अन्ना आंदोलन से निकली आप 11 साल में कैसे बनी राष्ट्रीय पार्टी?
10 अप्रैल को जारी किए गए लिस्ट में चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया. हालांकि तीन ऐसी पार्टियां भी हैं जिसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म हो गया.
2 अक्टूबर 2012, ये वो तारीख है जब अन्ना आंदोलन के दौरान हाथ में तिरंगा लिए जन लोकपाल कानून बनाने की मांग करते नजर आने वाले अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया था कि वह एक नई राजनीतिक पार्टी बनाएंगे. इस ऐलान पर कई सवाल भी उठे. कई नेताओं ने कहा कि केजरीवाल अपनी पार्टी खड़ी करने के लिए ही आंदोलन में आए थे और इसका इस्तेमाल किया. हालांकि तमाम आरोपों और दावों के बीच अरविंद केजरीवाल ने 26 नवंबर 2012 को 'आम आदमी पार्टी' नाम से नई राजनीतिक पार्टी लॉन्च कर दी.
पार्टी बनाने की घोषणा करने से पहले केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने कहा कि वह इस पार्टी से देश को भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने का काम करेंगे. इस पार्टी के अस्तित्व में आने के 11 साल बाद यानी 10 अप्रैल 2023 को इसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिया गया.
दरअसल गुजरात चुनाव के बाद पार्टी दावा किया था आने वाले कुछ समय में वो राष्ट्रीय पार्टी बन जाएगी. आप का कहना था कि उनकी पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टी बनने की सभी शर्तें पूरी कर ली है, लेकिन बावजूद इसके चुनाव आयोग राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने की घोषणा में देरी कर रहा है.
इस देरी के कारण पार्टी ने नाराजगी जताते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट का रूख भी किया था. सुनवाई के दौरान आप पार्टी का तर्क सुनने के बाद कोर्ट ने चुनाव आयोग को घोषणा करने के लिए 13 अप्रैल तक का समय दिया था. इस बीच बीते सोमवार को चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय पार्टियों की नई लिस्ट जारी की जिसमें कुछ फेरबदल किए गए.
10 अप्रैल को जारी किए गए लिस्ट में चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया. हालांकि तीन ऐसी पार्टियां भी हैं जिसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा खत्म हो गया. वह पार्टियां हैं शरद पवार की नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई). अब सवाल उठता है कि यह पार्टी 11 साल के अंदर कैसे बन गई देश की राष्ट्रीय पार्टी. और इससे क्या फायदा होता है?
कैसे मिलता है राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा ?
किसी भी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा देने के दौरान केंद्रीय चुनाव आयोग के नियम 1968 का पालन किया जाता है. इस नियम के अनुसार किसी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा देने के लिए उस पार्टी को चार या उससे ज़्यादा राज्यों में लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनाव लड़ना होता है.
इसके अलावा इन लोकसभा चुनाव या विधानसभा चुनावों में उस पार्टी को कम से कम छह फीसदी वोट मिलना अनिवार्य है. इसके अलावा राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दी जाने वाली इस पार्टी के कम से कम चार उम्मीदवार को किसी राज्य या राज्यों का सांसद होना चाहिए. या फिर उस पार्टी को चार राज्यों में क्षेत्रीय पार्टी होने का दर्जा मिला हुआ होना चाहिए. या लोकसभा की जितनी भी सीटें हैं उनमें कम से कम दो प्रतिशत सीटें उस पार्टी की होनी चाहिए और वह जीते हुए उम्मीदवार तीन राज्यों से होने चाहिए.
किसी भी पार्टी के लिए राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलने कितना महत्वपूर्ण है
चुनाव चिन्ह: कोई भी पार्टी अगर राष्ट्रीय दल बनता है तो उसे कई फायदे होते हैं. पहला तो ये कि राष्ट्रीय पार्टी को देश के किसी भी राज्य में एक ही चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने का मौका मिलता है. उस पार्टी को चुनाव चिन्ह किसी भी दूसरे दल को नहीं दिया जा सकता.
अगर किसी राज्य में राष्ट्रीय पार्टी चुनाव लड़ रही है और वहां कोई क्षेत्रीय दल उसी पार्टी के चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरता है तो, ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय पार्टी को वरीयता दी जाती है.
उदाहरण के तौर पर ऐसे समझिये कि समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह साइकिल है. यह पार्टी यूपी में साइकिल चुनाव चिन्ह पर मैदान पर उतरती है. वहीं दूसरी तरफ यही चुनाव चिन्ह यानी साइकिल आंध्र प्रदेश की तेलुगू देशम पार्टी का भी है. ऐसे में दोनों ही पार्टी राष्ट्रीय दल के योग्य हो जाए और दोनों को ही राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलता है, तो ऐसी परिस्थिति में उस पार्टी को वरीयता दी जाती है जिसे पहले राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला था.
मुफ्त विज्ञापन: राष्ट्रीय पार्टियों को किसी भी लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान दूरदर्शन के चैनल पर मुफ्त में चुनाव प्रचार करने का समय मिलता है. हालांकि ऐसा नहीं कि स्टेट पार्टियों को समय नहीं दिया जाता. उन्हें भी प्रचार करने का समय मिलता है लेकिन राष्ट्रीय पार्टियों को इसमें वरीयता मिलती है.
स्टार प्रचारक: चुनाव में कितना खर्च होगा इसकी सीमा चुनाव आयोग तय करता है. सभी पार्टियों को चुनाव आयोग को जानकारी देनी पड़ती है कि आने वाले चुनाव में उनके पार्टी के उम्मीदवारों कितना खर्च करेंगे. वहीं सभी पार्टियों का एक स्टार प्रचारक भी होता है. स्टार प्रचारक जब भी किसी क्षेत्र में प्रचार के लिए जाते हैं तो चुनावी खर्च निश्चित रूप से बढ़ जाता है.
ऐसे में इस राष्ट्रीय पार्टी अरपे इस बढ़े हुए खर्च को अलग कर सकती है. वहीं हर राष्ट्रीय पार्टी 40 स्टार प्रचारक तय कर सकती है. इसके साथ ही सरकार की तरफ से राष्ट्रीय पार्टियों को दफ़्तर बनाने के लिए जमीन उपलब्ध करवाई जाती है.
वर्तमान में देश में कितनी राजनीतिक पार्टियां हैं
आम आदमी पार्टी का राष्ट्रील का दर्जी दिए जाने के बाद और नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) का दर्जा खत्म कर दिए जाने के बाद देश में कुल 6 राष्ट्रीय पार्टियां हैं
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-
- भारतीय जनता पार्टी
- बहुजन समाज पार्टी
- कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी)- सीपीएम
- नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी- उत्तरपूर्वी राज्यों से)
- आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी की कहां-कहां सरकार है?
वर्तमान में पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है. पंजाब में जहां भगवंत मान सीएम का पद संभाल रहे हैं वहीं दूसरी तरफ राजधानी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री का पद संभाल रहे हैं, इसके अलावा साल 2022 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी और गोवा के विधानसभा चुनाव में भा पार्टी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी.
उन तीन दलों से राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा क्यों छीना गया
चुनाव आयोग के अनुसार इन तीन पार्टियों नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) का राष्ट्रीय दल का दर्जा वापस ले लिया गया है क्योंकि ये पार्टी पिछले कुछ चुनावों में उतना रिजल्ट नहीं ला. इन दलों को 2 संसदीय चुनावों और 21 राज्य विधानसभा चुनावों के पर्याप्त मौके दिए गए थे.
इतने चुनाव होने के बाद इन पार्टियों के प्रदर्शन को रिव्यू किया गया और दर्जा वापस ले लिया गया. हालांकि ये फैसला अस्थायी रहता. आने वाले चुनावों अगर ये पार्टियां चुनावी चक्र में प्रदर्शन के आधार पर राष्ट्रीय पार्टी होने का दर्जा वापस हासिल कर सकती हैं.
आम आदमी पार्टी, कैसा रहा 11 साल
आम आदमी पार्टी के अस्तित्व में आने से पहले ज्यादातर राज्यों में या तो कांग्रेस की सरकार होती थी या बीजेपी की. कांग्रेस हटी तो उसकी जगह बीजेपी की सरकार आ गई और बीजेपी हटी तो उसकी जगह कांग्रेस ने ले ली. लेकिन आम आदमी पार्टी के आने के बाद अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में एक ऐसी पार्टी आई जिसने कांग्रेस और बीजेपी के इस राजनीति को आगे बढ़ाया और लोगों को यकीन दिलाया कि उनकी पार्टी महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार पर काम करेगी.
इन्हीं चुनावी वादों के साथ आप साल 2013 के आखिर में चुनावी मैदान में उतरी. आप ने ऐलान किया कि वह राजधानी दिल्ली की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी और पहले ही चुनाव में इस पार्टी ने सबको चौंका दिया. उस विधानसभा चुनाव में पार्टी ने दिल्ली की 70 में से 28 सीटों पर बाजी मार ली.
इस पार्टी ने तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाल चुकी शीला दीक्षित को भारी अंतर से हराया. हालांकि पार्टी को बहुमत नहीं मिल पाने के कारण केजरीवाल ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई. इस गठबंधन सरकार में अरविंद केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने.
हालांकि उनके इस गठबंधन पर सवाल उठने लगे. लोगों ने आरोप लगाया कि आप ने जिस पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा था उसके साथ ही मिलकर अपनी सरकार बना ली. ये गठबंधन सिर्फ 49 दिनों तक चल पाई. 14 फरवरी 2014 को सीएम अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने इस्तीफे का कारण दिया कि विधानसभा में बहुमत नहीं होने के कारण वह जन लोकपाल बिल पास नहीं करा पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि वह अगले चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ लौटेंगे और इस बिल को पास कराएंगे .
दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू
सीएम पद से इस्तीफा के बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. राजधानी में लगभग साल भर तक राष्ट्रपति शासन रहा. इसके बाद चुनावों का ऐलान किया गया. उस चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने राजधानी दिल्ली की 70 सीटों में से 67 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया.
साल 2015 में सत्ता आने के बाद केजरीवाल उन सभी वादों को पूरा करना शुरू किया जिसका वादा उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान किया था. केजरीवाल सरकार में दिल्ली की बिजली-पानी मुफ्त कर दी गई. कई योजनाएं शुरू भी लागू की गई.
वहीं राजधानी होने के कारण दिल्ली में हर राज्य का व्यक्ति रह रहा है. यहां की खबरें हिंदुस्तान के हर कोने में पहुंच जाती है. इसी कारण से दिल्ली के मॉडल से प्रभावित होकर पंजाब के लोगों ने आप का अपना समर्थन दिया. गोवा ने भी आम आदमी पार्टी को पसंद किया और वहां हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को दो सीटें मिली. गुजरात में भा हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में पांच सीटें मिली और 14% वोट मिला.