नई दिल्ली: कुछ साल पहले इंटरनेट पर अचानक एक शब्द क्राउडफंडिंग देखने को मिला. बताया गया कि क्राउडफंडिंग पैसे जुटाने का एक तरीका है. लेकिन यह अन्य तरीकों से कैसे अलग है और यह होता क्या है यह सवाल आपके दिमाग में भी आता होगा. आज हम आपको फंड जुटाने के इस तरीके के बारे में सबकुछ बताने जा रहे हैं.


क्या है क्राउडफंडिंग


क्राउडफंडिंग एक ऐसा तरीका है जिसमें किसी काम के लिए पैसा इक्कठा करने के लिए लोगों के समूह से मदद मांगी जाती है. क्राउडफंडिंग में जो भी लोग अपने पैसे देते हैं उन्हें मालूम होता है कि वह कहां और किस उद्देश्य के लिए फंड दे रहे हैं. आसान भाषा में क्राउडफंडिंग की परिभाषा को समझे तो क्राउडफंडिंग किसी खास प्रोजेक्ट, बिजनेस वेंचर या सामाजिक कल्याण के लिए तमाम लोगों से छोटी-छोटी रकम जुटाने की प्रक्रिया है.


आइए क्राउडफंडिंग के बारे में थोड़ा और विस्तार से समझें...


क्राउडफंडिंग के लिए वेब आधारित प्लेटफॉर्म या सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल किया जाता है. इनके जरिए फंड जुटाने वाला संभावित दानादाताओं या निवेशकों को फंड जुटाने का कारण बताता है. अपने मकसद को वह खुलकर निवेशकों के समक्ष रखता है. इस मुहिम में वे कैसे योगदान कर सकते हैं, उसका भी पूरा ब्योरा देता है. भारत की बात करें तो नियमों के अनुसार, इक्विटी आधारित क्राउडफंडिंग गैर-कानूनी है. वहीं कम्यूनिटी क्राउडफंडिंग में दान आधारित और पुरस्कार आधारित क्राउडफंडिंग शामिल है. यह पूरी तरह से कानूनी है. सामाजिक कल्याण के लिए यह फंड जुटाने का लोकप्रिय तरीका रहा है.


क्राउडफंडिंग कितने प्रकार के होते हैं ?


1- इक्विटी आधारित क्राउडफंडिंग


इक्विटी आधारित क्राउडफंडिंग दानकर्ता बड़ी रकम इनवेस्ट करते हैं. इसका मकसद किसी भी स्टार्टअप में बड़ा मुनाफा कमाना है. इक्विटी आधारित क्राउडफंडिंग कंपनी के ग्रोथ के लिए की जाती है. भारत में इस प्रकार की क्राउडफंडिंग गैर-कानूनी है. भारत में केवल सेबी से पंजीकृत संस्थाओं को ही क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म प्रदान किए जाते हैं. इसके माध्यम से कंपनियां सालाना 10 करोड़ रुपये तक जुटा सकती हैं.फंड जुटाने के नए माध्यम से जुड़े खतरे को देखते हुए सेबी ने प्रस्ताव पेश किया है कि केवल मान्यता प्राप्त निवेशकों को ही क्राउड फंडिंग गतिविधियों में शिरकत करने की अनुमति होगी. बाजार में सूचीबद्ध कंपनियां, रिएल एस्टेट कारोबार और वित्तीय क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां इसमें हिस्सा नहीं ले सकेंगी.


2- रिवार्ड बेस्ट क्राउडफंडिंग


इस तरह की क्राउडफंडिंग में दानकर्ताओं को कंपनी रिवार्ड देती है. उदाहरण के तौर पर अगर आपका घड़ी की स्टार्टअप है तो आपको अपने दानकर्ताओं को अंत में घड़ी रिवार्ड  के रूप में देना होगा. इस तरह की क्राउडफंडिंग के लिए भारत में कानूनी इजाजत है.


3- डोनेशन क्राउडफंडिंग

डोनेशन क्राउडफंडिंग में दानकर्ता अपने हिसाब से किसी भी नेक काम के लिए कोई भी राशि देता है. इसमें डोनर को कोई भी रिवार्ड नहीं मिलता है. इस तरह के क्राउडफंडिंग में डोनर दिल से दान करता है और यह भारत में पूरी तरह लीगल है. सामाजिक कल्याण के लिए यह फंड जुटाने का लोकप्रिय तरीका रहा है. राजनीतिक दल या प्रत्याशी भी डोनेशन क्राउडफंडिंग के जरिए फंड जुटाते हैं


4- डेब्ट क्राउडफंडिंग


डेब्ट क्राउडफंडिंग में कोई भी दानकर्ता किसी कंपनी के सिक्योरिटी में इनवेस्ट करती है. इस तरह के डेब्ट क्राउडफंडिंग का मकसद पैसा कमाना है. इसमें कंपनी आपको इनट्रेस्ट रेट देती है.


भारत और विश्व के क्राउडफंडिंग प्लेटफार्म


किकस्टार्टर, क्राउडक्यूब और क्राउडफंडर इत्यादि कुछ विश्वस्तरीय क्राउडफंडिंग प्लैटफार्म हैं. वहीं भारत की बात करें तो ड्रीमवालेट्स, विशबेरी, मिलाप, इम्पैक्टगुरु और आवरडेमोक्रेसी.कॉम इत्यादि क्राउडफंडिंग प्लेटफार्म हैं.


चुनावी मैदान में भी चंदा जुटाने का बेहतरीन तरीका


अब नए राजनीतिक हालात में पार्टियों ने चंदा जुटाने का तरीका बदला है. जमाना बदला और डिजिटल लेनदेन का चलन बढ़ा है जिसे सियासी पार्टियां भी भुना रही हैं. क्राउडफंडिंग के जरिए कई प्रत्याशी चुनावी मैदान में अपना ताल ठोकते हैं. क्राउडफंडिंग कंपनी का सहारा भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस, डीएमके और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे दल लेते रहे हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में भी बिहार के बेगूसराय से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के उम्मीदवार कन्हैया कुमार क्राउडफंडिंग के लिए ourdemocracy.in की मदद लिया और उन्हें तकरीबन 30 लाख रुपये चंदे के रूप में मिले.


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