गोरखपुर: भारतीय जनता पार्टी की पहचान उसका चुनाव चिह्न कमल का फूल है. पिछले 40 सालों से पार्टी इसी चुनाव चिह्न के साथ चुनाव में हिस्सा ले रही है. लेकिन, अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बीजेपी द्वारा राष्ट्रीय फूल कमल को चुनाव चिह्न के इस्तेमाल करने संबंधी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्वाचन आयोग से इस बात पर जवाब तलब किया है कि किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय पुष्प कमल चुनाव निशान के तौर पर कैसे दिया.
12 जनवरी 2021 को होगी अगली सुनवाई
बीजेपी के सिम्बल कमल के फूल के दुरुपयोग को लेकर हाई कोर्ट में दाखिल पीआईएल पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है और 12 जनवरी 2021 को अगली सुनवाई के लिए समय दिया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कमल के फूल का भारतीय जनता पार्टी द्वारा चुनाव चिन्ह के रूप में इस्तेमाल करने से रोक लगाने एवं चुनाव के लिए आवंटित चिन्ह का राजनीतिक दलों द्वारा लोगों के रूप में इस्तेमाल करने के मुद्दे पर निर्वाचन आयोग से जवाब मांगा है. हाईकोर्ट में यह मुद्दा भी उठा है कि राजनीति दलों द्वारा चुनाव चिन्ह का लोगो के रूप में प्रचार के लिए छूट देना निर्दलीय प्रत्याशी के साथ भेदभाव पूर्ण होगा.
समाजवादी पार्टी के नेता काली शंकर ने दायर की थी जनहित याचिका
हाई कोर्ट का यह आदेश मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने गोरखपुर के समाजवादी पार्टी के नेता काली शंकर की जनहित याचिका पर दिया है. इस याचिका पर अधिवक्ता जीसी तिवारी और कपिल तिवारी ने बहस की. याचिकाकर्ता कालीशंकर का कहना है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 एवं चुनाव चिन्ह (आरक्षण एवं आवंटन) आदेश 1968 के अंतर्गत चुनाव आयोग को चुनाव लड़ने के लिए राष्ट्रीय राजनीतिक दल को चुनाव चिन्ह आवंटित करने का अधिकार है. चुनाव आयोग को माडल कोड आफ कंडक्ट का उल्लंघन करने पर दल की मान्यता वापस लेने का अधिकार भी है. कोर्ट ने याची को अन्य किसी राजनीतिक दल को भी पक्षकार बनाने की छूट दी है.
हाईकोर्ट ने क्या कहा?
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिका में यह मुद्दा नहीं उठाया गया है कि चुनाव चिन्ह केवल चुनाव के लिए आवंटित किया जाता है, अन्य कार्य के लिए नहीं तो चुनाव चिन्ह का अन्य उद्देश्य से इस्तेमाल करने की अनुमति क्यों दी जा रही है.
याचिकाकर्ता का क्या कहना है?
याचिकाकर्ता का कहना है कि किसी राजनीतिक दल को चुनाव चिन्ह पार्टी लोगो के रूप में इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं है. चुनाव चिन्ह चुनाव तक ही सीमित है. पार्टी को अपना चुनाव चिन्ह किसी निर्दलीय प्रत्याशी को देने का अधिकार नहीं है. यदि राजनीतिक दलों को चुनाव चिन्ह का दूसरे कार्यों के लिए इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई तो यह निर्दलीय प्रत्याशियों के साथ अन्याय व विभेदकारी होगा. क्योंकि उन्हें अपना प्रचार करने के लिए कोई निशान नहीं मिला होता है. राजनीतिक दल हमेशा प्रचार करते हैं और निर्दलीय प्रत्याशी को यह छूट नहीं होती है. क्योंकि चुनाव चिन्ह केवल चुनाव लड़ने के लिए ही दिया जाता है.
कोर्ट ने कहा कि साक्षर कई देशों में चुनाव चिन्ह नहीं है, किन्तु भारत मे चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ा जा रहा है. निर्वाचन आयोग के अधिवक्ता ने इन बिन्दुओं पर विचार के लिए समय मांगा, जिस पर कोर्ट ने जवाब दाखिल करने का समय दिया है.