हिंदी में डॉक्टरी पढ़ाई का फैसला कितना उचित, जानिए डॉक्टरों, छात्रों और हिंदी के प्रोफेसर की राय
अब मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी भाषा में भी की जा सकेगी. केंद्र सरकार के इस पहल पर ज्यादातर लोगों को मानना है कि हिंदी मीडियम से पढ़े मेडिकल के छात्र को भारत में इलाज करने में सहूलियत हो सकती है.
मेडिकल एजुकेशन के क्षेत्र में मध्य प्रदेश ने चिकित्सा शिक्षा का नया अध्याय शुरू कर दिया है. इस राज्य में अब मेडिकल की पढ़ाई हिंदी भाषा में भी की जा सकेगी. वहीं इस नए पहल के साथ ही मध्य प्रदेश भारत का वह पहला राज्य बन गया है जहां हिंदी में मेडिकल की पढ़ाई करवाई जाएगी.
दरअसल 16 अक्टूबर को पहली बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में एमबीबीएस की तीन किताबों का हिंदी में विमोचन किया है. बायोकेमिस्ट्री, फिजियोलॉजी और एनाटॉमी ये तीन किताब एमबीबीएस के छात्रों को फर्स्ट ईयर में पढ़ाई जाती है.
राज्य सरकार ने इन्हीं तीन विषयों का हिंदी वर्जन तैयार किया है. इन किताबों में करीब 3410 पेज हैं. हिंदी वर्जन तैयार करने के दौरान इन किताबों में कुछ अंग्रेजी शब्दों को देवनागरी में लिखा गया है.
इस बीच सवाल उठता है कि आखिर किताबों को हिंदी में करवाने और हिंदी भाषा में मेडिकल की पढ़ाई करवाने का मकसद क्या है और इसे कैसे कराया जाएगा.
इसके जवाब में मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि, "इस पहल का मक़सद पढ़ाई को ग्रामीण क्षेत्रों और हिंदी मीडियम से आने वाले छात्रों के लिए आसान बनाना है."
उन्होंने कहा कि हिंदी मीडियम से पढ़े हुए छात्र कड़ी मेहनत करके नीट की परीक्षा में पास तो हो जाते है. लेकिन कोर्स की पढ़ाई के दौरान उन्हें अंग्रेजी भाषा को समझने के लिए कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है. अब हिंदी में पाठ्यक्रम होने से चिकित्सा विद्यार्थियों की समझ एवं ज्ञानार्जन में इजाफा होगा.
क्या है इस पहल का मकसद
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा कि हमारा मकसद छात्रों को एक ऐसा प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना है, जिससे वो आसानी से विषय के बारे में समझ सकें.
बता दें कि विश्वास सारंग ने ही इस प्रोजक्ट की रूपरेखा तैयार की है. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए कहा कि जब फरवरी में इसकी शुरुआत की थी तो पहले तो डॉक्टरों और शिक्षकों को इसे लेकर संदेह था लेकिन लगातार हुए बैठक के बाद सभी इस प्रोजेक्ट के लिए जुट गए.
क्या हिंदी में पढ़ने वाले छात्रों अंग्रेजी वालों से पिछड़ जाएंगे? इस सवाल के जवाब में विश्वास सारंग ने कहा, "ऐसा नहीं होगा क्योंकि हिंदी भाषा की इस किताब में तकनीकी शब्दों को नहीं बदला जाएगा. बस इन शब्दों को देवनागरी में बदल दिया जाएगा ताकि छात्र उसे आसानी से समझ सकें. ऐसे समझिये की उस किताब में स्पाइनल कॉर्ड को देवनागरी में 'स्पाइनल कॉर्ड' लिखा जाएगा, ना कि मेरूदंड."
उन्होंने कहा कि मेरी कोशिश यही है कि छात्र विषय को अपनी भाषा में आसानी से समझ सकें. उसके साथ ही अंग्रेज़ी में भी लिखा होगा तो उसे समझने में आसानी होगी."
नेशनल एजुकेशन प्रोग्राम के तहत किया गया बदलाव
विश्वास सारंग ने कहा कि यह पहल नेशनल एजुकेशन प्रोग्राम के तहत किया गया है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लागू किया है. इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है कि हर राज्य में छात्रों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जा सके.
वहीं भोपाल के एलएन मेडिकल कॉलेज में पढ़ने वाली फस्ट ईयर की छात्रा वैशाली ने ABP न्यूज से बात करते हुए कहा कि राज्य सरकार का ये पहल काफी सराहनीय है. हिन्दी में किताबें मिलने के कारण कई छात्रों को पढ़ने में काफी हद तक फायदा होगा. उन्होंने कहा कि मेरे कक्षा में कई ऐसे छात्र हैं जिसकी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ बहुत अच्छी नहीं है. ऐसे छात्रों के लिए हिन्दी के किताबों के कारण काफी हद तक फायदा होगा.
दिल्ली में एमबीबीएस के पांचवें वर्ष के छात्र रोहित मिश्रा का कहना है, "मेडिकल में आने से पहले कई ऐसे बच्चे हैं जो हिंदी मीडियम से पढ़कर आते हैं. ऐसे में उन्हें अचानक अंग्रेजी भाषा में पढ़ना पड़ जाता है. लेकिन अब हिंदी मीडियम में कोर्स होने के बाद छात्र-छात्राओं को इसे समझने में आसानी होगी. इसके साथ ही हिंदी भाषा को भी बढ़ावा मिलेगा.
मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में होने के इस इनिशिएटिव पर डॉक्टर मिताली ने AbP से बात करते हुए कहा, ' जब हर कोर्स हिंदी मीडियम में है तो मेडिकल क्यों नहीं. मुझे लगता है कि हिंदी भाषा में पढ़ाए जाने का ये पहल देश के अन्य राज्यों में भी शुरू किया जाना चाहिए. खासकर बिहार यूपी जैसे राज्यों में जहां ज्यादातर बोलचाल में हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है.
आपको लगता है कि हिंदी विषय में पढ़ने वाले छात्र अंग्रेजी वालों से पिछड़ जाएंगे? इस सवाल के जवाब में डॉक्टर कहतीं हैं, ' जहां तक मुझे पता है कि सिलेबस की किताबों में तकनीकी शब्द के साथ छेड़छाड़ नहीं की दई है. ऐसे में ये छात्र अंग्रेजी में पढ़ने वालों से पीछे नहीं रहेंगे.
उन्होंने कहा कि मेरे पास ज्यादातर ऐसे पेशेंट आते हैं जिन्हें अंग्रेजी अच्छे से समझ नहीं आती. ऐसे में कई बार उन्हें समझाना थोड़ा चैलेंजिंग हो जाता है. लेकिन जरा सोचिये कि अगर छात्रों को हिंदी में ही पढ़ाया जाने लगा तो वो ना सिर्फ अंग्रेजी न समझने वाले पेशेंट को अच्छे से समझा सकेंगे बल्कि अगर हिन्दी में पढ़े छात्र आगे डॉक्टर बनने के बाद ग्रामीण इलाकों में प्रैक्टिस करते हैं तो वहां पर भी गांव के लोगों के इलाज के दौरान उन्हें आसानी से समझा पाएंगे.
दूसरे देशों में प्रैक्टिस करने में होगी दिक्कत
एक तरफ जहां ज्यादातर लोगों को मानना है कि हिंदी मीडियम से पढ़े मेडिकल के छात्र को भारत में इलाज करने में सहूलियत हो सकती है, वहीं दूसरी तरफ एमबीबीएस के दूसरे वर्ष की छात्रा जाह्नवी का कहना है कि इस प्रोजेक्ट के फायदे तो हैं लेकिन नुकसान ज्यादा हैं. उन्होंने कहा कि हिंदी मीडियम में पढ़ने वाले छात्र इस भाषा में कंफर्टेबल हो जाएंगे, जिससे उन्हें अंग्रेजी भाषा में पढ़ने या भविष्य में दूसरे देशों में प्रैक्टिस में दिक्कत होगी.
उन्होंने कहा कि बेशक हिंदी भाषा में पढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन फिर छात्र सीमित हो जाएंगे. उन्हें प्रैक्टिस के लिए भारत ही चुनना होगा. हालांकि अभी तो ये इनिशिएटिव ठीक लग रहा है लेकिन लागू होने के बाद ही पता चल पाएगा कि हिंदी विषय में पढ़ने वाले छात्र अंग्रेज़ी वालों से पिछड़ रहे हैं या नहीं.
वहीं दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिंदी प्रोफेसर मनीष ने कहा, 'यह मध्य प्रदेश सरकार की अच्छी पहल है. हिंदी भारत की मातृभाषा है और सबसे ज्यादा बोली जाती है. ऐसे में मेडिकल के पाठ्यक्रम का हिंदी में होना ना सिर्फ हिंदी मीडियम के बच्चों को मेडिकल क्षेत्र में जाने के लिए प्रोत्साहित करेगा.
बल्कि उन्हें सिलेबस को पढ़ने और समझने में आसानी भी होगी. साथ ही ग्रामीण इलाकों के बच्चे भी मेडिकल कर पाएंगे. कई बार छात्र इसलिए भी किसी कोर्स को करने से पीछे हट जाते हैं क्योंकि वह कोर्स उन्हें समझ नहीं आता.'
प्रोजेक्ट पर क्या बोले सीएम शिवराज सिंह
इस प्रोजेक्ट के बारे में बात करते हुए मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह ने कहा, 'अंग्रेजी भाषा में पाठ्यक्रम होने के कारण कुछ लोग मेडिकल की पढ़ाई छोड़ देते थे. लेकिन अब ऐसे छात्रों के लिए नया सवेरा आने वाला है. उन्होंने कहा कि उनकी जिंदगी में नई शुरुआत होने वाली है. सीएम ने डॉक्टरों से अपील की है कि वह अंग्रेजी दवाओं के नाम हिंदी में लिखे ताकि पेशेंट को समझने में दिक्कत ना हो.
सीएम ने कहा कि हिंदी मीडियम में पढ़ाये जाने के दौरान प्रचलित नाम को उसी तरह से लिखा जाएगा. सीएम ने भी कहा कि अधिकांश ऐसे अंग्रेजी नाम हैं, जिनके कठिन हिंदी नाम होते हैं. उनमें बदलाव नहीं किया गया है. उदाहरण के तौर पर लीवर, किडनी, स्पाइन, प्लाज्मा, हार्मोन्स, एंजाइम, जेनेटिक्स, एलर्जी, पैथोलॉजी, कीमोथेरेपी, टॉक्सिकोलॉजी, कार्डियो वैस्कुलर सिस्टम, अपर लिंब, एब्डोमेन, पेल्विस, ब्रेन शामिल है.
मेडिकल की पढ़ाई पर हमें गर्व: गृह मंत्री अमित शाह
वहीं 16 अक्टूबर को किताब के विमोचन के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि मातृभाषा में मेडिकल की पढ़ाई पर हमें गर्व है. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में इस इनिशिएटिव के साथ ही शिवराज सरकार ने मोदी जी की इच्छा की पूर्ति की है. बाद में इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिंदी में शुरू होगी. जल्द ही देश के सारे विद्यार्थी अपनी मातृभाषा में तकनीकी शिक्षा हासिल कर सकेंगे.
गृह मंत्री ने हमारे छात्र जब अपनी भाषा में पढ़ाई करेंगे, तभी देश की सच्ची सेवा कर पाएंगे. साथ ही लोगों की समस्याओं को भी समझ पाएंगे. उन्होंने कहा कि जल्द ही 10 राज्यों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई उनकी मातृभाषा में शुरू होने वाली है. इस प्रोजेक्ट पर फिलहाल काम पर चल रहा है. गृह मंत्री ने कहा कि मैं देश भर के युवाओं से आह्वान से करता हूं कि अब भाषा कोई बाध्यता नहीं है. इससे आप बाहर आएं.
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