नई दिल्ली: देश में जहां एक तरफ डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने की बात की जाती है, वहीं दूसरी ओर जनता को डिजिटल तकनीक के जरिए राशन लेने के लिए लोग को घंटों पेड़ पर चढ़े रहना पड़ता है.
मामला राजस्थान के राजस्थान के उदयपुर में आदिवासी इलाके कोटड़ा का है. यहां लोग आए तो थे राशन लेने लेकिन पीओएस मशीन का नेटवर्क काम नहीं किया तो नेटवर्क की खोज में पोड़ चढ़ गए.
उदयपुर के कोटड़ा के आदिवासी इलाके के लोगों को राशन लेने के लिए ऊंची पहाड़ियों पर जाना पड़ता है. बायोमेट्रिक पीओएस मशीन लेकर पेड़ पर चढ़ना पड़ता है. किस्मत ठीक रही तो कई दिनों की मशक्कत के बाद नेटवर्क मिल पाता है. इसके बाद कहीं जाकर ये लोग मशीन पर अंगूठा लगाते हैं और तब जाकर इन्हें राशन मिल पाता है.
कोटड़ा इलाके में कुल 76 राशन सेंटर है, इनमें से 13 सेंटर ऐसे हैं जहां नेटवर्क की भारी दिक्कत है. मीरपुर, छिबरवाड़ी, मालवीय, खाकरिया, पीपला, भूरिदेबर, बेरन, पालछा, उमरिया और समोली के लोग राशन की खातिर चक्कर काटने के लिए मजबूर हैं.
दरअसल पीओएस सिस्टम के जरिए राशन बांटना भी डिजिटल इंडिया की ओर एक कदम है. डिजिटल इंडिया भारत सरकार की एक पहल है जिसका मकसद है बिना कागज के इस्तेमाल के सरकारी सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक तरीके से पहुंच सके.
डिजिटल इंडिया का उद्देश्य गांव के लोगों को भी इंटरनेट से जोड़ना है. लेकिन उदयपुर के कोटरा की ये तस्वीरें डिजिटल इंडिया की राह में सबसे बड़ी दिक्कत नेटवर्क की परेशानी को बयान करती है.