उत्तराखंड की सियासत के 'फायर', बीजेपी के 'फ्लावर', हारकर भी कैसे बाजीगर बने पुष्कर सिंह धामी
Uttarakhand News: बीजेपी ने चुनाव में कई मिथकों को ध्वस्त करते हुए 47 सीटों के साथ दोबारा जीत हासिल की. उत्तराखंड की सियासत के कई विपक्षी सूरमा भी इस चुनाव में चित हो गए और बीजेपी का विजय रथ पहाड़ों की गलियों में जमकर दौड़ा.
Pushkar Singh Dhami CM: उत्तराखंड में जब विधानसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था, तब फरवरी में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक भाषण में कहा था, 'अपना पुष्कर फ्लावर भी है और फायर भी'. तब शायद ही किसी को अंदाजा रहा होगा कि पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड की सियासत के 'फायर' और बीजेपी के लिए 'फ्लावर' बन जाएंगे.
बीजेपी ने चुनाव में कई मिथकों को ध्वस्त करते हुए 47 सीटों के साथ दोबारा जीत हासिल की. उत्तराखंड की सियासत के कई विपक्षी सूरमा भी इस चुनाव में चित हो गए और बीजेपी का विजय रथ पहाड़ों की गलियों में जमकर दौड़ा. पुष्कर सिंह धामी भले ही अपनी परंपरागत सीट खटीमा से चुनाव हार गए लेकिन उन्होंने इतिहास रचते हुए पहाड़ों में बीजेपी के लिए सत्ता के दरवाजे खोल दिए. 4 जुलाई 2021 को पहली बार मुख्यमंत्री की गद्दी संभालने वाले पुष्कर सिंह धामी दो बार खटीमा से विधायक रह चुके हैं. वह उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की गद्दी संभालने वाले सबसे युवा नेता थे.
जब तीरथ सिंह रावत से बीजेपी आलाकमान ने सत्ता वापस ली थी, तब उसे ऐसे चेहरे की जरूरत थी, जो अगले 8 महीने में ऐसा चमत्कारी नेतृत्व दे, जिससे उसके लिए चुनावी डगर आसान हो जाए. पार्टी की ये इच्छा पुष्कर सिंह धामी ने खुद हारकर भी पूरी की. इसका इनाम भी उन्हें मिला. उत्तराखंड में एक बार फिर सत्ता की बागडोर धामी को ही सौंपी गई है. वह डीडीहाट से दोबारा चुनाव लड़ेंगे.
पुष्कर के सामने था चुनौतियों का पहाड़
चुनाव से 8 महीने पहले जब पुष्कर सिंह धामी को कमान मिली तब बीजेपी उत्तराखंड में दो मुख्यमंत्री बदलने के लिए आलोचना झेल रही थी. पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत के विवादास्पद बयान भी पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर रहे थे. ऐसे में पुष्कर सिंह धामी ने विवादित बयानों से बचते हुए जनता के बीच बीजेपी के कामों को ज्यादा से ज्यादा पहुंचाया.
कोविड के चलते पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था, तीर्थ पुरोहितों का चारधाम बोर्ड को लेकर आंदोलन और कोविड फर्जी जांच घोटाला जैसी चुनौतियां भी उनके सामने थीं. उन्होंने कई आर्थिक पैकेजों की घोषणा और चारधाम बोर्ड भंग कर जीत हासिल की और ऐन विधानसभा चुनाव से पहले विपक्ष के हाथ से मुददे छीन लिए. युवा नेता होने के साथ-साथ साफ छवि का फायदा भी उन्हें मिला.
जातीय संतुलन के लिए परफेक्ट
धामी पहाड़ी क्षेत्र के ठाकुर समुदाय से आते हैं. चुनावों से पहले सीएम बनाकर बीजेपी ने उन्हें सीएम बनाकर पहले जाति और फिर क्षेत्रीय समीकरणों को संतुलित करने की कोशिश की. उत्तराखंड में वोट तीन कारकों पर विभाजित होते हैं- कुमाऊं बनाम गढ़वाल क्षेत्र, ठाकुर बनाम ब्राह्मण, और पहाड़ी बनाम मैदान. ऐसे में बीजेपी को परफेक्ट चॉइस के तौर पर पुष्कर सिंह धामी ही नजर आए.
पुष्कर सिंह धामी के प्रोफाइल पर एक नजर
- 16 सितंबर 1975 को पिथौरागढ़ जिले के टुंडी गांव के राजपूत परिवार में धामी का जन्म हुआ था. उनके पिता आर्मी से रिटायर्ड सूबेदार थे.
- उन्होंने ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट एंड इंडस्ट्रियल रिलेशन्स में लखनऊ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया. इसके बाद उन्होंने एलएलबी की.
- साल 2001 में जब भगत सिंह कोश्यारी मुख्यमंत्री थे, तब धामी उनके सलाहकार थे.
- उन्होंने आरएसएस और उससे जुड़ी संस्थाओं के साथ 33 साल तक काम किया. उनकी पॉलिटिकल यात्रा उत्तर प्रदेश से शुरू हुई, जहां उन्होंने बतौर एबीवीपी सदस्य अवध प्रांत में एक दशक तक काम किया.
- साल 2008 तक वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी थे.
- साल 2012 में वह खटीमा से विधायक चुने गए. 2017 में भी उन्होंने इसी सीट से जीत हासिल की.
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