नई संसद के उद्घाटन समारोह में विपक्षी पार्टियों का हिस्सा न लेने का फैसला कितना उचित?
विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री के उद्घाटन पर सवाल उठाते हुए 28 मई को आयोजित समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार यानी 28 मई को भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन करेंगे. विपक्ष की मांग है कि इस भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराया जाए क्योंकि विधान के वरीयता क्रम के मुताबिक़ नए संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति या दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों में से ही किसी को करना चाहिए.
विपक्षी दलों के नेताओं ने प्रधानमंत्री के उद्घाटन पर सवाल उठाते हुए 28 मई को आयोजित समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है. जिसका मतलब है कि 28 मई को होने वाले उद्घाटन समारोह से लगभग पूरा विपक्ष गायब रहेगा.
बीते बुधवार यानी 24 मई को 19 विपक्षी दलों ने घोषणा कर दी कि वे रविवार को होने वाले इस समारोह का बहिष्कार करने वाले हैं. इन दलों में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) जैसी बड़ी पार्टियां भी शामिल है.
संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने वाले 19 विपक्षी दलों से अपने फैसले पर एक बार फिर विचार करने को कहा है. उन्होंने कहना है कि प्रधानमंत्री पहले भी कई मौकों पर संसद परिसर में भवनों का उद्घाटन कर चुके हैं और अब इस बात को मुद्दा नहीं बनाया जाना चाहिए
उन्होंने कहा कि नए संसद भवन का उद्घाटन देश के बड़ी और ऐतिहासिक घटना है और इसका राजनीतिकरण करना अच्छा नहीं है.ऐसे में सवाल उठता है कि संसद के उद्घाटन समारोह में हिस्सा न लेने का फैसला कितना उचित है?
क्या कहते हैं जानकार?
वरिष्ठ पत्रकार रुमान हाशमी: वरिष्ठ पत्रकार रुमान हाशमी एबीपी से बातचीत में कहते हैं, 'संसद के उद्घाटन को लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत कई विपक्षी पार्टियों ने ये मांग रखी की ये उद्घाटन राष्ट्रपति के हाथों से होना चाहिए. लेकिन संविधान में ऐसा कुछ नहीं कहा गया है कि संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति ही करेंगे या राष्ट्रपति इस उद्घाटन को करने के लिए बाध्य हैं.
राज्यसभा और लोकसभा को राष्ट्रपति ही एड्रेस करते हैं, लेकिन राष्ट्रपति संसद के सदस्य नहीं हैं. संसद में पहले स्थान पर स्पीकर और फिर प्रधानमंत्री आते हैं.
पत्रकार रुमान हासमी आगे कहते हैं इसके अलावा संसद बनाने का ये फैसला भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही था. पुराना संसद भवन अंग्रेजों द्वारा बनाया गया था. ये संसद आजाद भारत में बना हुआ पहला संसद है. ऐसे में मुझे लगता है कि क्योंकि संसद बनाने का फैसला भी पीएम मोदी का ही था तो उन्हें इस संसद के उद्घाटन का पूरा हक है. रही बात विपक्षों के इस समारोह में हिस्सा नहीं लेने के फैसला की तो मुझे लगता है कि यह सिर्फ एक पॉलिटिकल स्टंट है. विपक्षों को इस समारोह में शामिल होना चाहिए था.
रुमान कहते हैं कि एनडीए के कार्यकाल के दौरान पीएम मोदी के कई ऐसे फैसले हैं जिससे कांग्रेस या अन्य विपक्षी पार्टी इत्तेफाक नहीं रखते. लेकिन वह संसद में तो बैठते हैं. विपक्ष संसद का तो बहिष्कार नहीं कर सकती या सरकार का तो बहिष्कार नहीं कर सकते.
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय: वहीं वरिष्ठ पत्रकार और लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय का मानना बिल्कुल अलग बीबीसी की एक रिपोर्ट में इसी सवाल का जवाब देते हुए वरिष्ठ पत्रकार और लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय का कहना है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 79 में इस बात को साफ किया गया है कि संसद राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी. संसद में प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री की कोई भूमिका नहीं है.
उन्होंने आगे कहा, " ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नई संसद का भूमि पूजन और उद्घाटन किसी भी तरह से उचित नहीं है. जाहिर है कि इस उद्घाटन को राष्ट्रपति को ही करना चाहिए. अगर किसी कारणवश राष्ट्रपति उपलब्ध नहीं रहे तो ऐसी स्थिति में उपराष्ट्रपति या दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी उद्घाटन कर सकते हैं.
वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने बीबीसी को बताया कि हमारे देश में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों अलग-अलग हैं और उनकी काम भी काफी अलग है. कहने का मतलब है कि "कार्यपालिका विधायिका नहीं चला रही है. संविधान यही कहता है. तो यह संविधान का उल्लंघन है."
नीलांजन मुखोपाध्याय आगे कहते हैं, "ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा कि प्रधानमंत्री ने किसी भवन का भूमि पूजन भी किया और उसका उद्घाटन भी करने जा रहे हैं. इस तरह का कदम वैसे प्रधानमंत्रियों द्वारा उठाया गया है जो अपने कामकाज में बहुत ज्यादा लोकतांत्रिक नहीं माने जाते थे.
वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी: वरिष्ठ पत्रकार हर्षवर्धन त्रिपाठी ने एबीपी से बातचीत में कहा कि क्या देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू अगर आगे रहते थे तो डॉ राजेंद्र प्रसाद का अपमान होता था? ऐसा बिल्कुल नहीं है. मुझे लगता है कि विपक्षों के बहस की बुनियाद ही कमजोर है. संसद सिर्फ एनडीए का नहीं बल्कि पूरे देश का है. भले ही वहां कोई संसद हो या नहीं हो लेकिन पार्लियामेंट पूरे भारत का है और विपक्ष के सभी नेताओं को इन उद्घाटन में शामिल होना चाहिए.
विपक्षी नेताओं का क्या है कहना?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उद्घाटन समारोह का विरोध करते हुए कहा, 'राष्ट्रपति से संसद का उद्घाटन न करवाना और न ही उन्हें समारोह में बुलाना - यह देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का अपमान है. संसद अहंकार की ईंटों से नहीं, संवैधानिक मूल्यों से बनती है."
कांग्रेस नेता आनंद शर्मा पहल ही बोल चुके हैं कि यह प्रधानमंत्री का उद्घाटन करना संवैधानिक रूप से गलत है कि संसद के बारे में कोई बड़ा फैसला संसद के मुखिया राष्ट्रपति को बाहर रखकर लिया जा रहा है.
एआईएमआईएम कहा कि पीएम को संसद का उद्घाटन क्यों करना चाहिए? वह कार्यपालिका के प्रमुख हैं, विधायिका के नहीं. हमारे पास शक्तियों का सैपरेशन है. इस संसद का उद्घाटन लोकसभा स्पीकर या राज्यसभा के चेयरमैन कर सकते थे.
उद्धव ठाकरे गुट की नेता प्रियंका चतुर्वेदी का मानना भी कुछ ऐसा ही है. उन्होंने कहा, 'माननीय राष्ट्रपति विधानमंडल की प्रमुख हैं. वह सरकार के प्रमुख यानी भारत के प्रधानमंत्री से ऊपर है. प्रोटोकॉल के हिसाब से नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए. सत्ता के मद में अंधी बीजेपी संवैधानिक अनैतिकता की फव्वारा बन गई है. '
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'ऐसा लगता है कि मोदी सरकार ने सिर्फ चुनावी कारणों से दलित और आदिवासी समुदायों से भारत के राष्ट्रपति का चुनाव सुनिश्चित किया है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को नई संसद के शिलान्यास समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था. अब भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नए संसद भवन के उद्घाटन में नहीं बुलाया जा रहा है. वह अकेले सरकार, विपक्ष और हर नागरिक का समान रूप से प्रतिनिधित्व करती हैं.'
बीजेपी ने क्या कहा
केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने उद्घाटन में नहीं आने के फैसले पर बात करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा अगस्त 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद एनेक्सी बिल्डिंग का उद्घाटन किया और साल 1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने संसद पुस्तकालय का उद्घाटन किया. उन्होंने कांग्रेस सरकार के मुखिया उनका उद्घाटन कर सकते हैं, तो हमारी सरकार के मुखिया ऐसा क्यों नहीं कर सकते?"
इसके अलावा बीजेपी के नेताओं का कहना है कि विपक्ष सिर्फ विरोध के लिए विरोध कर रहा है. इस पूरे मसले को बेवजह तूल दी जा रही है. इनमें से कई विपक्षी दलों ने कोविड के दौरान वैक्सीन का भी विरोध किया था.
क्या कहता है संविधान?
देश का सर्वोत्तम संवैधानिक पद राष्ट्रपति का ही है. उनकी शक्तियों में कार्यकारी, विधायी, न्यायपालिका, आपातकालीन और सैन्य शक्तियां शामिल हैं. संसद के तहत दो सदन यानी लोकसभा (निचला सदन) और राज्यसभा (ऊपरी सदन) आते हैं. इन दोनों सदनों का मुख्य काम विधान बनाना है. संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार भारत के लिए एक संसद होगी. इसमें राष्ट्रपति और दो सदन - राज्यसभा और लोकसभा शामिल होंगे.
वहीं भारत के संविधान के अनुच्छेद 74 (1) में कहा गया है, 'राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए प्रधानमंत्री के साथ एक मंत्रिपरिषद होगा जो उनके कामों में मदद करेगा. वहीं राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद को अपनी सलाह पर फिर से विचार करने के लिए कह सकते हैं.