कड़ाके की ठंड में कैसे गुजरती है आंदोलनकारी किसानों की रात? पढ़ें
किसानों की मुश्किलें तब और बढ़ जाती है जब रात में पारा गिरना शुरू होता है, लेकिन इस ठिठुरती ठंड में भी उनका आंदोलन जारी रहता है.
नई दिल्ली: दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे किसानों का आंदोलन लगातार जारी है. दिन हो या रात हो चौबीसों घंटे सड़क किनारे ही गुजार रहे हैं. किसानों की मुश्किलें तब और बढ़ जाती है जब रात में पारा गिरना शुरू होता है. लेकिन इस ठिठुरती ठंड में भी उनका आंदोलन जारी रहता है. कोई ट्रक या ट्रॉली में शरण लेता हैं तो कोई खुले आसमान के नीचे ही कंबल ओढ़ कर सो जाते हैं और जिनको सर्दी के चलते नींद नहीं आती वह रात भर बाकी किसान आंदोलनकारियों के साथ आग के पास बैठकर सर्द रात गुज़ारते हैं.
दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर रात के वक्त पारा लगातार गिर जाता है. ऐसे में जो उम्र दराज आंदोलन में शामिल हैं वह अपने साथ लाए कंबल और रजाई के सहारे खुद को सर्दी से बचाने की कोशिश करते हैं. हालांकि खुले आसमान के नीचे ये इतना आसान भी नहीं है लेकिन फिर भी इनका कहना है कि जब तक बात नहीं मानी जाएगी तब तक आंदोलन यूं ही जारी रहेगा और इतनी सर्दी में रहते हुए भी फिलहाल कहते हैं कि किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है.
इसके साथ ही दिन के 24 घंटे में से एक बड़ा हिस्सा दिन हो या रात हो इस तरह से अरदास और शबद कीर्तन चलता रहता है. ऐसी जगहों पर भी बड़ी संख्या में किसान नजर आते हैं. खासतौर पर रात को उस वक्त में जब बाकी किसान सो चुके होते हैं.
आंदोलनकारी किसान 24 घंटे सड़कों पर हैं यहीं सोना यहीं जागना यहीं खाना यहीं पीना सब यहीं हो रहा है. ऐसे में जब रात के अंधेरे में सर्दी पड़ती है तो कई जगहों पर इस तरह के लंगर भी लगाए गए हैं, जहां पर चौबीसों घंटे आंदोलनकारी किसानों के लिए चाय से लेकर खाने तक का इंतजाम मौजूद हैं.
इस आंदोलन में कई किसान ऐसे हैं जो अपने साथ ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर आए हैं, लिहाजा जिनके पास ट्रैक्टर ट्रॉली है वह तो ट्रैक्टर ट्रॉली में कंबल और रजाई के सहारे अपनी रात गुजारते हैं और जिनके पास ट्रैक्टर ट्रॉली नहीं है वह आसपास बनीं दुकानों और पेट्रोल पंप में एक छत का सहारा लेकर जमीन पर ही अपनी रात गुजार रहे हैं.
किसान आंदोलन के चलते हैं जहां आसपास काम करने वाले कई लोगों को परेशानी हो रही है तो कई लोग ऐसे हैं जिनका रोजगार कई गुना बढ़ गया है. ऐसे ही वो दुकानदार है जो रेहड़ी पटरी पर अपनी दुकान लगाते हैं. पहले कुछ घंटे दुकान लगाने के बाद चले जाते थे लेकिन जब से किसान आंदोलन शुरू हुआ है तब से 24 घंटे दुकान लगाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं.
अगर किसान सड़कों पर है तो उनकी सुरक्षा और हालात को काबू करने के लिए जवान भी 24 घंटे सड़कों पर ही मौजूद हैं. किसानों की तरह ही जवान भी खुद को बचाने के लिए कहीं आग तापते नजर आते हैं, तो कहीं किसी और की तलाश करते जिससे कि ठिठुरती ठंड में खुद को बचाया जा सके.
इस दौरान कई सारी ऐसी दुकानें भी लग गई हैं जहां पर किसानों को लेकर दुकानदारों ने नए नारे भी कर लिए हैं. मकसद यही है कि कैसे भी हो उनकी बिक्री हो और जबकि उनको पता है कि इस वक्त आस पास अगर कोई ग्राहक हैं तो वो यहीं आंदोलनकारी किसान हैं लिहाजा उन को खुश करने के लिए उनकी जरूरत का सामान भी बेच रहे हैं और नए नए नारे भी लगा रहे हैं.