भारत के न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा की सोमवार (30 अक्टूबर, 2023) को 114वीं जयंती है. होमी जहांगीर भाभा ने परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में भारत को शक्तिशाली देश बनाने की जो कल्पना की थी, उसी की बदौलत आज देश सबसे मजबूत परमाणु शक्तियों में एक के रूप में उभरा है. यही वजह है कि उन्हें देश में परमाणु कार्यक्रम के जनक के तौर पर जाना जाता है. अपनी मौत से तीन महीने पहले ही उन्होंने कहा था कि अगर उन्हें छूट मिले तो वह महज 18 महीनों में एटम बम बना देंगे. 23 जनवरी, 1966 को उनका प्लेन क्रैश हुआ और उनकी मौत एक रहस्य बनकर रह गई. 117 यात्रियों को यूरोप से जेनेवा ले जा रहा विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया. उनकी मौत को रहस्य इसलिए माना जाता है क्योंकि हादसे में मारे गए किसी यात्री का शव नहीं मिला. आज होमी जहांगीर भाभा से जुड़ी कुछ रोचक बातें आपको बताते हैं-
होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर, 1909 को मुंबई के पारसी परिवार में हुआ था. पिता का नाम होर्मुसजी भाभा था, जो एक मशहूर वकील थे. माता मेहरबाई टाटा, बिजनेसमैन रतनजी दादाभाई टाटा की बेटी थीं. भाभा का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था और मुंबई में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह 1930 में अमेरिका के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने चले गए. अपने पिता और चाचा के कहने पर उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. फिर फिजिक्स में रुझान बढ़ा और उन्होंने 1935 में ब्रिटेन की कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से परमाणु भौतिकी में पीएचडी की. उनके पिता और चाचा का विचार था कि वह इंग्लैंड से पढ़ाई करके वापस लौट आएंगे तो जमशेदपुर में टाटा स्टील या टाटा मिल्स में मेटलर्जिस्ट के रूप में काम करेंगे.
होमी भाभा ने कैसे शुरू किया परमाणु कार्यक्रम
साल 1940 में होमी भाभा छुट्टियों के लिए भारत आए थे, तभी द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया और वह यहीं रुक गए. तब उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज, बैंगलोर में बतौर रीडर ज्वॉइन किया. इसके बाद साल 1944 में फिजिक्स में रिसर्च के लिए सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट के सामने एक संस्थान बनाने का प्रस्ताव रखा और दिसंबर, 1945 में इस प्रस्ताव पर ही भारतीय परमाणु अनुसंधान टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की गई. यहीं से परमाणु ऊर्जा पर रिसर्च का काम शुरू हुआ. होमी भाभा ने पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को परमाणु कार्यक्रम शुरू करने के लिए राजी किया. अप्रैल, 1948 को एटॉमिक एनर्जी एक्ट पास किया गया और होमी भाभा को न्यूक्लियर प्रोग्राम का निदेशक नियुक्त कर दिया गया. एटॉमिक एनर्जी एक्ट के तहत इंडियन एटॉमिक एनर्जी कमीशन (IAEC) का गठन किया गया, जिसका मकसद परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में भारत को अपने पैरों पर खड़ा करना था. परमाणु कार्यक्रम के लिए दक्षिण भारत के तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले यूरेनियम और थोरियम का इस्तेमाल किया गया था.
देश का पहला परमाणु रिएक्टर विकसित किया
होमी जहांगीर भाभा परमाणु ऊर्जा आयोग के निदेशक थे और देश के न्यूक्लियर प्रोग्राम की जिम्मेदारी उनको ही सौंपी गई. उनके नेतृत्व में एटॉमिक एनर्जी कमीशन ने 1956 में पहला परमाणु रिएक्टर, अप्सरा विकसित किया. देश तभी आजाद हुआ था इसलिए यूरोप और अमेरिका जैसे देशों को यकीन नहीं था कि भारत परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ खास कर पाएगा. रिएक्टर बनाने के दौरान भारत को कई दिक्क्तों का सामना करना पड़ा भी.
परमाणु बम के मुद्दे पर लाल बहादुर शास्त्री से मतभेद
जवाहर लाल नेहरू के बाद जब लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधानमंत्री बने तो होमी भाभा के लिए हालात बदल गए. शास्त्री पक्के गांधीवादी थे और परमाणु हथियारों के खिलाफ थे इसलिए होमी भाभा के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई. होमी भाभा पर लिखी किताब 'होमी जे भाभा अ लाइफ' में लेखक बख्तियार दादाभौय ने लिखा है कि भाभा जो समझाना चाह रहे थे, उसे लाल बहादुर शास्त्री समझ नहीं रहे थे. 8 अक्टूबर, 1964 को होमी भाभा ने चीन के परमाणु परीक्षण से पहले लंदन में 18 महीनों के अंदर परमाणु परीक्षण का ऐलान कर दिया. इस पर लाल बहादुर शास्त्री ने कहा कि परमाणु प्रबंधन को सख्त आदेश हैं कि वह कोई ऐसा प्रयोग न करे जो परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के खिलाफ हो. इसके बाद होमी भाभा ने लाल बहादुर शास्त्री को परमाणु शक्ति के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए मना लिया.
जब की थी परमाणु बम बनाने की घोषणा
साल 1965 में ऑल इंडिया रेडियो पर एक इंटरव्यू के दौरान होमी जहांगीर भाभा ने परमाणु बम बनाने की घोषणा करके पूरी दुनिया को चौंका दिया था. अपने इंटरव्यू में होमी भाभा ने कहा था, 'अगर मुझे छूट मिले तो मैं 18 महीने में भारत के लिए एटम बम बनाकर दिखा सकता हूं.'
होमी भाभा की मौत बन गई रहस्य
होमी भाभा एयर इंडिया की फ्लाइट से जेनेवा जा रहे थे. इसमें यात्रियों और क्रू मेंबर को मिलाकर कुल 117 लोग सवार थे. 24 जनवरी 1966 को जेनेवा उतरने से कुछ मिनटों पहले ही प्लेन क्रैश हो गया. फ्रेंच ऑफिशियल्स के मुताबिक, बचावकर्मियों ने यात्रियों को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन कुछ नहीं मिला और खराब मौसम के कारण बचावकार्य रोक देना पड़ा. इसके बाद जब फिर से जांच शुरू की गई तो ज्यादातर मलबा ग्लेशियर में धंस चुका था इसलिए न ब्लैक बॉक्स मिला और न ही कोई और हिस्सा मिल पाया.
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