अब से कुछ महीने बाद होने वाले 3 राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में क्या ज्ञानवापी का मुद्दा हावी रहेगा? सियासी गलियारों में यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि क्योंकि हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस पर बड़ा बयान दिया है. 


सीएम योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी के ज्ञानवापी विवाद मामले में कहा है कि इस इमारत को मस्जिद कहा जाएगा तो विवाद होगा. सीएम योगी ने कहा कि अगर हम उसे मस्जिद कहेंगे तो विवाद होगा ही. ज्ञानवापी के अंदर देव प्रतिमाएं हैं, ये प्रतिमाएं हिन्दुओं ने तो रखी नहीं है.


 उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि मस्जिद के अंदर त्रिशूल क्या कर रहा है. योगी ने ज्ञानवापी को ऐतिहासिक भूल बताया है.


सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा, 'मुझे लगता है कि भगवान ने जिसे दृष्टि दी है वो इसे देखे. ज्ञानवापी में ज्योतिर्लिंग है, देव प्रतिमाएं है. सारी दीवारें चिल्ला-चिल्लाकर क्या कह कह रही हैं? सरकार इस विवाद का हल निकालने की कोशिश कर रही है. हम इसका समाधान चाहते हैं."


योगी आदित्यनाथ ने कहा कि ये प्रस्ताव मुस्लिम समाज की तरफ से आना चाहिए था, मुझे लग रहा है कि मुस्लिम समाज की तरफ से ज्ञानवापी को लेकर ऐतिहासिक गलती हुई है. अब हम उसी गलती का समाधान चाहते हैं. 


योगी आदित्यनाथ के इस बयान के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. इससे पहले तक यूसीसी को लेकर सवाल था कि ये लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा होगा, लेकिन सीएम योगी ने जिस आक्रामक तरीके से ज्ञानवापी पर अपनी राय रखी है उससे बाद से ऐसा लग रहा है कि बीजेपी की रणनीति में बदलाव हुआ है और तीन राज्यों के विधानसभा और लोकसभा के चुनावों का मुद्दा पूरी तरह से बदल सकता है.  क्या सीएम योगी का बयान सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है?


इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला ने एबीपी न्यूज को बताया ' इसी साल राम जन्मभूमि की प्राण प्रतिष्ठा समारोह होगा जो बीजेपी के एजेंडे में पहले से ही शामिल है. ये मुद्दा है ऐसा है जो बीजेपी को ध्रुवीकरण के जरिए एकमुश्त वोट दिला सकता है. 


शुक्ला ने कहा कि योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद ये कहा जा सकता है कि ज्ञानवापी का मुद्दा चुनावी रणनीति के तौर पर शुरू किया जा रहा है. जब ये मामला शुरू हुआ था तो किसी को उम्मीद नहीं थी कि ये इतना बड़ा मुद्दा बनेगा. कोर्ट ने सर्वे का आदेश दिया और मामले ने तूल पकड़ा, अब इस पर बहस हो रही है.


बृजेश शुक्ला ने  साल 2019 में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण का जिक्र करते हुए कहा कि पीएम मोदी मंदिर-मस्जिद मामले पर औरंगजेब का नाम ले चुके हैं. पीएम मोदी ने कहा था कि यहां अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी सामना करने के लिए उठ खड़े होते हैं. इसके बाद ये मुद्दा बड़ा बन गया था.


ज्ञानवापी मामले में अदालत का शामिल हो जाना और सर्वे की मांग कराने के बाद ये मुद्दा और हिंदू पक्ष के लिए अहम हो जाता है.  चुनाव नजदीक हैं और बीजेपी के पास लोगों को ये समझाने का मौका है कि दूसरा पक्ष सबूत छिपाना चाह रहा है. 


बृजेश शुक्ला के मुताबिक योगी आदित्यनाथ पहले भी तीन स्थानों ( अयोध्या, काशी और मथुरा) के लिए ऐसी ही राय सार्वजनिक तौर पर रखते आए हैं. अब भी बीजेपी ये समझ रही है कि ज्ञानवापी का मुद्दा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर असर जरूर करेगा. इसके बावजूद बीजेपी चुनावी मंचों पर ज्ञानवापी का जिक्र नहीं करेगी. लेकिन जमीन पर इसका जिक्र बार-बार होगा. इसकी शुरुआत हो चुकी है. बीजेपी के बड़े नेता इस पर मौन लगाए हुए थे, लेकिन बीजेपी ये जरूर चाहेगी कि इस मुद्दे को जितना हो सके उतना भुनाया जाए. उन्होंने ये भी सवाल किया कि आखिर बीजेपी नेता बार-बार ये क्यों कहते हैं कि नंदी का मुंह उसी तरफ है जिधर मस्जिद है? इसके पीछे एक चुनावी रणनीति है.  


क्या यूसीसी से बदलकर ज्ञानवापी पर आ गया बीजेपी का एजेंडा?


इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने एबीपी न्यूज को बताया 'अगर बीजेपी ने चुनावी एजेंडा बदल दिया है तो इसमें कोई शक या हैरान होने की बात नहीं है. बीजेपी 365 दिन चुनावों पर ही काम करती है. पंचायत चुनाव, विधानसभा चुनाव, निकाय चुनाव, लोकसभा चुनाव पर बीजेपी हर दिन काम करने वाली पार्टी है, इसलिए बीजेपी ने अगर अचानक से कोई एजेंडा बदल दिया है तो हैरान नहीं होनी चाहिए. 


अश्क ने कहा कि पसमांदा मामला बीजेपी का नया चुनावी एजेंडा है. लेकिन समझने की बात ये है कि ये कोई नहीं सोच पाया था कि बीजेपी पसमांदा को चुनावी मुद्दा बनाएगी, हालांकि इस तरह का विभाजन नीतीश कुमार ने बहुत पहले किया था. नीतीश ने पसमांदा महाज के नेता अली अनवर को राज्यसभा भेजा था. बीजेपी ऐसे कामों पर नजर बनाए रखती है जिससे एक वर्ग जुड़ा हो. बीजेपी के एजेंडा बदलने वाली बात पर यकीन किया जा सकता है.  


बीजेपी को एजेंडा बदलने से क्या फायदा होगा?


पत्रकार ओम प्रकाश अश्क ने कहा कि बीजेपी के पास तीन ऐसे मुद्दे हैं जिनको पार्टी हमेशा हवा में उछलती रही है. इसमें एनआरसी, सीएए, और यूसीसी शामिल है. बीजेपी के अंदर समान नागरिक संहिता के मामले पर अभी कोई हड़बड़ी नहीं दिख रही है. 


यूसीसी का चुनावी फायदा लेने के लिए एक टेस्ट के तौर पर बीजेपी ने इस मुद्दे को उछाला जरूर है. ये ठीक वैसा ही है जैसे पिछली बार सीएए, और एनआरसी का मुद्दा उछाला गया था. हालांकि उस पर कोई काम आगे नहीं बढ़ा जो कुछ काम हुआ भी उसका कोई फायदा नहीं दिखा. 


यूसीसी के बहाने हिंदुओं के वोटों के ध्रुवीकरण का एक प्रयास किया जा रहा है, अगर इसमें 2 प्रतिशत भी कामयाबी मिल जाती है तो पार्टी के लिए बड़ी बात होगी. अश्क ने कहा कि यूसीसी का मुद्दा सिर्फ उछाला गया है, क्योंकि मानसून सत्र के लिए जारी बिजनेस सूची में यूसीसी का जिक्र नहीं था. साफ है कि बीजेपी यूसीसी लाने की हड़बड़ी में नहीं. ये बस एक शिगुफा है. पार्टी समीकरण साधने के लिए इस मुद्दे को हवा दे रही है, जो कोई नई बात नहीं है. 


अश्क ने आगे कहा कि चुनाव आते -आते बीजेपी की ये रणनीति रही है कि वो हिंदुत्व या राष्ट्रीयता जगाने के लिए कई ऐसे मुद्दे पैदा करती है. यकीनन ही ज्ञानवापी का मुद्दा उठाया जा सकता है.  ये नहीं भूलना चाहिए कि कुर्सी पर एक ऐसी पार्टी बैठी है जो हर समय चुनाव जीतने और मतदाताओं को साधने पर काम करती है. 


ज्ञानवापी मामला क्या है? 
 
ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहा है. हिन्दू पक्ष जहां इस सर्वे को कराए जाने की मांग कर रहा है तो वहीं मुस्लिम पक्ष की ओर से सर्वे पर रोक लगाने की मांग की गई है. इस मामले पर दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो चुकी हैं और जल्द ही कोर्ट भी इस पर अपना फैसला दे सकती है. 


कोर्ट में ये मामला हिंदू पक्ष की तरफ से रेखा पाठक, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और सीता साहू की याचिका पर आया था. याचिका में कहा गया था कि ज्ञानवापी में सील किए गए वजूखाना को छोड़कर बाकी बचे परिसर का एएसआई से रडार तकनीक से सर्वे कराया जाए. 


इस पर 19 मई को अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने आपत्ति की थी. 14 जुलाई को सुनवाई पूरी हो गई थी. कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया था. 21 जुलाई को अदालत ने मामले में एएसआई द्वारा सर्वे कराने का आदेश दे दिया.  ज्ञानवापी का मुद्दा देश के सामने 18 अगस्त 2021 को सुर्खियों में आया.


जानिए तारीख दर तारीख केस में क्या हुआ


1- 18 अगस्त 2021 को सिविल जज सीनियर डिवीजन के न्यायालय में राखी सिंह और 5 महिलाओं ने याचिका दाखिल की. याचिका में मांग रखी गई कि श्रृंगार गौरी में दर्शन पूजन और परिसर में अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को सुरक्षित किया जाने की अनुमति दी जाए.


2- 26 अप्रैल 2022 को अजय मिश्रा को अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया. मिश्रा को परिसर के अंदर वीडियोग्राफी फोटोग्राफी के साथ रिपोर्ट देने को कहा गया.


3-6 और 7 मई 2022 को कोर्ट को सर्वे का आदेश मिला.  अधिवक्ता आयुक्त के साथ वादी और प्रतिवादी पक्ष ने कुछ हिस्सों का दो घंटे सर्वे 6 मई को पहली बार हुआ. 


4- 7 मई को टीम के पहुंचने पर मुस्लिम पक्ष ने विरोध शुरू कर दिया.


5-12 मई को कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट ने अजय मिश्रा को ही अधिवक्ता आयुक्त बनाये रखा.  विशेष अवक्ता आयुक्त विशाल सिंह और सहायक अधिवक्ता आयुक्त अजय प्रताप को भी नियुक्त किया गया.


6-  4, 15 और 16 मई को परिसर का सर्वे और वीडियोग्राफी कराया गया. 16 मई को हिंदू पक्ष ने बताया कि वजूखाने में शिवलिंग है. इस परिसर को सील कर दिया गया. 


7- 17 मई को न्यायालय में रिपोर्ट पेश नहीं हो पाई. 18 मई को अजय मिश्र ने पूर्व अधिवक्ता आयुक्त के तौर पर अपनी दो दिन की सर्वे रिपोर्ट पेश की. मस्जिद के अंदर मिले साक्ष्यों (हिंदू धर्म से जुड़ी कई महत्वपूर्ण आकृतियां जिसमें कमल, शेषनाग, स्वास्तिक) का जिक्र किया गया. 


8- 19 मई को विशेष अधिवक्ता आयुक्त विशाल सिंह ने 14 से 16 मई की रिपोर्ट को पेश की. इस रिपोर्ट में गुम्बद के अंदर शिखर, दीवारों पर हाथी के सूंड, घंटियों का जिक्र किया. महिला याचिकाकर्ताओं ने मांग रखी की नंदी और परिसर में मिले नंदी के बीच की दीवार को गिरा दिया जाए. सरकारी अधिवक्ता ने भी याचिका दी कि सील परिसर में स्थित तालाब में मिली मछलियों को कहीं और रखा जाए


9- 24 मई 2022 को किरण सिंह ने याचिका दाखिल करके ज्ञानवापी परिसर में नमाज पढ़ने पर रोक लगाने की मांग रखी.


10- 25 मई 2022 को जिला जज एके विश्वेश की अदालत की तरफ से याचिका को फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई के लिए भेज दिया गया.


11- 18 अक्टूबर 2022 को  अदलात ने दोनों पक्षों को लिखित बहस दाखिल करने को कहा.


12- 21 अक्टूबर को जिला जज एके विश्वेश की अदालत ने अंजुमन इंतेजामिया कमेटी से कहा कि उन्होंने समय पर आपत्ति दाखिल नहीं की थी. उनपर 100 रुपये का जुर्माना लगाया.


13-27 अक्टूबर 2022 को फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट में आदि विशेश्वर विराजमान केस में पोषणीयता को लेकर सुनवाई पूरी हुई.  8 नवंबर के लिए आदेश सुरक्षित रख लिया.


14- 2 नवंबर 2022 को हिंदू पक्ष ने दोबारा कमीशन सर्वे कराने को लेकर मांग रखी. इसपर मुस्लिम पक्ष ने जिला अदालत में दाखिल की.


15- 17 नवंबर 2022 को फास्ट ट्रैक कोर्ट में किरण सिंह के पोषणीयता के वाद को अदालत ने सुनवाई योग्य माना.  वाद में मुसलमानों के ज्ञानवापी में प्रवेश को वर्जित करने की भी मांग की गई. इससे मुस्लिम पक्ष को झटका लगा.


16-22 मार्च 2023 को जनपद न्यायाधीश वाराणसी ने ज्ञानवापी मामले से जुड़े सात मुकदमों को समेकित करने का आदेश पारित किया. 


17- 17 अप्रैल 2023 को नमाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई. इस पर कोर्ट ने वाराणसी के जिलाधिकारी को समस्या का समाधान करने आदेश दिया.


18- 19 अप्रैल 2023 को जिलाधिकारी की अगुवाई में समिति की बैठक हुई. बैठक में वजू की व्यवस्था को लेकर सहमति बनी.


19- 12 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग की साइंटफिक सर्वे की याचिका को कबूला.


20-16 मई 2023 को हिंदू पक्ष की वादिनियों रेखा पाठक, मंजू व्यास, लक्ष्मी देवी और सीता साहू की तरफ से प्रार्थना पत्र दिया गया . ज्ञानवापी में सील किए गए वजूखाना को छोड़कर बाकी क्षेत्र का एएसआई से रडार तकनीक से सर्वे कराए जाने की मांग रखी गई.


21- 6 मई 2023 को वाराणसी कोर्ट ने हिंदू पक्ष की एएसआई सर्वे की याचिका को स्वीकार कर लिया.


22- 19 मई को अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने आपत्ति जताई. 14 जुलाई को सुनवाई पूरी हो गई थी.


23-  23 मई 2023 को जनपद न्यायधीश वाराणसी ने एक ही प्रकृति से जुड़े मामले की सुनवाई साथ में करने की याचिका को भी स्वीकार कर लिया. अगली सुनवाई 4 अगस्त को होना है.