Gujarat Elections Opinion Poll: गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Elections) के ओपिनियन पोल (Opinion Poll) में आम आदमी पार्टी (AAP) को लेकर जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, वे चौंकाने वाले हैं, क्योंकि पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) जोरदार जीत के दावे कर रहे हैं.
राज्य में विधानसभा की 182 सीटों में से 89 सीटें तो अकेले दो क्षेत्रों सौराष्ट्र-कच्छ और दक्षिण गुजरात की हैं. इन दो क्षेत्रों में से सौराष्ट्र-कच्छ में विधानसभा की 54 सीटें हैं, जबकि दक्षिण गुजरात में 35 सीटें हैं. India TV-Matrize Opinion Poll के मुताबिक, इन दोनों क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी कुल छह सीटें जीत सकती है. पोल में सौराष्ट्र-कच्छ में 'आप' को तीन सीटें और दक्षिण गुजरात में भी उसे तीन सीटें ही मिलने की संभावना जताई गई है.
बीजेपी-कांग्रेस को कितनी सीटें मिल सकती हैं?
पोल के नतीजों के मुताबिक, सौराष्ट्र-कच्छ की 54 सीटों में से सबसे ज्यादा 30 सीटें बीजेपी को मिल सकती हैं. 21 सीटों पर जीत के साथ कांग्रेस यहां दूसरे नंबर पर रह सकती है. दक्षिण गुजरात की 35 सीटों में से सबसे ज्यादा 26 सीटों पर बीजेपी के जीतने की संभावना जताई गई है, जबकि कांग्रेस के खाते में यहां सिर्फ छह सीटें जाती हुई दिखाई गई हैं. हालांकि, इन छह सीटों के साथ उसे दूसरे नंबर पर दिखाया गया है.
सौराष्ट्र-कच्छ क्यों है अहम?
उल्लेखनीय है कि इन दोनों क्षेत्रों में से, खासकर सौराष्ट्र-कच्छ बेहद अहम माना जाता है. यह पाटीदार बाहुल्य क्षेत्र है. राजनीतिक पंडित मानते हैं कि जो पार्टी सौराष्ट्र-कच्छ में जीत का परचम लहराती है, उसके गुजरात की सत्ता पर काबिज होने की संभावना ज्यादा रहती है. हालांकि, पिछली बार के चुनाव में ऐसा नहीं हुआ था क्योंकि इस क्षेत्र में बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस ने सीटें जीती थीं.
2017 में इस क्षेत्र में कांग्रेस ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी के हिस्से में 23 सीटें ही आई थी और एक सीट अन्य की झोली में चली गई थी. समीक्षक मानते हैं कि 2017 में इस क्षेत्र में बीजेपी को नुकसान इसलिए उठाना पड़ा था, क्योंकि तब हार्दिक पटेल की अगुवाई में पाटीदार आंदोलन चल रहा था. अब हार्दिक बीजेपी में हैं और वह भी चुनाव लड़ रहे हैं.
चुनाव को लेकर धड़कनें तेज!
गुजरात में दो चरणों- एक और पांच दिसंबर को मतदान होना है, इसलिए चुनाव शुरू होने से बमुश्किल हफ्तेभर पहले सामने आ रहे ओपिनियन पोल के नतीजे तमाम दलों की धड़कनें बढ़ा सकते हैं. खासकर, जिनका ग्राफ नीचे जाता हुआ दिखाया जा रहा है, उन्हें बेचैनी का सामना करना पड़ सकता है, इससे निजात आठ दिसंबर को होने वाली मतगणना के बाद ही मिलेगी.