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कब तक आजाद रहेंगे गुलाम नबी? कभी बीजेपी से गठबंधन की चर्चा तो कभी कांग्रेस में वापसी की अटकलें

1980 से 2020 तक कांग्रेस और सत्ता के शीर्ष पर रहे गुलाम नबी पिछले तीन महीनों से घाटी की खाक छान रहे हैं. कांग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी के बीजेपी के साथ जाने की अटकलें भी लगी.

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के जम्मू-कश्मीर में पहुंचने से पहले गुलाम नबी आजाद सुर्खियों में हैं. सियासी गलियारों में आजाद के कांग्रेस में वापसी की अटकलें लग रही है. आजाद ने इन अटकलों को सिरे से खारिज तो कर दिया है, लेकिन कांग्रेस को लेकर दिए उनका एक बयान इसे खारिज नहीं कर पा रही है.

1980 से 2020 तक कांग्रेस और सत्ता के शीर्ष पर रहे गुलाम नबी पिछले तीन महीनों से घाटी की खाक छान रहे हैं. कांग्रेस छोड़ने के बाद गुलाम नबी के बीजेपी के साथ जाने की अटकलें भी लगी. हालांकि आजाद ने इसे भी कोरी अफवाह बताया. ऐसे में सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है कि सियासत में गठबंधन के तरजीह देने वाले गुलाम नबी कब तक आजाद रहेंगे?

आजाद ने क्या कहा था?
जम्मू कश्मीर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आजाद ने कहा कि कांग्रेस ही भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे सकती है. पार्टी लंबे समय से सभी लोगों को चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो या फिर किसानों को साथ लेकर चल रही है.

पहले जानिए वफादार कैसे?

  • पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद कांग्रेस ने पार्टी की जड़ें जमाने की जिम्मेदारी दी.
  • गुलाम नबी गांधी परिवार के वफादार होने की वजह से ही सीताराम केसरी और पीवी नरसिम्हा राव के कार्यकाल में पावरफुल रहे.
  • जगन रेड्डी और रोसैया का विवाद 2009 में उलझा तो कांग्रेस ने इसे सुलझाने के लिए गुलाम नबी को भेजा.
  • 2014 में करारी हार के बावजूद गुलाम नबी को पार्टी ने राज्यसभा भेजा और नेता प्रतिपक्ष बनवाया.
  • 2018 में कर्नाटक में बहुमत नहीं आया तो कांग्रेस ने सरकार बनाने की जिम्मेदारी सौंपी. सिद्धरम्मैया को मनाया और जेडीएस को कुर्सी दे दी.

बागी क्यों हुए, 3 प्वॉइंट्स…

  • 2020 में राज्यसभा से हटे तो कांग्रेस ने तवज्जो नहीं दी.
  • संगठन में कश्मीर भेज दिया. इसे आजाद ने इसे डिमोशन कहा.
  • राहुल ने सुझाव सुनने से साफ इनकार कर दिया.

गांधी परिवार ने गुलाम नबी को भेजा था कश्मीर

दिल्ली की सियासत कर रहे गुलाम नबी के गांधी परिवार ने 2005 में कश्मीर भेजा था. साझा सरकार में सोनिया गांधी ने गुलाम नबी को मुख्यमंत्री बनवाया था. गुलाम नबी इंदिरा और राजीव गांधी के भी करीबी रहे हैं.

आजाद को झटका कैसे?

संगठन बनने से पहले कइयों ने साथ छोड़ा- पार्टी बनने के 3 महीने बाद ही कई कद्दावर नेताओं ने साथ छोड़ दिया. गुलाम नबी की नई पार्टी  के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे ताराचंद, पूर्व मंत्री डॉ. मनोहर लाल और पूर्व विधायक बलवान सिंह ने 126 लोगों के साथ इस्तीफा दे दिया.

कश्मीर में चुनाव पर संशय बरकरार- जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव को लेकर संशय अब भी बरकरार है. परिसीमन के बाद आयोग डेटा जुटा रही है. वहीं परिसीमन का विवाद भी पूरी तरह नहीं सुलझा है. आजाद को उम्मीद थी कि कश्मीर में जल्द चुनाव होंगे और इसके जरिए वे शक्ति प्रदर्शन कर सकेंगे.

कहानी कांग्रेस छोड़ने वाले 3 दिग्गजों की, नई पार्टी बनाई और बाद में समझौता किया

1. अर्जुन सिंह- सीताराम केसरी से तनातनी के बाद अर्जुन सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी थी. कांग्रेस छोड़ने के बाद सिंह ने नारायण दत्त तिवारी के साथ मिलकर तिवारी कांग्रेस का गठन किया. हालाँकि, उन्हें सतना से चुनाव हारना पड़ा. 1998 में सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने कांग्रेस में वापसी की.  


2. शरद पवार- सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सबसे ज़्यादा विरोध शरद पवार ने ही किया. उन्होंने विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए पार्टी में बग़ावत कर दी, जिसके बाद पवार के कांग्रेस से निकाल दिया गया. पवार ने पीके संगमा के साथ मिलकर एनसीपी बनाई. 

2004 में पवार कांग्रेस गठबंधन में शामिल हो गए. खुद केंद्र में मंत्री बने और भतीजे अजीत पवार को राज्य में डिप्टी सीएम बनवाया.

3. कैप्टन अमरिंदर सिंह- 2021 में मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने की प्रक्रिया शुरू होते ही अमरिंदर सिंह नाराज़ हो गए और पंजाब सीएम पद से इस्तीफ़ा दे दिया. बाद में उन्होंने पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी भी बनाई. हालांकि, 2022 के चुनाव में कोई फायदा नहीं मिला. 2022 के अंत में अमरिंदर सिंह ने बीजेपी जॉइन कर ली.

गुलाम नबी कब तक आजाद रहेंगे?

1. कश्मीर में चुनाव के ऐलान तक- गुलाम नबी आजाद चुनाव की घोषणा के बाद समझौता कर सकते हैं. चर्चा है कि आजाद बीजेपी से गठबंधन करेंगे. बीजेपी जम्मू की सीटों पर तो आजाद घाटी की सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं. 

2. कश्मीर में चुनावी रिजल्ट तक- चुनाव में अगर बेहतरीन परफॉर्मेंस नहीं आता है तो आजाद फिर नई राह पकड़ सकते हैं. इसकी बड़ी वजह उनकी उम्र भी है. आजाद कैप्टन की तरह बीजेपी में शामिल हो सकते हैं या अर्जुन सिंह की तरह कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं. एक चर्चा यह भी है कि आजाद को बीजेपी राष्ट्रपति कोटे से राज्यसभा भेज सकती है.

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