India-Canada Row: भारत और कनाडा के बीच इन दिनों राजनयिक तनाव चल रहा है. इस तनाव की वजह खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर है, जिसकी जून में ब्रिटिश कोलंबिया में हत्या की गई. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर लगाया, जबकि भारत ने खालिस्तानी आतंकी की हत्या में हाथ होने से इनकार कर दिया. दोनों देशों के बीच इस तरह एक खालिस्तानी आतंकी को लेकर विवाद पैदा हुआ, जो अभी भी बरकरार है.
हालांकि, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर भारत से 11 हजार किलोमीटर दूर कनाडा में खालिस्तान आंदोलन अभी तक कैसे एक्टिव है. भारत में खालिस्तान आंदोलन को कुचल दिया गया और अब कभी-कभार ही खालिस्तानी आंदोलनों की गूंज सुनाई देती है. जितने भी खालिस्तानी आतंकी या खालिस्तानी गतिविधियां होती हैं, वे सभी आखिर कनाडा से ही क्यों ऑपरेट हो रही हैं. आइए आज आपको इन सवालों का जवाब बताते हैं और पूरा मामला समझने की कोशिश करते हैं.
विदेशों में खालिस्तान आंदोलन कैसे शुरू हुआ?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, 1971 में न्यूयॉर्क टाइम्स में खालिस्तान के जन्म को लेकर एक विज्ञापन पब्लिश किया गया. इस विज्ञापन के लिए पैसे देने वाले शख्स का नाम था, जगजीत सिंह चौहान, जो पंजाब का पूर्व मंत्री था. चुनाव हारने के दो साल बाद वह ब्रिटेन चला गया. भारत को लगा कि इस विज्ञापन के पीछे पाकिस्तान का रोल है. ऐसा इसलिए क्योंकि जगजीत सिंह पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जनरल याह्या खान से मिलकर ही न्यूयॉर्क गया था, जहां उसने इस विज्ञापन को छपवाया.
जगजीत सिंह पाकिस्तान में ननकाना साहिब भी गया था, जहां उसने निर्वासित सिख सरकार स्थापित करने की कोशिश की. दरअसल, खालिस्तानी समर्थकों को पाकिस्तान की तरफ से सपोर्ट इसलिए मिल रहा था, क्योंकि उसे भारत से 1971 में मिली हार का बदला लेना था. हालांकि, पाकिस्तान ये नहीं चाहता था कि वह खालिस्तान के लिए एक जन्नत बन जाए. लेकिन वह खालिस्तान के जरिए भारत-पाकिस्तान के बीच एक बफर जोन बनाना चाहता था.
पाकिस्तान को इस काम के लिए जगजीत सिंह की जरूरत पड़ी. इंडिया टुडे मैगजीन की मई 1986 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जगजीत सिंह ने पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों संग बैठकें कीं. विदेशों में रहने वाले सिखों और भारतीय सिखों से कहा कि वे त्योहारों पर पाकिस्तान में मौजूद गुरुद्वारों में जाएं. उसका मकसद लोगों को खालिस्तानी आंदोलन के लिए बहलाना-फुसलाना था, ताकि खालिस्तान की स्थापना हो सके.
1980 में चौहान ने 'रिपब्लिक ऑफ खालिस्तान' की स्थापना की और खुद को इसका राष्ट्रपति बताया. उसने एक कैबिनेट बनाई, खालिस्तानी पासपोर्ट जारी किए. पोस्ट स्टांप और खालिस्तानी डॉलर भी जारी किए गए. ये सब वह लंदन में बैठकर कर रहा था. उसने अमेरिका और कनाडा की यात्रा भी की, जहां उसने खालिस्तान के लिए बेस बनाना शुरू कर दिया. इस तरह कनाडा में खालिस्तान आंदोलन मजबूत होने लगा.
खालिस्तान पर कनाडा की चुप्पी
भारत में 1990 के शुरुआत तक खालिस्तान आंदोलन को खत्म कर दिया गया. लेकिन भारत से बच निकलने वाले खालिस्तानियों ने कनाडा में जाकर अपना एजेंडा शुरू कर दिया. भारत ने 1982 में कनाडा को खालिस्तान के खतरे के बारे में बता दिया था. लेकिन कनाडा ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया. भारत ने खालिस्तानी आतंकी तलविंदर सिंह परमार के प्रत्यर्पण की मांग भी की, मगर कनाडा ने इसे ठुकरा दिया. आगे चलकर 1985 में एयर इंडिया के विमान को टोरंटो में उड़ाया गया, जिसमें 329 लोगों की मौत हुई. इस धमाके में परमार का हाथ रहा.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी हत्या के दो महीने पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जॉन टर्नर को एक चिट्ठी लिखी. इसमें उन्होंने कनाडा से कहा था कि उसके यहां मौजूद सिख संगठन भारत में हिंसा के लिए फंडिंग कर रहे हैं. इसके लिए कनाडा की सरकार की तरफ से भी फंडिंग दी जा रही है. ये फंडिंग बहु-सांस्कृतिक फंड के तौर पर मिल रही है. कुल मिलाकर कनाडा ने खालिस्तान पर चुप्पी साधे रखी और ये आंदोलन धीरे-धीरे वहां मजबूत होने लगा. ज्यादातर खालिस्तानी आतंकियों ने कनाडा को अपना सुरक्षित ठिकाना बना लिया.
कनाडा बनता चला गया खालिस्तान आंदोलन की 'जन्नत'
सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात ये रही कि कनाडा में एयर इंडिया का विमान जब उड़ाया गया, तो इस मामले में तलविंदर सिंह परमार को गिरफ्तार भी किया गया. लेकिन मुकदमे के बीच में ही उसकी मौत हो गई. कनाडा किस तरह से खालिस्तान की जन्नत बनता चला गया. इसका अंदाजा कुछ यूं लगाया जा सकता है कि 2007 में जब बैशाखी के मौके पर ब्रिटिश कोलंबिया के सर्रे शहर में परेड निकाली गई, तो उसमें तलविंदर को शहीद बताया गया.
एक लाख लोगों वाली इस परेड में ब्रिटिश कोलंबिया के प्रीमियर गोर्डन कैंपबेल ने भी हिस्सा लिया, जिसने लोगों को सबसे ज्यादा हैरान किया. जब कैंपबेल भाषण देने के लिए स्टेज पर गए, तो उनका स्वागत तलविंदर के बेटे जसविंदर ने किया. उसके अलावा स्टेज पर कई सारे खालिस्तानी आतंकी मौजूद थे, जो इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन और बब्बर खालसा जैसे प्रतिबंधित संगठनों का हिस्सा थे. कुल मिलाकर कभी कनाडा खालिस्तान के खतरे को समझ ही नहीं पाया.
1990 के बाद भारत से बड़ी संख्या में सिख लोग कनाडा जाने लगे. ऊपर से कनाडा की राजनीति में भी उनका वर्चस्व बढ़ने लगा. भले ही उनकी आबादी की हिस्सेदारी महज 2 फीसदी रही, मगर कुछ शहरों में वह बड़ा वोट बैंक बन गए. यही वजह है कि इस वोट बैंक को हासिल करने के लिए कंजर्वेटिव पार्टी और लिबरल पार्टी दोनों ही गुरेज नहीं करते हैं. खालिस्तान समर्थक लोगों ने कनाडा की सरकार तक पहुंच बनाई है और कई मंत्री पद हासिल किए हैं.
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