पूर्व केंद्रीय मंत्री और पश्चिम बंगाल के कद्दावर नेता मुकुल रॉय इन दिनों सियासी गलियारे के सुर्खियों में हैं. रॉय डिमेंशिया से पीड़ित हैं, लेकिन उनके एक फैसले ने बंगाल से दिल्ली तक सियासी हलचल मचा दी है.
तृणमूल कांग्रेस के नेता मुकुल रॉय ने दिल्ली में एबीपी से बात करते हुए कहा है कि वे बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं, इसके लिए उन्होंने अमित शाह से समय भी मांगा है. रॉय 2017 से 2021 तक बीजेपी में रह चुके हैं.
मुकुल रॉय ने कहा कि मैंने कैलाश विजयवर्गीय को फोन किया है, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है. मैं दिल्ली में तब तक रहूंगा, जब तक बीजेपी में जाने का फैसला तय नहीं हो जाता है.
रॉय ने कहा कि मैं आधिकारिक रूप से बीजेपी में ही हूं, इसलिए तृणमूल से इस्तीफा देने का सवाल ही नहीं उठता है. बीजेपी के साथ मैं अपने मन से जुड़ा हुआ हूं.
मुकुल रॉय को लेकर क्या बोली बीजेपी?
दिल्ली में मुकुल रॉय के बीजेपी में शामिल होने पर पार्टी हाईकमान की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया है. हालांकि, बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने जरूर मुकुल के बीजेपी में नहीं लिए जाने की बात कही है.
अधिकारी ने कहा कि जब बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं को मारा जा रहा था, तो उस वक्त मुकुल रॉय तृणमूल कांग्रेस में चले गए. रॉय के लिए बीजेपी का दरवाजा बंद है. बीजेपी बंगाल के प्रवक्ता सौमिक भट्टाचार्य ने कहा कि हमें मुकुल रॉय की जरूरत नहीं है.
बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने भी मुकुल रॉय तो पार्टी में नहीं लेने की बात कही. घोष ने कहा कि रॉय के बीजेपी में आने से कोई फायदा नहीं होने वाला है.
तृणमूल कांग्रेस की प्रतिक्रिया क्या है?
मुकुल रॉय के बीजेपी में जाने के सवाल पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि ये एक ग़ैर ज़रूरी मुद्दा है. मुकुल के बारे में उनके बेटे ने शिकायत दर्ज कराई है. शुभ्रांशु ही इस मसले पर ज्यादा कुछ बता सकते हैं.
ममता ने आगे कहा कि मुकुल कुछ महीने से बीमार चल रहे हैं और उन्हें अस्पताल में भी भर्ती कराया गया था. जो शिकायतें पुलिस को आई है, हम उस पर कठोर कार्रवाई करेंगे. पुलिस मामले की जांच शुरू कर दी है.
तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष ने कहा कि मुकुल रॉय डिमेंशिया से पीड़ित हैं और राजनीतिक के लिए ज्यादा उपयोगी नहीं हैं. उन्हें अब आराम करने की जरूरत है.
तृणमूल की सियासत में रॉय की बोलती थी तूती
69 साल के मुकुल रॉय ने अपनी राजनीति करियर की शुरुआत युवा कांग्रेस से की थी. इसी दौरान रॉय ममता बनर्जी के संपर्क में आए. ममता बनर्जी ने साल 1998 में जब कांग्रेस छोड़ तृणमूल का गठन किया तो रॉय उनके साथ जुड़ गए.
रॉय शुरुआत से ही संगठन का कामकाज देखते थे. 2006 में बंगाल में करारी हार के बाद ममता बनर्जी ने पार्टी में बड़ा फेरबदल किया और रॉय को महासचिव बनाया. रॉय इसके बाद तृणमूल कांग्रेस में सबसे ज्यादा प्रभावी होते चले गए.
2006 में ही ममता बनर्जी ने रॉय को राज्यसभा भेज दिया और पार्टी विस्तार का काम सौंप दिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी ने बेहतरीन परफॉर्मेंस किया.
कांग्रेस के साथ मिलकर ममता बनर्जी की पार्टी ने 42 में से 25 सीटें जीत ली. ममता बनर्जी पार्टी को 19 सीटों पर जीत मिली. नदिया, उत्तर 24 परगना और कोलकाता के आसपास की सीटों पर तृणमूल को बंपर जीत मिली.
तृणमूल कांग्रेस इसके बाद यूपीए कैबिनेट में शामिल हुई. ममता बनर्जी, शिशिर अधिकारी, दिनेश त्रिवेदी के साथ मुकुल रॉय भी मंत्री बने. 2012 में जब ममता ने दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्रालय से हटाया तो मुकुल रॉय को ही इसकी कमान सौंपी गई.
2011 के विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने लेफ्ट मोर्चा के 34 साल की सत्ता को पलट दी. मुकुल इसके बाद तृणमूल में और अधिक पावरफुल हो गए. 2014 के चुनाव में मुकुल की सलाह पर ही ममता ने बंगाल में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था.
तृणमूल कांग्रेस को इसका फायदा मिला और पार्टी 34 सीटों पर जीत हासिल की. 2016 के चुनाव में भी मुकुल ने ही तृणमूल के लिए रणनीति तैयार किया. 2016 में ममता बनर्जी ने लगातार दूसरी बार बंगाल की सत्ता में वापसी की.
बंगाल की सियासत में कैसे ग़ैर ज़रूरी हो गए मुकुल?
कभी बंगाल में ममता बनर्जी के चाणक्य के नाम से मशहूर मुकुल रॉय अब सियासी ग़ैर ज़रूरी हो गए हैं. तृणमूल कांग्रेस ने उनसे दूरी बना ली है, वहीं बीजेपी भी रॉय को महत्व नहीं दे रही है. आखिर वजह क्या है?
1. विश्वसनीयता का संकट- 40 साल के राजनीतिक करियर में मुकुल रॉय कांग्रेस, तृणमूल और बीजेपी में रह चुके हैं. तृणमूल कांग्रेस में रॉय नंबर-दो के नेता थे. यानी तृणमूल का हर भेद वो जानते थे, लेकिन 2017 में रॉय बीजेपी में शामिल हो गए.
बीजेपी भी रॉय को शुरू में हाथों-हाथ ली और उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया. 2019 और 2021 के चुनाव में रॉय के पसंदीदा उम्मीदवारों को जमकर टिकट मिला. हालांकि, बंगाल में बीजेपी चुनाव नहीं जीत पाई.
मुकुल इसके बाद तृणमूल में शामिल हो गए. ममता ने मुकुल को तृणमूल में शामिल तो कर लिया, लेकिन इस बार कोई पद नहीं दिया. मुकुल को उम्मीद थी कि उन्हें पिछली बार की तरह राज्यसभा भेजकर संगठन का काम दिया जाएगा और बेटे को कैबिनेट में शामिल किया जाएगा.
मुकुल रॉय के इन उम्मीदों पर ममता ने पानी फेर दिया. ममता ने सिर्फ मौखिक तौर पर मुकुल रॉय को संगठन का कामकाज देखने के लिए कह दिया. यानी ममता भी मुकुल पर विश्वास नहीं कर पाई.
मुकुल रॉय के लिए यह एक बड़ा झटका था, जिसके बाद रॉय ने बीजेपी में जाने की कोशिश में लग गए. हालांकि, बीजेपी भी उनकी विश्वसनीयता को देखते हुए उन्हें वापस लेने के लिए तैयार नहीं है.
2. ईडी और सीबीआई का शिकंजा- 2022 में शारदा स्कैम केस की जांच में तेजी आई. वजह थी- शारदा ग्रुप के मालिक का एक पत्र. सुदीप्तो सेन ने पत्र लिखकर कहा कि मुकुल रॉय, शुभेंदु अधिकारी और अधीर रंजन चौधरी ने लाभ लिया.
जांच एजेंसी इसके बाद एक्शन में आई और मामले की जांच प्रक्रिया तेज हो गई. हाल के दिनों एक अन्य घोटाले के सिलसिले में अभिषेक बनर्जी को भी सीबीआई ने नोटिस भेज दिया, जिसके बाद मुकुल दिल्ली की ओर चले गए.
पूर्व राज्यपाल और बीजेपी के कद्दावर नेता तथागत रॉय कहते हैं- मुकुल रॉय से बीजेपी को सावधान रहने की जरूरत है. यह एक साजिश है, जिससे समझने की जरूरत है. तथागत आगे कहते हैं कि मुकुल रॉय ने पार्टी के लिए कुछ नहीं किया, ऐसे में अब आकर क्या करेंगे?
सीपीएम के सांसद विकासरंजन भट्टाचार्य मीडिया से कहते हैं- मुकुल को बंगाल से केस सेटल के लिए भेजा गया है.
सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी को भी इस बात की भनक लग गई है, यही वजह है कि मुकुल रॉय से बड़े नेता नहीं मिल रहे हैं.
3. स्वास्थ्य की वजह से सक्रिय नहीं- मुकुल रॉय पिछले एक साल से स्वास्थ्य की वजह से ज्यादा एक्टिव नहीं है. फरवरी में ही उनका ब्रेन का एक ऑपरेशन हुआ है. मुकुल के बेटे शुभ्रांशु के मुताबिक उन्हें डॉक्टरों ने 13 दवाइयां लेने के लिए कहा है.
मुकुल रॉय के दिल्ली जाने के बाद उनके डॉक्टरों के हवाले से शुभ्रांशु ने बताया कि पापा को डिमेंशिया और पार्किंगसन रोग है. उन्हें कुछ भी याद नहीं रहता है. शुभ्रांशु ने डॉक्टरों की रिपोर्ट भी दिखाई. हालांकि, मुकुल खुद को फिट बता रहे हैं.
स्वास्थ्य की वजह से भी मुकुल का सियासी कद घटा है. अब मुकुल पहले की तरह न मीटिंग ले पाते हैं और न ही रणनीति को अमलीजामा पहना पाते हैं.
बीजेपी नेता दिलीप घोष ने पत्रकारों से बातचीत में कहा है कि अब वे पुराने मुकुल रॉय नहीं रहे हैं, इसलिए बीजेपी को उनसे ज्यादा फायदा नहीं मिलने वाला है.
मुकुल का दिल्ली दौरा विधायकी बचाने की कवायद है?
मुकुल रॉय 2021 में बीजेपी से तृणमूल में शामिल हो गए थे. इसके बाद नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने उनकी विधायकी रद्द करने की मांग की, जो विधानसभा स्पीकर के पास अभी भी पेंडिंग है. अधिकारी ने इसके लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
इस मामले में भी जल्द ही बहस होने और फिर फैसला आने की बात कही जा रही है. शुभेंदु अधिकारी ने कोर्ट में मुकुल रॉय का एक बयान पेश किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं बीजेपी का विधायक नहीं हूं.
एक्सपर्ट का मानना है कि दिल्ली में मैं बीजेपी का ही विधायक हूं कहकर रॉय केस को कमजोर करने की कोशिश में जुटे हैं. चूंकि अब तक बंगाल विधानसभा में एक बार भी वोटिंग की नौबत नहीं आई है और न ही व्हिप जारी हुआ है.
ऐसे में मुकुल रॉय की सदस्यता सिर्फ एक बयान पर टिकी है. इसी दावे को कमजोर करने के लिए संभवत: रॉय बीजेपी में होने का बयान दे रहे हैं.