में बदलाव और अब गृह विभाग की NOC को हटा कर केंद्र सरकार ने सुरक्षा बलों के लिए ज़मीन अधिग्रहण को मन मर्ज़ी का कर दिया है.


नेशनल कांफ्रेंस के अनुसार कानून आने से पहले ही राज्य प्रशासन ने 246 एकड़ ज़मीन सुरक्षा बलों को पिछले एक महीने में दे दी है और यह ज़मीन जंगल का इलाक़ा है जो पर्यावरण के लिए ज़रूरी है. लेकिन नए प्रावधानों के चलते यह सब कुछ अनदेखी हो रही है और केवल सुरक्षा बलों की मांग का महत्व दिया जा रहा है.


नेशनल कांफ्रेंस का आरोप है कि अब नए कानून से जम्मू कश्मीर में लाखों एकड ज़मीन सुरक्षा बलों के कब्ज़े में चली जाएग़ी. नेशनल कांफ्रेंस के प्रवक्ता के अनुसार जनवरी 2018 में तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने विधानसभा में कहा था कि जम्मू कश्मीर में 21,400 हेक्टेयर (4,28,000 कनाल) ज़मीन सुरक्षा बलों के अवैध कब्ज़े में है. अब इस नए कानून के आने से यह सब ज़मीन कानूनी तौर पर सुरक्षा बलों की बन जाएगी और ना तो सरकार और ना ही आम जनता को अब यह ज़मीन वापस मिलेगी.


लेकिन राज्य प्रशासन ने इन सभी आशंका को निराधार बताया है और कानून में लाये बदलाव को सही कहा है. प्रशासन की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि कुछ लोग ज़मीन अधिग्रहण को लेकर अफवाहें फैला रहे हैं और कानून में बदलाव देशहित और सामरिक सुरक्षा को ध्यान में रख कर लिया गया है.


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