वैश्विक मानचित्र पर अफगानिस्तान और मेक्सिको दो अलग देश हैं. दोनों के बीच कोई समानता नहीं दिखती. हालांकि तालिबान और मैक्सिकन कार्टेल में समानता यह है कि दोनों आर्थिक रूप से खुद को मजबूत बनाने के लिए मादक पदार्थों की तस्करी करते हैं. दोनों अपराधी हैं और दोनों अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने, सत्ता और विस्तार के लिए अत्यधिक हिंसा करते हैं. पिछले साल जून में मेक्सिको में चुनाव से पहले कई उम्मीदवारों को यहां के ताकतवर कार्टेल्स द्वारा धमकाया गया और मार डाला गया और खुले तौर पर वोट खरीदे गए.  


बता दें कि संयुक्त राज्य मेक्सिको उत्तर अमेरिका में स्थित है. यह संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी सीमा पर स्थित मेक्सिको लगभग 2 मिलियन वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ हैं.  मेक्सिको अमेरिका में पांचवा और दुनिया में 14 वा सबसे बड़ा स्वतंत्र राष्ट्र है. लगभग 11 करोड़ की जनसंख्या के साथ यह 9 वीं सबसे अधिक आबादी वाला देश है. यह अमेरिका समेत पूरी दुनिया में ड्रग्स सप्लाई करने रे लिए जाना जाता है. यहां बड़े स्तर पर कार्टेल्स हैं और काफी पावरफुल है. सत्ता में भी उनकी पैठ है. 


अफगानिस्तान, मेक्सिको और म्यांमार में होती है 95% अफीम की खेती
रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की लगभग 95 प्रतिशत अफीम की खेती अफगानिस्तान, मेक्सिको और म्यांमार इन तीन देशों में की जाती है. इसमें हेरोइन अफीम और अन्य तरह के नशीले पदार्थों का उत्पादन और तस्करी भी शामिल हैं. अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने अपने बयान में कहा था कि मेक्सिको के ड्रग कार्टेल्स तालिबान समेत दुनिया भर के बड़े ड्रग्स स्पालायर्स और उत्पादकों के संपर्क में परोक्ष और अपरोक्ष तौर पर रहते हैं.


2009 में अमेरिकी कांग्रेस ने कहा था कि उस वर्ष अफगानिस्तान के सकल घरेलू उत्पादन का 50% अवैध ड्रग्स व्यापार से हुआ था. नशीले पदार्थों को लेकर तालिबान ने हमेशा दोहरी नीति अपनाई. कभी अफीम की खेती को लेकर सीधे तौर पर खुद इन्वॉल्व नहीं दिखाया. अफगान में अफीम के सेवन पर प्रतिबंध है, लेकिन अफीम की खेती और बिक्री खुलेआम होती रही है. 2021 की शुरुआत में अमेरिकी विदेश विभाग ने अपने रिपोर्ट में कहा था, अफगानिस्तान में अधिकांश अफीम का उत्पादन तालिबान के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में होती थी. 


कई देशों तक फैला है नशे का व्यापार
यूएनओडीसी ने अपने रिपोर्ट में कहा, पूरी दुनिया के अफीम उत्पादन का लगभग 84 प्रतिशत अफगानिस्तान में होता है. यहां से पड़ोसी देशों, यूरोप और मध्य देशों के साथ ही पूर्व, दक्षिण एशिया, अफ्रीका समेत उत्तरी अमेरिका और कनाडा में सप्लाई की जाती है.   
 
सिनालोआ कार्टेल है सबसे ताकतवर 
एक रिपार्ट के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय नशीले पदार्थों के कारोबार के कारण मेक्सिको में कार्टेल्स की संख्या बढ़ी. सिनालोआ कार्टेल वर्तमान में सबसे ताकतवर और तेजी से बढ़ने वाला कार्टेल है. वह किसी भी देख की उस जमीन को डायरेक्ट या एनडायरेक्ट तरीके से अपने नियंत्रण में ले लेता है. जहां अफीम की अच्छी खेती होती है. यूएस ड्रग एन्फोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, सिनोलोआ कार्टेल अमेरिकी में सबसे ज्यादा सप्लाई करता है और यहां किसी और को पनपने नहीं देता. यूरोपीय संघ, पश्चिम अफ्रीकी, भारत, चीन और रूस से लेकर दुनिया भर के लगभग 60 प्रतिशत देशों में यह कारोबार करता है. दक्षिण अमेरिका निर्मित कोकीन और सिंथेटिक दवाओं की मांग सबसे ज्यादा यही पूरा करता है. 


अफगानिस्तान में भी होता है बड़े स्तर पर अफीम की खेती 
पिछले साल तालिबान अफगानिस्तान की सत्ता में आ गया. तालिबान ने सत्ता बीस सालों तक अमेरिका जैसे सुपर पॉवर से लड़ाई के बाद हासिल की. इसके लिए उसने काफी धन खर्च किया. आतंकवादी संगठन ने बेशुमार पैसा खर्च किया. नवंबर 2001 में अमेरिका ने तालिबान को काबुल भगा दिया था. तब तालिबान अपने अवैध बिजनेस से खूब पैसा कमाया और फिर अमेरिका से लड़ाई लड़ने के लिए खुद तैयार किया. 


तालिबान की कमाई का बड़ा जरिया है अफीम का व्यापार 
रिपोर्ट्स के मुताबिक तालिबान के आय का बड़ा स्त्रोत अफीम उत्पादन और अवैध खनन है. यह कारोबार पूरी दुनिया में फैला है, यूएनओडीसी ने अपने रिपोर्ट में कहा कि अफगानिस्तान में अफीम की बड़े स्तर पर खेती होती है. लगभग 84 प्रतिशत अफीम उत्पादन अकेले यहां होती है. 


यह पड़ोसी देशों, यूरोप, मध्य देशों के अलावा दक्षिण एशिया और अफ्रीका, अमेरिका और कनाडा में भी सप्लाई करता है.  मई 2020 की एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अनुमान लगाया था कि तालिबान का वार्षिक संयुक्त राजस्व $ 300 मिलियन से लेकर $1.5 बिलियन प्रति वर्ष तक है. 


सालों से तालिबान की कमाई का बड़ा जरिया नशीली दवाओं का व्यापार रहा है. अफगानिस्तान में इन दिनों नया दवा उद्योग काफी फायदे में है. यह मेथामफेटामाइन है. दरअसल मेथामफेटामाइन हेरोइन से अधिक फायदे का सौदा है. इसके उत्पादन में लागत कम आती है और इसके लिए बड़े लैब की भी जरूरत नहीं होती. 


सत्ता में आने के बाद तालिबान ने अफीम की खेती पर लगाया था प्रतिबंध 
तालिबान ने कभी भी सीधे तौर अफीम की खेती में भागीदार नहीं दिखाया. ऐसे में सत्ता में आते ही इसकी खेती पर प्रतिबंध लगा दिया. तालिबान ने कहा कि कोई किसान यदि अफीम की खेती करता पकड़ा गया तो उसकी फसल जला दी जाएगी. हालांकि  इंटरनेशनल जांच एजेंसियों की आंखों में धूल झोंकने के लिए करता है. यह खुद को बचाने के लिए तालिबान की यह मात्र एक चाल होती है. जानकारों का कहना है कि बड़ी कमाई का जरिया तालिबान कभी बंद नहीं करेगा और तालिबान में अफीम बिजनेस हमेशा फलता फूलता रहेगा.